बाल साहित्य की विविध विधाओं में गंभीरता से लेखन की आवश्यकता को पहचानते हुए डॉ. मोहम्मद अरशद खान जैसे रचनाकार सक्रिय हैं। आपका बाल एकांकी संग्रह ‘पानी की कीमत’ बालोपयोगी एकांकियों का एक श्रेष्ठ संकलन है, जिसमें विभिन्न विषयों पर केंद्रित चौदह एकांकी संकलित है। यहां प्रत्येक एकांकी को रंगमंच की आवश्यताओं को ध्यान में रखते हुए पर्याप्त रंग निर्देशों के साथ प्रस्तुत किया गया है। कम पात्र और सीमित संसाधनों में खेले जाने वाले इन एकांकियों में भरपूर अभिनय की संभावनाएं है वहीं सहजता, सरलता और रोचकता को भी पर्याप्त महत्त्व दिया गया है।
शीर्षक एकांकी ‘पानी की कीमत’ में मंजुल और उसके पापा-मम्मी के माध्यम से एक घटना को चुटीले संवादों के माध्यम से जीवंत बनाने का प्रयास किया गया है वहीं पानी और बिजली के महत्त्व को भी सुंदर ढंग से उकेरा गया है। सुबह सुबह घर में पानी की जिस प्रकार से किल्लत प्रस्तुत की गई है वह अतिशयोक्ति भी लग सकती है किंतु रंगमंच के लिहास से यह जरूरी भी लगता है। नाटक और एकांकी में अन्य विधाओं से इतर संभावनाएं अधिक इसलिए भी होती है कि इनको केवल पढ़ा नहीं वरन मंच पर खेला भी जाता है। दृश्य-श्रव्य माध्यमों में प्रयोग और प्रभाव की क्षमताएं अधिक मुखर होती हैं। ‘पानी की कीमत’ महज एक संकेत है कि हमारी दुनिया में एक बड़ा संकट दौड़ा आ रहा है। इस विषय से मिलता-जुलता या कहें इससे भी प्रगाढ़ रूप में यही संकेत ‘जल है तो कल है’ एकांकी में देख सकते हैं। इस एकांकी में दादाजी का संवाद देखें-
“सिर्फ 3 प्रतिशत, बाक़ी 97 प्रतिशत पानी खारा है, जिसका इस्तेमाल पीने के लिए नहीं किया जा सकता। इसमें से भी सिर्फ 1 प्रतिशत पानी तरल रूप में है, बाकी बर्फ के रूप में ग्लेशियरों में जमा है। दुनिया की कुल आबादी का 16 प्रतिशत भारत में निवास करता है। पर हमारे पास पीने योग्य पानी सिर्फ 4 प्रतिशत ही है। (गहरी साँस लेकर) बेटा, यह बहुत बड़ी सच्चाई है कि खाने और तमाम दूसरी ज़रूरतों के सामान हम या तो पैदा कर लेते हैं या कारख़ानों में बना लेते हैं। लेकिन पानी ऐसी चीज़ है, जिसे न तो पैदा किया जा सकता है और न ही प्रयोगशालाओं में बनाया जा सकता है। इसके लिए हम पूरी तरह प्रकृति की दया पर निर्भर हैं। हम जिस तरह पानी की बर्बादी कर रहे हैं, उससे आनेवाले 5-10 सालों में पीने के पानी का गहरा संकट उत्पन्न हो जाएगा। इसलिए समझदारी इसी में है कि हमें जितनी ज़रूरत हो उतना ही पानी इस्तेमाल करें। साथ ही दूसरों को भी व्यर्थ की बरबादी न करने के प्रति जागरूक करें। हम जितना पानी बचाएँगे, आनेवाली पीढ़ियाँ हमें उतनी ही दुआएँ देंगी।” (पृष्ठ-49)
एकांकी ‘जल है तो कल है’ में बच्चों के द्वारा विविध संवादों में प्रश्नाकुलता से विषय को रोचक बनाया गया है वहीं अंत में दादा जी के संवाद द्वारा जहां तथ्यात्मक विवरण को प्रस्तुत किया गया है वहीं यह एक आदर्श के रूप में प्रेरणा भी है। यह एकांकी न केवल जल के महत्त्व को प्रतिपादित करता है वरन बालकों में जिज्ञास और प्रश्नाकुलता के भाव भी जाग्रत करने में सक्षम है। प्रकृति के अनेक घटक परस्पर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और प्रस्तुत कृति में ‘मैं गंगा हूं’ जैसी एकांकी प्रदूषण की समस्या को सशक्त ढंग से प्रस्तुत करती है। प्रकृति और पेड़ को एक दूसरे का पर्याय कह सकते हैं और संग्रह का पहला एकांकी ‘पेड़ है तो रंग है’ में मैना, तोता, गिलहरी, बंदर, कौआ, चींटी, बादल सभी पेड़ों के महत्त्व को उजागर कर रहे हैं। ‘कौन रोता है?’ एकांकी में भी वृक्षारोपण और वन संरक्षण के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए बालक रोहन और उसके मम्मी-पापा के माध्यम से सुंदर संदेश दिया गया है।
बाल साहित्य में लोक कथाओं और प्रेरक कथाओं को भी एकांकी का आधार बनाया जा सकता है। गुरु नानक देव जी यह कथा हम जानते है कि वे अपने शिष्यों के साथ एक ऐसे गांव में पहुंचे जहां के लोग साधू-संन्यासी लोगों को बिल्कुल भी पसंद नहीं करते थे और वहां के लोगों ने गुरु नानक जी से ऐसा ही व्यवहार किया कि परेशान होकर उस गांव से जाने लगे और गांव के लोगों ने कहा कि खूब आबाद रहो। फिर इसके विपरीत उनकी सेवा करने वालों को गुरुनानक जी से आशीर्वाद मांगा तब उन्होंने कहा- ‘सभी उजड़ जाओ।’ कथा में दुर्जनों को एक जगह आबाद और सज्जनों को उजड़ने यानी समाज में अच्छाई फैलाने का आशीर्वाद दिया। ‘सब बने रहें – सब बिखर जाएं’ एकांकी का आधार यह कथा है। इस कथा को एकांकीकार ने सुंदर ढंग से चार दृश्यों में सजाते हुए भले नानक देव का नाम नहीं दिया हो किंतु उनके उपदेश का निर्वाहन प्रभावशाली रूप में किया है। संग्रह में ‘मन की आंखें’ भी इसी प्रकार का एकांकी है, जिसमें प्राचीन बोध कथा को आधार बनाया गया है।
बाल एकांकी में शिष्ट हास्य का भी समावेश होना चाहिए, इस विचार को ध्यान में रखते हुए एकांकीकार डॉ. मोहम्मद अरशद खान ने ‘एक कक्षा ऐसी भी’ और ‘भगवान के नाम पर’ जैसे एकांकी भी बालकों के लिए लिखे हैं। स्कूलों में अध्यापकों को भले आजकल बच्चों को मुर्गा बनाने और डंडे के प्रयोग पर पाबंदी लगा दी गई हो किंतु नाटक में आंशिक सत्य को भी आधार बनाया जा सकता है। शिक्षक पद की गरिमा बनी रहे का संकेत ‘एक कक्षा ऐसी भी’ में किया गया है तो समाज में संवेदनशीलता, गरीबों के प्रति उदारता जैसे प्रासंगिक विषय को भिखारी पात्र द्वारा ‘भगवान के नाम पर’ एकांकी में प्रस्तुत किया गया है। भाषा शिल्प के प्रभावी रूप के साथ ही गीत-संगीत और कविता का प्रयोग भी पर्याप्त मात्रा में देख सकते हैं, जो विषय को प्रभावी और स्थायी बनाने में समर्थ है। किंतु एक अखरने वाली बात यह है कि प्रकाशक द्वारा अक्षरों के फोंट साइज और भीतरी सज्जा के प्रति ध्यान नहीं दिया गया है। बेहतर होता अगर इस पुस्तक में प्रत्येक एकांकी के साथ कुछ रेखाचित्र अथवा मंचन के कुछ फोटो प्रयुक्त किए जाते। कहना ना होगा कि बाल सहित्य की पुस्तकों में अक्षरों के फोंट साइज को बड़ा कर इसकी रोचकता और उपयोगिता बढ़ाने पर विचार किया जाना चाहिए। आवरण पृष्ठ का चित्र बेहद मोहक और प्रभावी संदेश देने वाला है। पुस्तक के अंतिम अवरण पर लेखक परिचय में प्रयुक्त फोंट साइज को पुस्तक के भीतरी पृष्ठों में प्रयुक्त किया जाता भले पुस्तकों दो भागों में कुछ चित्रों के साथ प्रकाशित होती। समकालीन बाल साहित्य के अंतर्गत विपुल लेखन के बीच ‘पानी की कीमत’ बाल एकांकी संग्रह को एक बेहद जरूरी, पठनीय और उपयोगी पुस्तक कहा जा सकता है।
कृति : पानी की क़ीमत (बाल एकांकी संग्रह)
रचनाकार : डॉ. मोहम्मद अरशद खान
प्रकाशक : न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन, नई दिल्ली
पृष्ठ : 64 ; मूल्य : 150/-
प्रथम संस्करण : 2021
समीक्षक : डॉ. नीरज दइया