अन्य विधाओं के लेखकों की तुलना में बाल साहित्यकारों के संपूर्ण अवदान पर लिखना कठिन होता है क्योंकि उनकी सभी कृतियों को एक साथ प्राप्त करना बेहद कठिन कार्य है। बहुत सी किताबों की प्रतियां स्वयं लेखक के पास भी नहीं होती है और होती भी है तो केवल फाइल प्रति। दूसरा यह भी कि बाल साहित्य की किताबों की आवृतियां और रूप-संग-नाम बदल-बदल कर प्रकाशक अपनी व्यावसायिक सुविधाओं के अनुसार करते रहते हैं। तीसरी और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बात यह भी है कि बाल साहित्य को अब भी साहित्य में जिस गंभीरता से लिया जाना चाहिए वह नहीं लिया जाता है। आलोचना के नाम पर बहुधा रचनाओं के सार को प्रस्तुत करते हुए टिप्पणियां देखी जाती है और कहीं-कहीं तो लेखक के यशोगान से ही समीक्षा की इतिश्री मान ली जाती है। जबकि बाल साहित्य लेखन, समीक्षा और आलोचना में भी लेखकीय गंभीरता, तुलनात्मक भाव और जिम्मेदारी- जिम्मेदारी-जवाबदेही की मांग अंतर्निहित है। जब हम गोविंद शर्मा के बाल साहित्य खासकर बाल कहानियों के अवदान पर चर्चा करते हैं तो सबसे पहला सवाल यही आता है कि उन्होंने अब तक कितनी बाल कहानियां लिखी है? यह शोध-खोज का विषय है। इसका सही सही उत्तर मेरे पास नहीं है किंतु यहां यह भी कहा जा सकता है कि साहित्य में इस प्रकार के संख्याजाल की आवश्यकता ही क्या है?
यह सर्वविदित सत्य है कि हिंदी साहित्य को गोविंद शर्मा ने अनेक श्रेष्ठ बाल कहानियां दी हैं और उन्हें बाल साहित्य के वरेण्य लेखक के रूप में पहचना जाता रहा है। हम यह भी जानते हैं कि विपुल मात्रा में लेखन करने से ही कोई लेखक श्रेष्ठ अथवा महान नहीं हो जाता है। लेखन में तो वही श्रेष्ठ और महान माना जाता है जो कि किसी विधा विशेष में श्रेष्ठ देने के निरंतर प्रयासों में ऐसा कुछ रच देता है कि जिसे पढ़कर लगता है कि यह लेखक का विधा को श्रेष्ठत्तम अवदान है। गोविंद शर्मा के बाल कहानी साहित्य को देखेंगे तो उनकी अनेक कहानियां इस कसौटी पर खरी उतरने वाली है। सर्वाधिक चर्चित और साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत कृति की शीर्षक कहानी ‘काचू की टोपी’ स्वयं में एक ऐसी अद्वितीय बाल कहानी है जो देशकाल की सीमाओं को लांघती हुई दूर तक यात्रा करने वाली कालजयी रचना है। गोविंद शर्मा की रचनाओं में श्रेष्ठता के अनेक सूत्र होने के प्रमाण में एक यह तथ्य भी वर्णित किया जा सकता है कि उनकी अनेक बाल कृतियों के अनुवाद विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनूदित होकर बेहद चर्चित रहे हैं। यह सिलसिला निरंतर जारी है। उनके कथा कौशल का ही यह प्रतिफल है कि राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत से ‘डोबू और राजकुमार’ (2010), ‘सागर में गागर’ (2019) और ‘सूरज का बिल’ (2023) जैसी अनेक पुस्तकें हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।
‘डोबू और राजकुमार’ मूलतः एक रोचक बाल कहानी है जिसका राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत ने सचित्र स्वतंत्र पुस्तिका के रूप में प्रकाशन किया है। इस कहानी के माध्यम से लेखक रूढ़ अवधारणाओं को प्रति मूल्यांकन का भाव प्रस्तुत करते हुए उन्हें बदलने का आह्वान करता है। कहानी में बाल्यकाल में राजकुमार एक गधे के बच्चे को पसंद करता है और उसे दोबू नाम देता है। इस बाल कहानी का विकास मनोवैज्ञानिक ढंग से किया गया है कि डोबू द्वारा ऐसे अजब-गजब कारनामें कहानी में होते चले जाते हैं कि उसका महत्व प्रतिपादित होने लगता है किंतु गधे यह सब कैसे कर सकता है ऐसे में समाज के बने बनाए मूल्यों की साख गिर जाएगी। कहानी कहीं प्रत्यक्ष में कोई संदेश व्यक्त नहीं करती है किंतु बहुत गंभीरता से अपने पाठकों पर असर छोड़ती है। किसी लोककथा की भांति कथारस से भरपूर यह कहानी राजस्थानी लोकथा जगत को स्पर्श करती हुई रूढ़ समाज अवधारणाओं को ध्वस्त करते हुए उन्हें नई दृष्टि से देखने का बालकों को साहस देती है। किसी भी परिस्थिति को परंपरागत ढंग से देखना बुरी बात नहीं है, किंतु अपनी परंपरा में समय के साथ आधुनिकता के द्वारा परिष्कार और नए संदर्भों में परिमार्जन भी बहुत जरूरी है।
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत द्वारा सचित्र लघु-पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित बाल कहानी ‘सागर में गागर’ एक क्लासिक रचना के रूप में देखा जा सकता है। इस कहानी में एक गागर के माध्यम से लेखक ने न केवल बच्चों को सागर की सैर करा दी है वरन उन्हें कुछ रहस्यों से अवगत कराते हुए पर्यटन के महत्त्व को भी प्रतिपादित किया है। बाल साहित्य में बाल पाठकों की आयु का विशेष महत्त्व होता है जिसे इस पुस्तिका में विशेष रूप चिह्नित किया गया है। यह पुस्तिका आयुवर्ग 6 से 8 वर्ष के लिए है। इस कहानी में किसी परंपागत कहानी के रचाव का अनुसरण नहीं करते हुए आरंभ में एक बच्चे के हाथ से सागर में गगर को गिरते हुए प्रस्तुत किया गया है। यहां कोई रूढ़ बंधन भी नहीं है कि बच्चे ने गागर को खो दिया तो उसके घरवाले उसकी क्या हालत करेंगे। यह सर्वविदित सत्य है कि बच्चों और प्रकृति का गहरा रिश्ता होता है। वे प्रकृति के रहस्यों को जानना-समझना चाहते हैं। उन्हें ऐसे घटक बेहद पसंद होते हैं जो रोमांचकारी हो। बच्चों के मन के बहुत करीब जो जो कहे जा सकते हैं उनमें पानी और मछली प्रमुख नाम हैं। सागर की यात्रा में लेखक ने गागर के माध्यम से अनेक भेदों को खोलते हुए उसका संवाद मछलियों और चिड़िया से दिखाया है। गागर में बच्चों की कोमलता और भय की भावना भी प्रभावित करने वाली है। वह अंत में एक चिड़िया के लिए आश्रय स्थल बनती है और चिड़िया उसी गागर में अंडा देती है। कहानी को रोचक ढंग से अंत में पुनः बच्चों तक पहुंचाया गया है। ऐसा लगता है कि अपने अंत से यह कहानी फिर से आरंभ होती है। असल में यह कहानी पृथ्वी के गोल होने को भी प्रस्तुत करती है। गागर जैसी वस्तु का घूम-फिर कर वापस धरती पर आ जाना बच्चों के लिए बेहद सुखद है। ज्ञान, विज्ञान और मनोरंजन से भरपूर ऐसी रचनाएं बाल पाठकों को बेहद प्रभावित करती हैं।
गोविंद शर्मा को बाल साहित्य में मुख्य रूप से पर्यावरण चेतना और विज्ञान लेखन के लिए भी जाना जाएगा। ‘सूरज का बिल’ नामक कहानी पुस्तिका को भी राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत ने प्रकाशित किया है। इस सुंदर, सरस और सहज लघु पुस्तिका में एक ऐसी बाल कहानी का रचाव हुआ है जिसमें सूरज और चांद का संवाद प्रस्तुत किया गया है। यह कृत्रिम वार्तालाप इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है कि वह आडंबर रहित और वास्तविक जैसा प्रतीत होता है। यह बेहद प्रासंगिक इसलिए भी है कि बच्चों को बचपन से ही ऊर्जा के विभिन्न रूपों के महत्व को यह पुस्तक रोचक ढंग से सीखने का काम करती है। यह पुस्तक आयुवर्ग 8 से 10 वर्ष के बच्चों के लिए प्रकाशित की गई है। इसमें ओजोन मंडल विषयक जानकारी भी प्रदान की गई है। सर्वाधिक उल्लेखनीय बात यह है कि यहां लेखक कहीं भी किसी बात को बेवजह आरोपित नहीं करता है, वह किसी बात में से नई बात को निकलने का कौशल रखते हुए कथा को इस प्रकार प्रस्तुत करता जाता कि कहीं भी कथा-रस भंग नहीं होता है जो इस कृति की अतिरिक्त विशेषता है।
इसी प्रकार ‘दादाजी की अंतरिक्ष यात्रा’ (2022) और ‘यह कालीबंगा है’ (2022) जैसी कृतियों हैं जिन्हें कथा साहित्य की श्रेणी में तो नहीं रखा जा सकता है किंतु विज्ञान और इतिहास के अनेक रहस्यों को इन में सरस ढंग से उजागर किया गया है। दादाजी ने कभी अंतरिक्ष की यात्रा नहीं की किंतु वे पुस्तकों के माध्यम से इतना कुछ जानते हैं यह तथ्य निसंदेह पुस्तकों के महत्त्व को सुंदर ढंग से उजागर और प्रतिपादित करने वाला है। हमारी सभ्यताओं को जानने के सिलसिले में ‘यह कालीबंगा है’ पुस्तिका बेहद उपयोगी है। इस पुस्तक के माध्यम से इतिहास के ऐसे सच को सचित्र सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है जिसके माध्यम से बाल पाठक अपने अतीत में और गहरे उतरने का प्रयास करेंगे। यह पुस्तिका उनमें धरती और आकाश विषयक रहस्यों के प्रति कौतूहल और जिज्ञासा के अनेक घटक जाग्रत में समर्थ है।
जैसा कि पहले कहा गया है कि गोविंद शर्मा ने विपुल मात्रा में बाल साहित्य लिखा है। उनके समग्र बाल साहित्य के अध्ययन का सौभाग्य मुझे नहीं मिला है और यहां उनके बाल कहानीकार लेखन पर चर्चा के लिए मैंने उनके छह बाल कथा संग्रहों को मुख्य आधार पुस्तकों के रूप में लिया है- ‘काचू की टोपी’ (2017), ‘मुझे भी सिखाना’ (2019), ‘पेड़ और बादल’ (2020), ‘हवा का इंतजाम’ (2021), ‘सबकी धरती सबका देश’ (2022) और ‘गलती बंट गई’ (2023)। इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि दस-बारह किताबों के साथ यह प्रमुख छह बाल कहानियों की पुस्तकें मुझे प्राप्त हो सकी। इन पुस्तकों की कहानियों से गुजरते हुए मैंने पाया कि गोविंद शर्मा के बाल साहित्य लेखन में घर-परिवार और मानवीय संबंधों के साथ बच्चों के लिए नैतिक शिक्षा और संस्कारों पर खास ध्यान दिया गया है। जैसा कि हम जानते हैं कि बच्चों में पशु-पक्षियों और जंगल के प्रति बेहद उत्सुकता रहती है उनकी सुकोमल भावनाओं के अनुरूप अनेक कहानियों में ऐसी दुनिया को हमारी दुनिया के समानांतर रखा गया है, वहीं कुछ कहानियों का प्रमुख विषय विशुद्ध हास्य भी रखा गया है। विशेष बात यह भी है कि आज के सर्वाधिक ज्वलंत मुद्दे पर्यावरण के लिए इन कहानियों में सजगता और हमारे उत्तरदायित्वों को भी वर्णित किया गया है। बच्चों को मिठाइयां और कुछ त्योहारों का विशेष आकर्षण होता है। वे एक दूसरे से मिलने-जुलने और अपनी खुशियों को साथ मनाने में विश्वास रखते हैं इसी की पुष्टि इनकी कहानियों में देखी जा सकती है तो समाज में फैली रूढ़ अवधारणाओं और अंधविश्वासों को खंडित करने वाली भी अनेक कहानियां गोविंद शर्मा ने लिखी है। कहानियों में बाल पात्रों की चतुराई और समझदारी की बातों से निसंदेह वे इस दिशा में आगे बढ़ते हुए देशभक्ति, समाजसेवा और मानवीय मूल्यों का महत्त्व जान सकेंगे। यहां यह कहना आवश्यक है कि गोविंद शर्मा के लेखन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और आधुनिक सोच को प्रमुखता प्रदान करते हुए ऐसी कहानियों की दुनिया को सृजित किया गया है जिसमें बाल मन स्वतंत्र होकर विचरण करते हुए कुछ न कुछ सीखते हुए विकसित होता जाता है।
वर्तमान समय में सबसे महत्त्वपूर्ण और ज्वलंत विषय पर्यावरण-चेतना है। इसी विषय पर सुंदर-सरस दस बाल कहानियां का संग्रह है- ‘पेड़ और बादल’। इस संग्रह की कहानियां बेहद प्रभावी ढंग से अपनी बात कहने का सामर्थ्य रखती हैं। संग्रह की शीर्षक कहानी ‘पेड़ और बादल’ में एक छोटी लड़की गुड़िया के माध्यम से पेड़ों के महत्त्व को बहुत सुंदर कथा-तत्वों के साथ स्थापित किया गया है। बादलों के बरसने का रहस्य पेड़ ही है, इस बात को गुड़िया और बादल के संवाद से सहज संभव करना यहां देखते बनता है। आज आधुनिकता और अद्यौगिक विकास के नाम पर पेड़ों को बचाना क्यों जरूरी है? खेती के अनेक संसाधनों के बाद भी वर्षा का जल क्यों जरूरी है? इन मुद्दों को कहानी स्पर्श करती है। विकास की आंधी में पेड़ों को जिस अंधाधुन गति से काटा जा रहा है, क्या उसी तेजी से बहुत जल्दी पेड़ हम उगा सकने में समर्थ हैं? यह सवाल को कहानी ‘नीम का बीज’ के माध्यम से प्रस्तुत करते हुए कहानीकार गोविंद शर्मा जहां विज्ञान की सीमाओं और संभवनाओं पर प्रकाश डालते हैं, वहीं पेड़ों को बचाने का संदेश भी देते हैं। कहानी को बाल मनोविज्ञान का निर्वाहन करते हुए वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत किया गया है। सरकारी स्तर पर ‘पानी बचाओ, बिजली बचाओ और सबको पढ़ाओ’ की बात क्यों जोर-शोर के साथ की जा रही है? इस बात को बच्चों को समझाने का दायित्व शिक्षकों और हमारे समाज का है। संग्रह में ‘जल कंजूस’ एक ऐसी ही बाल कहानी है जिसमें एक शिक्षक का अपने विद्यार्थियों से सीधा संवाद है। यह कहानी उनके पूर्व प्रकाशित बाल कहानी संग्रह ‘मुझे भी सिखाना’ से ली गई है। इन संग्रहों को कुछ कहानियों की पुनरावर्ती के अतिरिक्त सभी कहानियां नई हैं। ‘जल कंजूस’ कहानी बताती है कि कैसे बातों-बातों में ज्ञान की महत्त्वपूर्ण बातों को सरलता-सहजता से समझाया जा सकता है। बच्चे भी बड़े समझदार हो गए हैं। कहानी के अंत में एक बालक का यह कथन देखें- ‘यही की आपने पढ़ाने का मूड न होने का कह कर भी हमें पानी बचाने का पाठ पढ़ा ही दिया।’ इस बात पर सर केवल मुसकराये और बच्चे हंस दिए। ऐसा ही संदेश संग्रह की एक अन्य कहानी ‘जल चोर’ में देख सकते हैं। पानी बचाने की बात को हमारी जिम्मेदारी के रूप में ग्रहण करना समझना-समझाना इस कहानी उद्देश्य है।
पशु-पक्षियों के लिए पर्यावरण का क्या महत्त्व है? जब आज हमारे गांव परिवर्तित और विकसित होते जा रहे हैं, तो जीव-जंतुओं और पशु-पखेरूओं के आवास स्थानों पर भी विचार किया जाना चाहिए। ‘हमें हमारा घर दो’ कहानी में बदलू के माध्यम से हरियल तोते की बात प्रस्तुत कर कहानीकार ने बाल मन को छूने का प्रयास किया गया है। ‘चलो, मेरी कठिनाई तुम्हारी समझ में तो आई। भैया, मेरी दोस्ती निभानी है, मुझे साथ रखना है तो गांव में रहो। खेती करो या शहर में गांव जैसा माहौल बनाओ। फिर मुझे बुलाना।’ हरियल तोता बदलू के हाथ के नए पिंजरे को घूरते हुए उड़ गया।
आज की अवश्यकता है कि बच्चे जाने कि पेड़-पौधों में भी हमारी तरह जान बसती है। यह खोज करने वाले हमारे भारतीय वैज्ञानिक सर जगदीश चंद्र बोस की बातें आज भी कितनी उपयोगी और महत्त्वपूर्ण है। यह कहना बहुत सरल है किंतु इसी बात को किसी कहानी का आधार बनाना बेहद कठिन है। इस कठिन काम को सरलता से कर दिखाया है कहानीकार गोविन्द शर्मा ने अपनी कहानी- ‘पत्ते नहीं, कान’ में। यह कहानी में ‘मुझे भी सिखाना’ संग्रह से ली गई है। इस कहानी को दो छोटी-छोटी कहानियों या घटनाओं का समुच्चय कहा जा सकता है, जो दस वर्ष के अंतराल पर घटित होते हुए भी एक दूसरे से जुड़कर इसे संपूर्ण बनाती है। पहले प्रसंग अथवा घटना को दूसरे घटना-प्रसंग से जोड़ते हुए बहुत सुंदर कहानी को लेखक ने विकसित किया है। फूफाजी पूजा का प्रसाद खुद तैयार करते हैं और पूजा के लिए पेड़ से पत्ते तोड़ते हैं तो कथानायक का यह कहना- ‘फूफाजी, प्रसाद तो आप अपने हाथ से बनाकर चढ़ाते हैं, पर पत्ते किसी और के लगाए पेड़ से चढ़ाते हैं। कितना अच्छा होता यदि आप अपने हाथ से पेड़ लगाते और उसके पत्ते तोड़कर ले जाते।’ कहानी में यह कथन बड़ा मार्मिक है। नासमझ छोटा बालक नहीं जानता कि बड़ों से इस तरह बात नहीं की जाती है, किंतु उस समय फूफाजी ने उसका कान उमेठ दिया पर बाद में जब फूफाजी को इस बात का मर्म समझ आया तो उन्होंने खुद एक पेड़ लगाया और दस वर्ष के अंतराल में एक पेड़ के पास दूसरा पेड़ खड़ा हो गया। समय के साथ उनकी कुछ आदतें बदल चुकी है, किंतु कुछ पुरानी अभी भी शेष हैं। वे प्रसाद तो अब भी बनाते हैं किंतु पेड़ के पत्ते नहीं तोड़ते और बाद में उनका यह स्पष्ट करना कि पत्ते तोड़ते हुए उन्हें कथानायक के कान उमेठना का अहसास देते हैं बेहद मार्मिक हृदयस्पर्शी तथ्य है।
राजस्थान की वनदेवी अमृता की कहानी हम नहीं भूल सकते हैं। शमी वृक्ष जिसे राजस्थान में खेजड़ी कहते हैं। इसी शमी की लकड़ी यज्ञ की समिधा के लिए बहुत पवित्र मानी जाती है। खेजड़ी को राजस्थान का राज्य वृक्ष घोषित कर दिया गया है। संग्रह की अंतिम कहानी ‘अमृता देवी ने बचाए वक्ष’ में इसी कहानी को प्रस्तुत किया गया है। संग्रह की अन्य कहानियों में भी पर्यावरण विषय को सराहनीय ढंग से प्रस्तुत किया गया है। मुझे नहीं लगता कि हिंदी अथवा अन्य भारतीय भाषाओं में पर्यावरण जैसे जटिल विषय पर इतनी सरस और सहज कहानियां लिखी गई है। इस संग्रह का अन्य भारतीय भाषाओं में अनूदित होने का एक कारण यह भी है।
‘गलती बंट गई’ संग्रह की शीर्षक कहानी में पॉलिथीन के प्रति चेतना जागृत करना उद्देश्य रहा है। जैसा कि मैंने पूर्व में उल्लेख किया है कि गोविंद शर्मा की अनेक कहानियां क्लासिक की श्रेणी में रखी जा सकती है यह कहानी भी ऐसी ही एक यादगार कहानी है जिसमें एक वाक्य या कोई शब्द भी कहीं अप्रत्याशित, अप्रासंगिक अथवा अस्वाभाविक नहीं लगता है। सहजता, सरलता और स्वाभाविकता ही कहानी को उल्लेखनीय बनाने के लिए पर्याप्त हैं। कहानी का नायक बब्बू गाय को सब्जी के छिलके फेंकने के क्रम में पॉलिथीन सहित कूड़ा ले जाता है और संयोग से गाय पॉलिथीन सहित सब्जी के छिलकों को खा लेती है और इस बात से बब्बू बहुत परेशान हो जाता है और उसे अहसास होता है कि उससे बहुत बड़ी गलती हो गई है। यह जिम्मेदारी और दायित्व बोध कहानी के अंत तक आते आते इस प्रकार परिवार में बंटता हुआ चित्रित किया गया है कि उसमें सहजता और सुंदरता के साथ स्वीकार का भाव प्रभावित करने वाला है। बब्बू की इस गलती में उसकी मम्मी, पापा, दादी और दादा भी शामिल हो जाते हैं। पॉलिथीन प्रयोग को बाधित करती यह बेहद प्रभावी कहानी है। इस कहानी में सर्वाधिक प्रभावशाली इसका अंत है जो बाल पाठकों को बेहद प्रभावित करने वाला है। जिसमें दादा जी द्वारा कहा गया है कि किसी गलती को गलती स्वीकार करना बहुत बड़ी बात है और सुधार के प्रेरित होता तथा भविष्य में उसे नहीं दोहराने का संकल्प बड़ा है। यदि हमसे अनजाने में कोई गलती हो जाए और हम उसे मान लेते कि हमसे गलती हो गई है और सोच ले कि आगे से ऐसी गलती नहीं करेंगे तो वह गलती गलती रहती ही नहीं, यह कथन निश्चित रूप से बहुत प्रेरक, यादगार और प्रभावशाली है।
गोविंद शर्मा के बाल कहानी लेखन की यह विशेषता है कि वे जीवन से जुड़े किसी जरूरी मुद्दे को एक सामान्य घटना जैसे वर्णित करते-करते घटना से कुछ जरूरी सूत्र इस प्रकार सृजित करते हैं कि कहानी में जान फूंक देते हैं। ‘गलती बंट गई’ बाल कहानी घरों में सब्जी और अन्य सामान का पॉलिथीन में रखना मिलना एक सामान्य सी बात है। साथ ही यह भी सामान्य है कि कचरे को पॉलिथीन में इकट्ठा करते हैं और उस पॉलिथीन को ही फेंका जाता है जिसे जानवर बचे हुए खाने और सब्जी के छिलकों के मोह में पॉलिथीन को ही अहार बना लेते हैं। निसंदेह ऐसा उनके लिए जानलेवा और हानिकार साबित होता है। यह देशव्यापी ज्वलंत मुद्दा है और किसी बाल मन को इससे प्रभावित भी होना चाहिए, किंतु इस कहानी में बाल के मन के अवसाद को दूर करने के लिए सभी अपने-अपने स्तर पर अपनी गलती को स्वीकार करते हैं। इससे बालमन में किसी प्रकार की कुंठा अथवा हीन भावना विकसित नहीं होती है तो साथ ही जो सजगता निर्मित होती है वह इस कहानी को विशेष रचना के रूप में रेखांकित किए जाने के पर्याप्त है।
‘आजादी की खुशी’ एक बाल कहानी है जिसमें पुराने विषय और मूल्यों की स्थापना को नए ढंग से प्रतिस्थापित किया जाना प्रभावित करने वाला है। पिंजरा और तोता का प्रतीक-रूपक आजादी के संदर्भ में बहुत बार प्रयुक्त हुआ है किंतु यहां लेखक गोविंद शर्मा ने बच्चों की मानसिकता के साथ इस सत्य को अनुपम ढंग से उजागर किया गया है कि बच्चा पिंजरा लिए लिए तोते के पीछे घूमता है। आजादी के सुख के पीछे सभी दूसरे सुख फीके हैं। कहानी के अंत में राजू द्वारा पिंजरे को छत के कोने में जमा कबाड़ में फेंकना और मिट्ठू की तरफ देखकर उसे हाथ हिलाना निसंदेह उसकी खुशी का एक कारण है जो उसे अपने अनुभव से प्राप्त हुई है।
बाल कहानीकार गोविंद शर्मा कहीं विषय में नए घटनाक्रम द्वारा रोचकता पैदा करते हैं तो कहीं भाषा और भाषा के घटकों द्वारा खेल खेल में नए अर्थ की तरफ बाल पाठकों को जाने के लिए उत्सुक कर देते हैं। बाल कहानी ‘शैतान’ में प्रस्तुत नए शब्द सामर्थ्य और पदों के द्वारा भाषा की ऐसी उम्दा कारीगरी प्रस्तुत होती है कि कहानी में छोटी बालिका द्वारा अपने बाल चातुर्य और शब्द सामर्थ्य के साथ भाषिक शक्ति प्रदीप्त होती दिखाई देती है। इसी प्रकार कहानी ‘गोलू के लिए गोलगप्पे’ बाल कहानी में ‘डीसीबी’ और ‘एनसीबी’ के फुल-फॉर्म ‘दादी चाट भंडार’ और ‘नानी चाट भंडार’ प्रस्तुत करना बालकों के लिए मनोरंजक है।
‘गलती बंट गई’ संग्रह की ही एक अन्य बाल कहानी ‘नया फैसला’ में भी बाल मन की चतुराई का एक अनुपम उदाहरण मिलता है जिसमें वह किसी सीधे-साधे परंपरागत फैसले को मानने को तैयार नहीं है। उसके वह हिम्मत और धैर्य के तार्किकता है कि वह किसी तयसुदा फैसले को आधुनिक संदर्भों और वैज्ञानिक दृष्टिकोण द्वारा जांचते-परखते हुए बदलने और युग सापेक्ष फैसला करने की क्षमता रखता है। बिना अनुमति के भूखे का फल खाना ऐसा अपराध नहीं है कि जिसके लिए हाथ काट दिए जाए। स्कूल की प्रार्थना सभा में अतिथि वक्ता द्वारा प्रस्तुत कहानी के संदर्भ में ऐसे साहस भरे कदम की सराहना होनी चाहिए। क्योंकि नायक के फैसले में उसके संर्दभों के साथ मानवीय मूल्यों और सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः की भावना निहित है।
पेड़-पौधों और पक्षियों के प्रति प्रेम की अनेक कहानियां गोविंद शर्मा ने लिखी है जिनमें ‘रास्ते का पानी’ भी उल्लेखनीय कहानी है। इस कहानी में उस समय का वर्णन है जब राजस्थान में पानी का अभाव था और गांवों में दूर-दूर से पानी लाना पड़ता था। ‘सबकी धरती सबका देश’ कहानी संग्रह में ‘चोरी करना छोड़ दिया’ जैसी कहानी के द्वारा लेखक ने चूहा-बिल्ली और कुत्ते के माध्यम से एक नई दुनिया को समानांतर दिखाया है। इन कहानियों में सीधा साधा कठोर यथार्थ भले ना हो किंतु जो जिस रूप में प्रस्तुत हुआ है वह काल्पनिक होकर भी यथार्थ के रूप में प्रस्तुत हुआ है। बाल कहानियों में मूल उद्देश्य मनोरंजन और मनोरंजन के साथ शिक्षा को मानते हुए लेखक ने ऐसी अनेक कहानियां लिखी हैं जिनके कथानक बाल मन को छूने वाले हैं। यह कल्पना की एक नई दुनिया है जो बच्चों को कल्पना के पंख देते हुए उसे इस दुनिया के यथार्थ में जीने का भरोसा और विश्वास के साथ प्रवेश करने का मार्ग प्रस्तुत करती हैं।
गोविंद शर्मा की सभी बाल कहानियों में जो भी पात्र बच्चे हैं वे बहुत भोले और मासूम दिखाई देते हैं। सर्वाधिक उल्लेखनीय कि उनमें जैसा बचपन अथवा बालपन होना चाहिए वह बचा हुआ है। वे शहर और आधुनिकता की हवा में इतने अधिक यांत्रिक और स्वच्छंद नहीं हुए हैं कि सीमाहीन दिखाई दें। बच्चों की कोमलता और भोलेपन को कहानी संग्रह ‘हवा का इंतजाम’ की शीर्षक कहानी में भी देख सकते हैं। इस कहानी में दादा संतलाल जी के लिए कहानी का मुख्य पात्र पांच वर्षीय पोता रघु शहर से कुछ गुब्बारे मंगवाता है जिससे दादा जी के लिए हवा का इंतजाम हो सके और वे उसके साथ गांव में रह सके। ऐसी प्यारी और मीठी बातों वाले पोते को दादा जी भी भला अपने थोड़े से सुख के लिए कैसे छोड़ सकते हैं। कहानी में जो युक्ति प्रयुक्त हुई है वह प्रभावित करने वाली है। इसी भांति बाल कहानी ‘चूहा गढ़ में चुनाव’ के माध्यम से लेखन ने कुछ ऐसी नसीहतें बच्चों को दी है जो देखने में बहुत सरल प्रतीत होती है किंतु उन्हीं बातों को प्रस्तुत करने का कौशल अद्वितीय है। चूहों के माध्यम से अनाज के महत्त्व को कहानी में प्रतिपादित किया गया है। अनाज को खराब अथवा बर्बाद नहीं करना चाहिए। यह बात चूहों की सभा और उनके वार्तालाप द्वारा बच्चों के मानस पटल पर अंकित होने की क्षमता रखती है। कहानी को इस प्रकार की सहज सरल भाषा में रचा गया है कि वह जींवत संवादों के माध्यम से जैसे किसी चलचित्र की भांति बाल पाठकों के समक्ष उभरने का सामर्थ्य रखती है।
‘वनराज और गजराज’ कहानी में शेर और हाथी के माध्यम से हमारे समाज में प्रत्येक महान व्यक्ति के महत्व को इंगित करते हुए कुछ ऐसी स्थितियां प्रस्तुत करने का प्रयास हुआ है कि बच्चों को यह अहसास होने लगता कि प्रत्येक में अपनी अपनी क्षमता होती है और उन क्षमता के विकास के साथ-साथ दूसरों की भावनाओं का सम्मान भी किया जाना चाहिए। वनराज शेर का गजराज का महत्त्व स्वीकार करना और भाईचारे का भाव कहानी को नए रंग देता है। इसी प्रकार ‘कला की कद्र’ हो अथवा ‘हौसले की उड़ान’ कहानी को देखेंगे तो उसमें सेठ जी के द्वारा कलाकार के साथ साथ उसे बचाने वाले आम आदमी के प्रति भी आदर का भाव है तो सेवा भाव को भी प्रमुखता देते हुए व्यक्ति के कार्यों और गुणों के महत्त्व को प्रतिस्थापित किया गया है।
गोविंद शर्मा ने अब तक इतनी कहानियां लिखी हैं कि अब आश्चर्य होता है कि वे हर बार अपनी नई कहानी में नई जमीन को कैसे निर्मित कर लेते हैं। ‘जूते’ बाल कहानी में नए और पुराने जूतों का संवाद प्रस्तुत करते हुए एक छोटे से कृत्रिम घटनाक्रम से कहानी का रचाव देखने योग्य है इसी प्रकार ‘हाथी पर ऊंट’ कहानी में भी दोस्ती के महत्त्व के साथ नई कल्पनाओं को कहानी के रंगों में प्रस्तुत करने का हुनर दिखाई देता है। सच तो यह है कि बाल साहित्यकार गोविंद शर्मा की प्रत्येक कहानी अपने रचना संसार में एक परिपूर्ण दुनिया को प्रस्तुत करती है जिसमें बाल मन को स्पर्श करने की क्षमता है।
‘काचू की टोपी’ पुस्तक की शीर्षक कहानी बहुत चर्चित रही है। सच्चाई और ईमानदारी जैसे मूल्यों को इस शीर्षक कहानी में जिस नए अंदाज में प्रस्तुत हुए हैं वह अद्वितीय है। काचू की टोपी में उसका भोलापन और खुद की टोपी के लिए भी जिसे किसी ने चुराया और उसे बिना पूछे वापस लेने में भी चोरी का अहसास होना उसके एकदम सच्चे होने का प्रमाण है। क्या इतनी सच्चाई और ईमानदारी आज के युग में जिंदा है अथवा नहीं है तो क्या उसे जिंदा रखने की आवश्यकता नहीं है? यह कहानी ऐसे छोटे छोटे मासूस से सवाल छोड़ती है। नींद की सजा को अनायास ग्रहण करने और सजा के रूप में ग्रहण करने में विभेद को प्रस्तुत करने वाली इस कहानी के काचू को कौन सा ऐसा पाठक है जो एक बार पढ़ने के बाद भूल सकेगा। इसी संग्रह की बाल कहानी ‘दोस्ती का पुल’ में दोस्ती और अपनेपन भी भावना को उम्दा ढंग से प्रस्तुत किया गया है तो अन्य कहानियों का भी अपना अपना महत्त्व है। गोविंद शर्मा के बाल कहानियों के लेखन की यह तो एक छोटी सी झलक मात्र है। उनकी अनेक कहानियों पर बात की जा सकती है। बहुत से अन्य बाल कहानी संग्रह भी हैं जो मैं नहीं देख सका उनमें भी अनेक उम्दा कहानियां होंगी तो कुल मिलाकर यह कहना उचित जान पड़ता है कि लेखक गोविंद शर्मा ने बाल कहानियों के रचाव के अनेक मुकाम देखें-परखें हैं और अब वे सिद्धहस्त बाल कहानीकार के रूप में हमें ऐसी बाल कहानियां दे रहे हैं जिनसे बाल साहित्य का एक मानक निर्धारित हो रहा है। ऐसा बहुत कम हुआ है कि किसी लेखक की बाल कहानियां किसी क्लासिक रचना की भांति गहरे तक मन पर छाप छोड़े और वह लंबे समय तक स्मृति में किसी मीठी याद सी बनी रहे। यहां यह भी लिखना जरूरी है कि लेखक गोविंद शर्मा की लंबी और विपुल साहित्य साधना के बाद भी उन्हें जो मान-सम्मान मिलना चाहिए वह हिंदी आलोचना द्वारा नहीं दिया गया है। मूल्यांकन के अभाव के चलते उनकी पूरी यात्रा को अब तक देखा परखा नहीं गया है, मुझे विश्वास है कि यदि भविष्य में ऐसा होगा तो गोविंद शर्मा को हिंदी साहित्य के इतिहास में एक वरेण्य लेखक के रूप में रेखांकित किया जाएगा।
गोविंद शर्मा के अधिकतर बाल कहानी संग्रह जयपुर से प्रकाशित हुए हैं और लगभग सभी संग्रहों में सुंदर चित्रों और आकर्षक साज-सज्जा द्वारा प्रकाशक ने पर्याप्त ध्यान देकर इनकी गुणवत्ता में श्रीवृद्धि करने का सराहनीय प्रयास किया है। बाल साहित्य की पुस्तकों में साज-सज्जा और अक्षरों को फोंट आदि पर भी ध्यान देने से उनकी उपयोगिता द्विगुणित हो जाती है। अंत में यह कहा जा सकता है कि बाल साहित्यकार गोविंद शर्मा के लेखन में सर्वाधिक उल्लेखनीय और प्रभावित करने वाले घटक की बात करें तो वह है कहानीकार का अपनी रचनाओं में बिना किसी उपदेशक की भूमिका ग्रहण करते हुए बाल मन के समक्ष सुंदर संदेश शिक्षा देने के भाव में मनोरंजन का पूरा पूरा ध्यान रखना और अपनी प्रत्येक कहानी को नई चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए उसमें सफल होना है। साथ ही यहां यह भी रेखांकित करने योग्य है कि गोविंद शर्मा भाषा और शिल्प के प्रति बेहद सजग लेखक हैं। वे ऐसी कलात्मकता को रूपाकार करते हैं कि जिसमें सहजता और सरलता से अपनी बात कही जा सके। उन्होंने निरंतर रचनात्मकता को बचाते हुए ऐसे हुनर को विकसित कर लिया है कि वे अन्य बाल कहानी लेखकों के लिए अनुकरणीय और वंदनीय हो गए हैं।
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