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स्त्री-मन की सघन अनुभूतियां और उमा की कहानियां / डॉ, नीरज दइया

लेखन में स्त्री-पुरुष विभेद बेमानी है। केवल लेखन ही क्यों, सभी कला माध्यमों अथवा स्वयं जीवन में  और जीवन के किसी भी कोने में ऐसा नहीं होना चाहिए। यहां हम यह प्रतिप्रश्न भी कर सकते हैं- क्या किसी भी प्रकार का विभेद कहीं भी नहीं होना चाहिए? यदि ऐसा है तो फिर अब तक ऐसा क्यों होता चला आ रहा है? यहां विषयांतर से बचते हुए यदि केवल लेखन-आलोचना की बात करें तो कहा जा सकता है कि हमने सुगमता के लिए ऐसे कुछ रास्ते विभेद इजाद किए थे, और अभी भी हम उन्हीं पर चल रहे हैं। लेखकीय मन के संदर्भ में स्त्री-मन और पुरुष-मन की अवधारणाओं के रहते हुए कोई भी पाठ ऐसे बंधनों से मुक्त नहीं होता है। थर्ड जेंडर की अवधारणा भी इन दिनों चर्चा में है। जहां बंधन होते हैं, वहीं उससे मुक्त होने के कुछ संकेत समाहित रहते हैं। कहानी संग्रह ‘चाँद, रोटी और चादर की सिलवटें’ पर कहानीकार का नाम ‘उमा’ अंकित है। जो संभवतः ऐसी ही किसी मुक्ति का संकेत अथवा आकांक्षा को व्यंजित करता है। संग्रह को उमा ने अपनी माँ माणक देवी सोनी के नाम समर्पित किया है।

            विभिन्न जातियों, धर्मों और समाजों के बीच रहते हुए इन सभी से परे कहानीकार उमा हमें ऐसे कथालोक में लेकर जाती हैं, जहां इन सब के रहते हुए भी इनसे मुक्त और स्वच्छंद जीवन जीने की संकल्पनाएं है। उमा की इस संग्रह में संकलित तेरह कहानियों में ऐसा ही कुछ अलाहदा संसार है जो यहां इसी जमीन पर है। वर्तमान समय के अनेक बदलावों और झंझावातों से जूझती जिंदगियों के अनेक रंगों से हमारा साक्षात्कार होता है। उमा की कहानियों को किसी सीमित दायरे में नहीं बंधा जा सकता है। यहां अलग-अलग वय के अनेक पात्र हमें मिलते हैं- स्त्री, पुरुष, लड़का और लड़की। बच्चे, जावान और बूढ़े इन सब पात्रों में सर्वाधिक प्रभावशाली रूप में उभरने वाले जो चरित्र हैं वह है स्त्री चरित्र। इस संग्रह के संदर्भ में स्त्री को कहानीकार का फोकस बिंदु कह सकते हैं। यहां स्त्रियों के चरित्र को लेकर एक खास किस्म की आधुनिकता और समानता की मुहिम देखी जा सकती है। कहानियां बेशक अलग अलग हो किंतु इनके केंद्रीय चरित्र के रूप में एक ऐसी स्त्री को देखा जा सकता है जो अपने स्त्री-मन की सघन अनुभूतियों की अभिव्यक्ति के लिए व्याकुल है। उसकी व्याकुलता को विविध रंगों में इन कहानियों में रेखांकित किया गया है।

            कहना होगा कि समकालीन कहानी में कहानीकार उमा के यहां जो स्त्री-पुरुष संबंधों का गणित प्रस्तुत हुआ है वह वर्तमान दौर का कोलाज है। यहां तक आते-आते कहानी-यात्रा में अनेक बदलाव हुए हैं उन्हें अंगीकार करते हुए नवीनता की चुनौतियों को स्वीकार किया गया है। भाषा, कथ्य और शिल्प के अनेक घटक इन कहानियों में बेहद प्रभावी रूप में नजर आते हैं। कहानीकार उमा ने नाटकीयता और दृश्यों से जो भाषा निर्मित की है वह बेहद प्रभावशाली है। कहानीकार का कवि मना और पर्यावरण प्रेमी होना कहानियों के प्रभाव को द्विगुणित करने वाला है। अपने समय और समाज को अभिव्यक्ति करती ये कहानियां इक्कीसवीं सदी की कहानियां इसलिए भी है कि इनमें सीधा सीधा कोरोना का आतंक है तो साथ ही बदलती स्त्री की छवि यहां देखी जा सकती है। जागरूकता, मुखरता तथा स्वच्छंदता के विविध रूप देख कर यकीन किया जा सकता है कि अबला अब पहले वाली अबला नहीं है, वह हर दृष्टि से सबला बनती जा रही है।

            हम कहानी संग्रह के शीर्षक में उमा के कवि मना होने का एहसास देख सकते हैं। चाँद, रोटी और चादर की सिलवटें शीर्षक ना केवल काव्यात्मक है वरन यह कहानी भी एक कहानीकार के आत्मसंघर्ष को व्यंजित करती है। यहां रचाव की छटपटाहट के साथ रचना के सुख-दुख भी है। कहानी कहती है कि जीवन की अनिश्चितता और उसका कोई नियत पैटर्न नहीं होता। उसे किसी सांचे या पैटर्न में नहीं बंधते हुए कहानी एक सुंदर कोलाज प्रस्तुत करती है। यहां कविता की भांति अनेक बिंबों की मोहक छवियां है। बिंबों और छवियों के अभिप्राय प्रत्येक भावक के लिए भिन्न-भिन्न होते हैं। कहानीकार का मानना है कि कहानी के विषय उसके आसपास रहते हैं अथवा वह अपने आसपास से उन्हें तलाश करता है।  

            संग्रह की पहली कहानी ‘कॉपी पेस्ट’ की बात करें तो विषय नया नहीं है। पति-पत्नी का तलाक और बच्चे की कस्टडी के सवाल को पहले भी उठाया जाता रहा है। किंतु उमा किसी भी विषय पर नए ढंग से कहानी रचने का कौशल जानती हैं। कहानीकार का काम कॉपी पेस्ट ही है, वह अपने आसपास के जीवन को शब्दों के माध्यम से कॉपी करते हुए पेस्ट करने का प्रयास करता है। रचना और मौलिकता की दृष्टि से कहानीकार को हर बार अपनी परंपरा में कुछ जोड़ते जाना होता है। आधुनिक स्त्री चरित्र के रूप में राम्या प्रभावित करती है। उसके चरित्र में प्रतिकार और प्रतिशोध की भावना कुछ अलग किस्म की है। कहानीकार की सफलता इसमें है कि वह तलाक के सवाल को उठाते हुए उस स्त्री की बेबसी-लाचारी को प्रकट करती है। तलाक उसको जिस स्तर पर लाकर छोड़ता है वह रेखांकित करने योग्य है जिसे कहानी में रेखांकित किया गया है। कहानी का मर्म इसमें समाहित है कि संभवतः स्त्री और उसकी उस अनुभूति को उसके स्तर पर जाकर पुरुष-वर्ग द्वारा समझा नहीं जाता है, जिस स्तर की बात इस कहानी में प्रस्तुत हुई है। राम्या का वैभव के मैसेज का बेटे की कस्टडी के लिए उसके ही मैसेज को कॉपी पेस्ट करना संभवत पुरुष-जाति को उसके ही हथियारों द्वारा उसे आहत करने की अनुभूति में ले जाने का सटीक संकेत है। अब यह अहसास होना जरूरी है कि समय बदल चुका है।

            कहानी ‘बंद आंखें’ स्त्री-पुरुष संबंधों की इसी भावभूमि की कहानी है जहां पति-पत्नी के खराम होते संबंधों की जटिलता को प्रस्तुत किया गया।

            “सच में पुरुष कितने अहंकारी होते हैं, वे सह झेल भी नहीं सकते कि उनकी पत्नी किसी और के साथ... और इसलिए वे तब सवाल करने बंद कर देते हैं, तब उन्हें जवाब मन मुताबिक मिलने की उम्मीद नहीं होती। मुझे अब वे ज्यादा बेचारे नजर आ रहे थे, बिल्कुल इस बिल्ली की तरह। अपने-अपने डर से आँखें बंद कर लेना कमजोरी हो  सकती है, लेकिन यह भी तो सच है कि सपने भी बंद आँखों में ही दाखिल हुआ करते हैं।” (पृष्ठ- 69)

            स्त्री को रोती-बिलखती और आंसुओं में भीगी देखने दिखाने के दिन अब नहीं रहे। यहां पुरानी कथा नायिकाओं से भिन्न परिस्थितियों से डटकर मुकाबला करने वाली इक्कीसवीं सदी की नई स्त्री का चेहरा नजर आता है। साथ ही बिना आक्रामक और आवेश में आए, जिस मंद और शांत भाव से प्रतिशोध-प्रतिरोध को प्रस्तुत किया गया है वह उल्लेखनीय है। 

            अपनी कहानियों के संग जीवन जीने वाली कहानीकार उमा हमें अपनी हर कहानी में भाषा और शिल्प के माध्यम से ऐसे जोड़ लेती है कि हम उनके चरित्रों में कहीं-न-कहीं मिश्रित होते चले जाते हैं। उनके गढ़े चरित्रों में हमें अपने आसपास के चरित्र नजर आते हैं अथवा हमें ऐसा प्रतीत होता है कि ये सब चरित्र तो अपने भीतर के ही किसी एहसास को जैसे जिंदा कर रहे हैं। उमा की लगभग सभी कहानियों में जीवन को नए समय और बदलते समाज के साथ देखने का नया नजरिया है, यहां सवाल करती स्त्री जहां बराबरी का दर्जा पाने को आतुर है वहीं वह अपने हकों के लिए जागरूक भी है। यहां उसे यह भी चिंता है कि उसके काम को बेगार जैसा क्यों समझा जाता है? वह राष्ट्रीय आय और अर्थशास्त्र का हिस्सा होते हुए भी उसमें गणना के समय नगण्य क्यों रहती है? कहानी ‘उसने मनुस्मृति नहीं जलाई’ कुछ ऐसे ही प्रश्नों को मुखरित करती है।

            प्रेम के विविध रूप और प्रसंग उमा के अनेक कहानियों में मिलते हैं जो उसके कथा-संसार को यादगार बनाते हैं। उमा के यहां प्रेम और संबंधों का अपना गणित है, उसको कहानीकार अपने ढंग से समझने-समझाने का प्रयास करती हैं। इश्किया रोड कहानी में जहां पीढ़ियों का अंतराल दादा-पोता के चरित्रों के माध्यम से उजागर हुआ है, वही यह कहानी स्त्री-पुरुष मानसिकता को प्रस्तुत करने वाली एक बेजोड़ कहानी है। यहां न केवल भाषिक अंदाज और जीवन व्यवहार बदल गया है वरन समय के साथ नई शताब्दी में प्रेम के बदलते स्वरूप का रेखांकन है। इस बदलाव को उसके सभी परिवर्तनों के साथ खुलापन और स्वीकार करने की स्थितियां हम देख सकते हैं। उमा के यहां बदलाव से मुंह नहीं मोड़ते हुए उसे स्वीकारने और समझने का भाव प्रभावित करता है।

            पेशे से पत्रकार रही उमा की कहानी हरा हुआ सिपाही एक पत्रकार के संघर्ष को प्रस्तुत करती है। एक सिपाही किस प्रकार जिंदगी की जंग में जीतता है और अपने ही घर में संबंधों की लड़ाई में वह हार जाता है। नियम और कानून के बीच जो जीवन रूढ़ हो चुका है वह किस प्रकार अनियंत्रित होते संबंधों में विवश हो जाता है और मन के भीतर उन अहसासों को लिए किस प्रकार का मार्मिक जीवन जीता है का निरूपण कहानी सुंदर ढंग से सांकेतिक रूप से करती है।  

            गेट तक पहुँच कर वह फिर पलटता है और कहता है कि फिर मिलने आऊँगा, फादर्स डे की स्टोरी करने। कर्नल की पत्नी उसी भाव से मुस्कुराती है और कहती है- ‘हार की वजह चाहे जो भी हो, पर जंग में हारे हुए सिपाही का इंटरव्यू करने कोई नहीं आता। इस सिपाही ने कभी दुश्मनों को सरहद के भीतर दाखिल नहीं होने दिया, लेकिन...’

            ‘लेकिन...’

                                    ‘लेकिन... अपने बेटे को घर की दहलीज लांधने से रोक नहीं पाया...।” (पृष्ठ- 128)

            ‘मुझे डूबने मत देना माँ कहानी में प्रशांत और सिंधु के बीच बूढ़ी मां के चरित्र को उम्र के अवसान पर जिस प्रकार चित्रित किया गया है उसमें गहरे द्वंद्व के अनेक घटकों को दिखाया गया है। कहानी के मध्य तक आते आते पाठक इस विचार में चला जाता है कि यह स्त्री-पुरुष के संबंधों की कहानियां जैसी ही होगी, किंतु अंत में बूढ़ी मां की पेंशन का प्रकरण उजागर करना और कहानी को नए समाज में धन के प्रति आकर्षण की तरफ मोड़ देना कहानीकार की खूबी है। उमा की कहानियों में पूर्व निर्धारित और प्रायोजित जैसा कुछ नहीं है। उनके यहां कहानी जैसे अपना रास्ता खुद चुनती हुई आगे बढ़ती है।

            ‘प्रेत को सुपारी कहानी में कहानीकार ने मोबाइल के माध्यम से एक युक्ति का प्रयोग कर अंधविश्वासों का खंडन किया है, यह अंत में पता चलता है। कहानी का आरंभ और चरम जिस मनस्थितियों को प्रस्तुत करते है वहां इसके विट की भनक तक नहीं लगती है। इसी प्रकार ‘प्रीत के प्रेत कहानी में सोनाली और मंजरी के माध्यम से स्त्री चरित्र की व्यथा-कथा और लाचारी का द्वंद्व प्रस्तुत हुआ है। इस कहानी का अंत रेखांकित करने योग्य है, जिसमें एक दृष्टि एक दृश्य प्रस्तुत करते हुए अंत को पाठकों पर छोड़ दिया गया है।

            अधकटे पेड़ को छोड़कर वह फोन लेकर साइड की ओर जाता है, वह उस और जा रहा है, सोनाली आगे बढ़ रही है, कोई चुंबस-सा है जो उसे खींच रहा है, खीच रहा है उस बगीचे की ओर, उस जंगल की ओर...

धड़ाम !!

और जोर की चीख...।”  (पृष्ठ- 160)

            नई कहानी में सबसे अधिक महत्वपूर्ण कहानीकार का फिल्मों की भांति दृश्य को प्रस्तुत करते हुए भाषा द्वारा घटना, चरित्रों-चित्रों को आकार देना है। यहां ‘मखमली फूल’ कहानी का जिक्र करना बेहद जरूरी है। इस कहानी में मुख्य रूप से संवादों के माध्यम से जहां जीवन और मृत्यु के प्रश्न को देखने का प्रयास है, वही प्रेम के उद्भव और विकास और उसकी जटिलता को भी अभिव्यक्त किया गया है। ‘चाट... जिंदगी वाली’ कहानी में मां और बेटी के मध्यम इस सदी के नए संदर्भों-शाब्दिक-युक्तियों को अभिव्यक्त करते हुए, पुरानी भाषा और संकोची स्वभाव-संबंधों को जैसे तिलांजलि दी गई है। नई पीढ़ी में भाषा और संबंधों को लेकर बेहद स्वच्छंदता-खुलापन और बेबाकी का भाव उमा की अनेक कहानियों में भी देखा जा सकता है। भाषा में यहां शब्दों और संबंधों के रूढ़ अर्थों को जैसे ध्वस्थ करते हुए नई भाषा के प्रस्तुतीकरण से यह कहने का प्रयास है कि वह पुराने वाली संवेदना और शिष्टता नए समाज में जैसे गायब हो गई है। यहां जीवन जीने के नए रंग-ढंग है।

            यह अकारण नहीं है कि ‘आदमी की जात’ कहानी में सेक्स-संबंध को आधार बनाते हुए उसे एक यांत्रिक घटनाक्रम जैसा चित्रित किया गया है। संग्रह की अनेक कहानियों में युवा पात्रों के अंतर्मन में जीवन और प्रेम के प्रति छटपटाहट प्रस्तुत हुई है। सवाल प्रस्तुत करती इन कहानियों का प्रमुख सवाल है कि समाज में स्त्री और पुरुष के लिए अलग-अलग नियम और प्रबंधन क्यों है? उमा की अनेक कहानियां इसी सवाल के विषय में सार्थक हस्तक्षेप करती नजर आती हैं।

            केंद्रीय चरित्र के रूप में इन कहानियों के स्त्री रहते हुए भी यहां जीवन की विविधा और जटिलता को अनेक स्तरों पर रेखांकित किया गया है। वरिष्ठ कथाकार सत्यनारायण के शब्दों में- “ये कहानियां सिर्फ स्त्री स्वर तक सीमित नहीं रहतीं, बल्कि उनमें जीवन की तमाम चिंताएं शामिल हैं। कथा के साथ कहानीकार ने नई कथा भाषा ईजाद की है, जो पाठक से गहरा रिश्ता बनाती है।” (पृष्ठ- 7) अपनी काव्यात्मक भाषा और शैल्पिक कौशल के कारण कहानीकार उमा न केवल राजस्थान और महिला कहानीकारों के मध्य वरन समग्र हिंदी कहानी के मध्य अपनी सशक्त और विशिष्ठ उपस्थिति दर्ज कराती हैं। कलमकार मंच ने सुंदर आवरण और आकर्षक रूप में इस संग्रह को प्रस्तुत किया है।

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पुस्तक का नाम : चाँद, रोटी और चादर की सिलवटें ; लेखक : उमा

विधा – कहानी ; संस्करण – 2021 ; पृष्ठ संख्या – 160 ; मूल्य – 200/- रुपए

प्रकाशक – कलमकार मंच, 3 विष्णु विहार, अर्जुन नगर, दुर्गापुरा, जयपुर 302 018

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