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श्रेष्ठ बाल कहानियों का अनोखा गुलदस्ता / डॉ. नीरज दइया

चयन एवं संपादन : प्रकाश मनु
कृति : श्रेष्ठ बाल कहानियां (भाग- 1) पृष्ठ : 64 ; मूल्य : 90/-
कृति : श्रेष्ठ बाल कहानियां (भाग- 2) पृष्ठ : 68 ; मूल्य : 90/-
प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली
प्रथम संस्करण : 2023
समीक्षक : डॉ. नीरज दइया

बाल सहित्य लेखन, संपादन और आलोचना के क्षेत्र में प्रकाश मनु किसी परिचय के मोहताज नहीं है। आपको ‘एक था ठुनठुनिया’ (उपन्यास) पर साहित्य अकादेमी के प्रथम बाल साहित्यकार पुरस्कार-2010 बिजेता होने का गौरव प्राप्त हैं। हम जानते हैं कि बाल साहित्य के अंतर्गत विपुल मात्रा में बाल कहानियों का लेखन हुआ है और अनेक रचनाकारों के विभिन्न बाल कहानी संग्रह भी प्रकाशित हैं। वहीं सुखद है कि चयनित बाल कहानियां और प्रतिनिधि बाल कहानियों के साथ 101 बाल काहनियों का प्रकाशन-संपादन भी हिंदी में मिलता है। यह पहली बार है जब साहित्य अकादेमी द्वारा हिंदी बाल कहानियों के अंतर्गत ‘श्रेष्ठ बाल कहानियां’ शीर्षक से दो भागों में पुस्तकों का प्रकाशन हुआ है। इसी भांति बाल कविताओं का प्रकाशन भी साहित्य अकादेमी ने किया है, जो दिविक रमेश के संपादन में काफी बड़ा संकलन कहा जा सकता है। उसकी तुलना में यहां उस भांति संकलित करने का भाव नहीं है। इस चयन और संपादन की चर्चा करें तो प्रकाश मनु ने तीन पीढ़ियों की 16 महत्त्वपूर्ण कहानियों का चयन दो खंडों के लिए किया है। यहां यह भी उल्लेखनीय है इन संग्रहों के लिए 9 पृष्ठों विशद भूमिका संपादक ने लिखी है, जिसमें संकलित कहानियों पर विस्तार से पत्र के रूप में चर्चा हुई है। श्रेष्ठ बाल कहानियों के पहले भाग में आठ लेखकों की आठ कहानियां और दूसरे भाग में भी आठ लेखकों की आठ कहानियां है किंतु भूमिका पहले भाग वाली ही दूसरे संग्रह में शामिल है। दोनों भागों में दी गई भूमिका ही संकलित कहानियों की बेहतर समीक्षा और व्याख्या है। यह बेहद सुखद है कि हिंदी और भारतीय भाषाओं की अनूदित बाल सहित्य की पुस्तकों का गुणवत्तापूर्ण सुंदर प्रकाशन साहित्य अकादेमी कर रही है। इन दोनों संग्रहों पर समान आवरण है, जिसमें भाग एक में शामिल चार कहानियों की विषय-वस्तु पर आधारित चित्रों का एक कोलाज सुंदर बन पड़ा है।
    श्रेष्ठ बाल कहानियां के दोनों भागों में संकलित कहानियां एक से बढ़कर एक हैं और उनके द्वारा बाल पाठकों को शिक्षा और संदेश को देने के प्रयास हुए हैं, साथ ही इन कहानियों द्वारा बाल साहित्य में बाल कहानी के विकास और प्रयोग को भी रेखांकित किया जा सकता है। समकालीन विषयों को नई और बदलती भाषा-शैली में निर्वाहन करना यहां हम देख सकते हैं, वहीं बच्चों के कल्पनाशीलता की अनेक कहानियां भी लुभाने वाली है। किंतु यह भी सच है कि श्रेष्ठता के लिए किसी का कोई दावा नहीं हो सकता है और प्रत्येक संपादक का अपना-अपना नजरिया होता है। जाहिर है कि यहां कहानियों के चयन की भी अपनी सीमा रही होगी। पहले संग्रह ‘श्रेष्ठ बाल कहानियां’ (भाग- 1) में देवेंद्र सत्यार्थी, आनंदप्रकाश जैन, मनोहर वर्मा, स्वयं प्रकाश, देवेंद्र कुमार, विनायक, उषा यादव और दिविक रमेश की कहानियों को स्थान मिला है, वहीं ‘श्रेष्ठ बाल कहानियां’ (भाग- 2) में क्षमा शर्मा, सुनीता, जाकिर अली ‘रजनीश’, सूर्यनाथ सिंह, साजिद खान, पंकज चतुर्वेदी, अरशद खान और स्वयं संपादक प्रकाश मनु शामिल हैं।
    पहली बात तो इन संकलकों के विषय में यह कि अनुक्रम लेखकों अथवा कहानियों के शीर्षकों के अकादि क्रम अथवा लेखकों की आयु क्रम से प्रतीत नहीं होता, दूसरी अनेक महत्त्वपूर्ण लेखक इसमें नहीं हैं। यह संपादक और चयनकर्त्ता का अधिकार है कि वह किसे शामिल करे अथवा किसे नहीं, किंतु यहां यह भी देखा जाना जरूरी है कि संकलन साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशित हो रहा है। उदाहरण के लिए हरिकृष्ण देवसरे और जयप्रकाश भारती जैसे बड़े रचनाकारों का नहीं होना अथवा राजस्थान की ही बात करें तो यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’, डॉ. भैरूंलाल गर्ग और गोविंद शर्मा जैसे दिग्गज बाल साहित्य के लेखकों का शामिल नहीं होना अखरने वाला हैं। कहा जा सकता है कि इस शृंखला के आगे के भागों में उनको शामिल किया जाएगा तो इन पुस्तकों अथवा भूमिका में इसका कोई संकेत नहीं मिलता है।   
    बाल साहित्य की पुस्तकें के विषय में यह सत्य नहीं है कि वे केवल बच्चों के लिए ही होती है। बाल सहित्य की पुस्तकें जितने चाव से बच्चे पढ़ते हैं उतने ही चाव से बड़े और बूढ़े भी पढ़ते हैं। अभिभावकों को भी बाल सहित्य की पुस्तकों से बहुत कुछ सीखने-समझने को मिलता है। फिर बालकों में भी आयु के हिसाब से कुछ वर्गों को हम अलग अलग रखते हुए छोटे बच्चों और किशोरों के लिए साहित्य को विशेष रूप से रेखांकित करते रहे हैं। ऐसे में बाल साहित्य लेखन, चयन और संपादन में जिम्मेदारी बढ़ जाती है। बच्चों को लेखकों-संपादक द्वारा पढ़ने को क्या देना चाहिए और क्या नहीं देना चाहिए? इस विषय पर भी संवाद किया जा सकता है किंतु फिलहाल विषय यह है कि श्रेष्ठता का पैमाना कैसे निर्धारित किया जाता है? संपादक का कहना- ‘उम्मीद है, हिंदी के विशालकथा समंदर में से चुनी गई तीन पीढ़ियों के लेखकों की एक से एक सुंदर और भावपूर्ण कहानियों का यह सुंदर गुलदस्ता अपनी खुशबू और रंग-बिरंगी झांकी से नन्हे पाठकों को मोह लेगा।’ निसंदेह यह झांकी अनुपम और मनमोहक बन पड़ी है। बाल कहानियां नन्हे पाठकों के लिए हैं, संभवतः इसी कारण संकलित बाल कहानीकारों और संपादक का परिचय इन पुस्तकों में नहीं दिया है। यदि ऐसा है तो हमें विचार करना होगा कि संपादक की विशद भूमिका अथवा उसकी पुनरावर्ती का भी क्या औचित्य है! यह भी खेद का विषय है कि विद्वान संपादक ने भूमिका में जो उन्होंने पत्र के रूप में अपने नन्हे मित्रों को संबोधित की है में प्रस्तुत कहानियों की विशेषताएं और सार तो प्रस्तुत किया है किंतु संकलित लेखकों के इतर तीन पीढ़ियों के अन्य लेखकों का कहीं नामोल्लेख अथवा बाल कहानी के उत्तरोत्तर विकास को रेखांकित नहीं किया गया है। जाहिर है कि तीन पीढ़ियों में वे कहां कहां किन-किन बाल साहित्यकारों को शामिल करते हैं जानना सुखद होगा क्योंकि पहले भाग में देवेंद्र सत्यार्थी (1908-2003) शामिल है तो बीसवीं-इक्कीसवीं शताब्दी में हुए बाल साहित्य के रचनाकारों को संपादक ने तीन पीढ़ी में किस आधार से देखा-परखा है और स्वयं को किस पीढ़ी में कहां रखते हैं। साहित्य अकादेमी ने बाल साहित्य की दिशा में अभी कार्य आरंभ किया है और आशा की जाती है कि जल्द ही वह अपने अन्य प्रकाशनों के मानकों के अनुरूप भी बाल सहित्य के प्रकाशनों के मानक, दिशानिर्देश और प्रारूप निर्धारित कर लेगी। 
 

समीक्षक : डॉ. नीरज दइया


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