रति सक्सेना से मेरी जान-पहचान का सिरा उनके पहले कविता संग्रह ‘माया महाठगिनी’ (1999) से जुड़ा हुआ है। वे राजस्थान की बेटी हैं और नियति ने उनकी कर्मस्थली केरल को चुना, किंतु वे केवल वहां की होकर नहीं रहीं। बहुत कम समय में उन्होंने बहुत लंबी यात्रा की है। उन्होंने केरल में रहते हुए ना केवल भारतीय कविता के लिए वरन विश्व कविता के लिए अद्वितीय कार्य किया है। कविता और अनुवाद के कार्यों के साथ-साथ उन्होंने वेब-पत्रिका ‘कृत्या’ के माध्यम से साहित्य की दुनिया में एक ऐसी अलख जगाई कि उसकी गूंज सुदूर देशों में भी सुनी गई है। विगत बीस वर्षों से अधिक के समय का आकलन करेंगे तो ऐसा लगता है कि अब उन्हें संपूर्ण विश्व ही अपना घर लगने लगा। पारिवारिक और साहित्यिक यात्राओं के उनके अनुभव हमारे चिंतन को नए आयाम देने वाले कहे जा सकते हैं। उन्होंने अपने पहले यात्रा-वृतांत का नाम ‘चिंटी के पर’ रखा था। इसकी व्यंजना को उन्होंने सार्थक कर दिखाया है। सुखद आश्चर्य होता है कि कोई इतना सब कुछ इतने कम समय में कैसे कर सकता है। उन्हें अंरतराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय कवयित्री के रूप में जो पहचान मिली है, वह उनकी उनके व्यापक कार्यों का परिणाम है साथ ही इसमें उनकी अनेक वैश्विक यात्राओं का योग भी है। यहां यह कहना भी समीचीन होगा कि उनकी कविता और कार्यों का व्यापक मूल्यांकन होना शेष है। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि भारतीय साहित्य में रति सक्सेना एक बेजोड़ उदाहरण के रूप में इस अर्थ में भी है कि कैसे बहुत कम संसाधनों में बहुत बड़े-बड़े आयोजनों को सफलतापूर्वक आयोजित करना संभव हो सकता है उससे सीखा जा सकता है। उनका कवि-मन और वैश्विक कविता का सफर हम कृति ‘सफर के पड़ाव’ के माध्यम से देख-जान सकते हैं।
यात्रा और अनुभव हो अंतहीन होते हैं किंतु इस कृति में उन्होंने पांच शीर्षकों में अभिव्यक्त अपनी यात्राओं में अपने पाठकों भी सहयात्री बनाने का सफल प्रयास किया है। किसी भी यात्रा-वृतांत की सर्वाधिक सफलता उसकी भाषा में अंतर्निहित होती है। भाषा अनेक तथ्यों को रोचक ढंग से प्रस्तुत करती हुई शब्दों के माध्यम से अपने पाठक को उसी अनुभव लोक में फिर फिर लेकर जाती है। लेखक की सफलता इस बात से आंक सकते हैं कि वह अपने साथ हमें कितनी दूर तक साथ लेकर चल सका है। कहना होगा कि सिकंदर के देश में, स्त्रुगा की काव्य संध्या के बहाने लेखिका रति सक्सेना ‘स्त्रुगा पोइट्री इवनिंग’ का आनंद देती है साथ ही यहां बहुत कुछ नया जानने और समझने का अवसर भी पाठकों को मिलता है। यहां कवि-कविता के साथ-साथ बदलते समय और जीवन के संघर्षों को भी अनेक ऐतिहासिक तथ्यों के संदर्भ में समझने-समझाने का प्रयास किया गया है। यहां प्रत्येक यात्रा में अन्य देशों के जीवन के साथ भारतीय लोक-जीवन, अध्ययन, चिंतन से तुलनात्मक विवरण भी दिया गया है। “मैं सोच रही हूं कि हमारे देश के कितने पाठकों या कवियों को जानकारी भी है कि यह पुरस्कार अभी तक मात्र एक भारतीय कवि को मिला है, जिनका नाम अज्ञेय है। हम कितना गर्व कर पाते हैं इस उपलब्धि पर? वस्तुतः गोल्डन रीथ पुरस्कार विश्व का सबसे बड़ा पुरस्कार है, जो मात्र कविता के लिए है। यह सम्मान नोबल पुरस्कार से भी बड़ा है।” (पृष्ठ- 10)
किसी भी वैश्विक आयोजन में भाषा को लेकर जो बाधाएं और दुविधाएं होती हैं उनका यहां खुल कर वर्णन किया गया है। हम सोचते हैं कि अंग्रेजी वैश्विक भाषा है किंतु बहुत स्थानों पर किस प्रकार अंग्रेजी पंगु हो जाती है। अपनी इस विवश्ता को झेलना कितना संत्रास देता है। हम पढ़े-लिखे होते हुए भी मूक-बधिक अथवा कहें अनेक भाषाओं की जानकारी के बावजूद निरक्षर जैसे हो जाते हैं। ऐसे में यहां यह व्यंजित होना बेहद सुखद प्रतीत होता है कि मानवता और मानवीय संवेदनाओं की भी अपनी एक भाषा होती है। कविता के देश मेडेलिन में ‘मैडेलिन पोइट्री फेस्टिवल, कोलंबिया’ के सिलसिले में वर्णित यात्रा-अनुभव ऐसे मशहूर फेस्टिवल में स्वयं के नाम पहुंचने के आश्चर्य से करते हुए लेखिका ने अनेक संदर्भों और जानकारियों को सोचकता के साथ साझा करते हुए कहीं भी स्वयं को अतिरेक में ले जाकर महान अथवा बड़ा साबित करने का किंचित भी प्रयास नहीं किया है।
अलग-अलग देशों में भाषा के साथ-साथ खान-पान और रहन-सहन के तौर-तरीकों की भिन्नता भी होती है जिसका वर्णन अनेक स्थलों पर देखा जा सकता है। यहां रोचक होगा कि भारतीय स्त्री रति सक्सेना के मन में रुपये-पैसों को लेकर किस तरह की मितव्ययिता है। इसका हवाला अनेक स्थलों पर मिलता है जहां वे अन्य देशों की मुद्राओं से भारतीय मुद्रा में रूपांतरण के साथ विदेशों में महंगे जीवन के कसैलेपन को अभिव्यक्त करती है। जिसके खून में पैसे लुटाना अथवा अपव्यय करना नहीं हो वह कैसे अपने वैश्विक भ्रमण में फूंक-फूंक कर सावधानी के साथ आगे बढ़ती है कि उसे वैश्विक कविता आयोजनों की को-ऑर्डिनेटर कमेटी की मीटिंग में शामिल होने का सौभाग्य मिलता है। यह निसंदेह उनके अध्यनन, मनन और चिंतन का उपहार है जो उन्हें अपने कार्यों के फलस्वरूप एक वरदान के रूप में मिला है।
सफर का हर पड़ाव अपने आप में मनोरम है। ‘अस्मिता की लड़ाई और भाषाई भूमिका, वैलश से ज्यादा कौन सिखा सकता है’ अध्याय में भाषा की बात करते हुए मुझे अपेक्षा रही कि लेखिका अपनी जन्मभूमि राजस्थान की मातृभाषा के विषय को छू लेंगी लेकिन ऐसा नहीं किया गया है। फिर भी इसे एक आदर्श उदाहरण के रूप में हम देख सकते हैं कि कृति में बीच-बीच में कविता और उसकी रचना-प्रक्रिया के साथ अनेक संवादों-कार्यक्रमों से सजी-धजी यह बानगी अपने आप में परिपूर्ण है। बेहद सधी हुई भाषा में यह कृति केवल डायरी अथवा अनुभवों का लेखा-जोखा ही नहीं वरन अपने आप में एक बड़ी कविता है। यह हमें रति सक्सेना के कवि-मन और उनके वैश्विक कविता के सफर से आलोकित- आह्लादित करती है।
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पुस्तक का नाम – सफर के पड़ाव (यात्रा-वृतांत)
कवि – रति सक्सेना
प्रकाशक – कलमकार मंच, जयपुर
पृष्ठ- 96
संस्करण - 2019
मूल्य- 150/-
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० डॉ. नीरज दइया