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राजस्थान की बाल कहानियों का एक श्रेष्ठ संकलन / डॉ. नीरज दइया

हिंदी और राजस्थानी के प्रख्यात व्यंग्यकार-कहानीकार बुलाकी शर्मा की बालसाहित्यकार के रूप में भी पर्याप्त ख्याति है। साहित्य अकादेमी से सम्मानित शर्मा विगत चार दशकों से अधिक समय से विविध विधाओं में सृजनरत हैं। आपके बाल साहित्य के अवादान की बात करें तो ‘अनोखी कहानी’ (उपन्यास) ‘हमारी गुड़िया’, ‘सरपंच साहिबा’ (नाटक), प्यारा दोस्त’, ‘चमत्कारी ताबीज’, ‘बदल गया शेरू’, ‘पसीने की कमाई’, ‘चुनिंदा बाल कथाएं-कहानियां’ आदि अनेक पुस्तकें हैं, जो चर्चित रही हैं। इसके साथ ही गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के चयनित बाल साहित्य का राजस्थानी भाषा में आप द्वारा किया अनुवाद दो खंडों में साहित्य अकादेमी नई दिल्ली ने प्रकाशित किया है। डायमंड प्रकाशन ने आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर अलग-अलग प्रांतों और भाषाओं के आधार पर अनेक संपादित कहानी-संकलन प्रकाशित किए हैं। इसी योजना में बुलाकी शर्मा ने ‘21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियां राजस्थान का संपादन किया है।

            राजस्थान के बाल साहित्य की बात करें तो यहां अनेक बाल साहित्यकार हुए हैं। इक्कीस कहानीकारों का फोटो-परिचय और एक-एक कहानी इस संकलन में शामिल की गई है। संपादक ने दिवंगत बाल कहानीकारों को शामिल नहीं करने की योजना लेकर कार्य किया, किंतु संकलित बाल कहानीकार हरदर्शन सहगल (1935-2022) दिवंगत हो गए हैं। आपकी बाल कहानी ‘लंगड़ी चिड़िया’ एक बेहद खुवसूरत कहानी है। इस कहानी में निशी के माध्यम से बहुत सहज भाव से लंगड़ी चिड़िया का उदाहरण देकर यह समझाने का प्रयास किया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में सिद्धांत और कार्य के प्रति लगन का होना अनिवार्य है। यही वह सूत्र है जिसके बल पर हमें सफलता मिलती है।

            संपादक बुलाकी शर्मा ने संग्रह के कहानीकारों को जन्म दिनांक से अवरोही क्रम में व्यवस्थित किया है। ‘21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियां राजस्थान’ में लक्ष्मीनारायण रंगा (4 फरवरी, 1934) से लेकर डॉ. सत्यनारायण सत्य (12 जून, 1980) तक को शामिल किया गया है। दोनों रचनाकारों की आयु में 46 वर्षों से अधिक का अंतर है जिसका अभिप्राय यह है कि एक लंबे अंतराल में घटित हुए साहित्य के आरोह-अवरोह और परिवर्तनों की आंशिक झलक भी यहां मिलनी चाहिए। साथ ही संकलित कहानियों में राजस्थान की माटी की महक भी मुंह बोलनी चाहिए। कहानियों में कहीं-कहीं राजस्थानी भाषा का प्रयोग और परिवेश-चित्रण कुछ स्तर तक यह अहसास करता है।

            संग्रह में संपादक बुलाकी शर्मा ने अपनी कहानी ‘सबसे अच्छा सबसे प्यारा’ संकलित की है। इस कहानी में दो पात्रों पवन और राजी के माध्यम से लेखक ने बहुत सहजता से ईमानदारी और भाईचार जैसे जीवन मूल्य को प्रस्तुत किया है। कहानी में जो पात्र आएं है उनके बालमन का कहानी में मर्मस्पर्शी चित्रण हुआ है।

            वरिष्ठ नाटककार लक्ष्मीनारायण रंगा की बाल कहानी ‘वह इंतजार करता रहा’ में ग्रामीन जनजीवन के साथ अपनी मिट्टी के प्रति प्रेम का पाठ है। बाल कहानीकार के लिए यह चुनौती होती है कि वह किस प्रकार कथानक का निर्वाहन करे कि कहानी में पठनीयता-रोचकता बनी रहे। ‘आजादी का आनंद’ (आर. पी. सिंह) में एक पुराने और रूढ़ हो चुके कथानक को आधार बनाकर बालक बंटी का हृदय परिवर्तन द्वारा स्वतंत्रता का संदेश प्रस्तुत हुआ है वहीं ‘झण्डा ऊंचा रहे हमारा’ (डॉ. सत्यनारायण सत्य) में जासूसी कहानी जैसे राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्र में होने वाले बम-धमाके को निरोधक दस्ते द्वारा बालक द्वारा रोकना अभिव्यक्त हुआ है। क्या अब भी हम बच्चों को भूत प्रेत की कहानियां देते रहेंगे। बच्चों में शिक्षा के द्वारा वैज्ञानिक चेतना का विकास हो चुका है और ‘अंधविश्वास से मुक्ति’ (दिनेश विजयवर्गीय) जैसी कहानियां बीते समय की कहानियों का अहसास कराती है।

            बाल कहानी में नयापन और कुछ आकर्षक होना ही चाहिए। जैसे कहानी ‘हबपब टोली’ (मुरलीधर वैष्णव) की बात करें तो इसके शीर्षक में एक आकर्षण अर अर्थ में छिपा कर रखा गया है। हबपब का अभिप्राय- ‘हरियाली बढ़ाओ, पर्यावरण बचाओ’ नवीन है किंतु कहानी के विकास में शिव के दर्शन का तथ्य जोड़ना कहानी को रूढिगत मूल्यों की तरफ ले जाना है। इसके इतर वहीं कहानी ‘पेड़ और बादल’ (गोविंद शर्मा) में देखेंगे तो वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ इसी तथ्य को बहुत सुंदर ढंग से प्रतिपादित किया गया है। वरिष्ठ लेखिका विमला भंडारी ने भी अपनी कहानी ‘फूल खिले गली-गली’ के माध्यम से आकर्षक ढंग से फूलों के महत्त्व को रेखांकित करते हुए दो भिन्न-भिन्न संस्कृतियों की झलक से कहानी को अधिक जानने-समझने और सीखने का उद्गम बनाया हैं। ‘फूलों जैसी ऐलेना’ (इंद्रजीत कौशिक) में जहां बच्चों और फूलों की तुलना है वहीं ‘समझ गया सूरज’ (रेखा लोढ़ा ‘स्मित’) में पेड़ और कागज के संबंध बताते हुए कागद की बर्बादी को रोकने का सुंदर संदेश है।

            बाल कहानियों में संदेश को किस प्रकार जीवनानुभव के साथ प्रस्तुत किया जा सकता है इसका एक नमूना ‘बाल वाटिका’ के संपादक और प्रख्यात बाल साहित्यकार डॉ. भैरूंलाल गर्ग की कहानी ‘अपने काम में कैसा संकोच’ में देख सकते हैं। इस बाल कहानी में पढ़े-लिखे और शहरी मानसिकता में जीवन जीने वाले छात्रों को अपने छोटे-छोटे कामों को स्वयं करने का संदेश उनके ही एक ऐसे कार्य से दिया है, जिसमें उनके पश्चात होता है और वे संकल्पबद्ध होते हैं। इसी भावभूमि पर छोटे बच्चों के लिए ‘अपने काम अपने हाथ’ (ओमप्रकाश भाटिया) बाल कहानी में घर-परिवार और विद्यालय द्वारा बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए कुछ सूत्र देती कहानी है। बच्चों को स्वयं अवसर देने की बात अक्सर कही जाती है, यह भी कहा जाता है कि बच्चे गिर गिर कर खुद उठ सीखते है। कहानी इन्हीं बातों को समाहित करती है और खुद काम करने के आनंद के साथ ही उस निराले सुख को भी बालमन से अभिव्यक्त करती है। किसी लोककथा की भांति विकसित होती कहानी ‘खुशी दो, खुशी लो’ (राजकुमार जैन ‘राजन’) में भी बच्चों के लिए एक सुंदर संदेश भाषिक कौशल और शिल्प के प्रयोग से प्रतिपादित हुआ है।

            बच्चों के जीवन में किताबों का कितना महत्त्व हो सकता है इस बात को केंद्र में रखते हुए ‘बेकार तोहफा’ (कुसुम अग्रवाल) कहानी में सुंदर ढंग से दो दोस्तों के माध्यम से कहानी को आगे बढ़ाया गया है तो ‘दादी बदल गई’ (इंजीनियर आशा शर्मा) कहानी में लोक मान्यताओं के बदलाव को सुंदर ढंग से दिखाया है। कहानी में बिल्ली के बच्चे के माध्यम से पशु-पक्षियों से प्रेम की बात है तो साथ में दादी के व्यवहार और विचारों में किस प्रकार सहज परिवर्तन हुआ को कहानीकार ने सुंदर ढंग से समायोजित किया है। किरण बादल की कहानी ‘नन्हा जादूगर’ में जहां बालकों में असमानता और वर्ग-भेद को मार्मिक ढंग से रेखांकित कर हमें इस दिशा में सोचने का संदेश दिया है।  

            ‘बड़े बाप की बेटी’ (गोविंद भारद्वाज) की कहानी में फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता के आयोजन को केंद्र में रखते हुए विनम्रता के संदेश दो सहेलियों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। ‘मम्मी का बचपन’ (कीर्ति शर्मा) और ‘मनु मन से अच्छा’ (डॉ. पूनम पाण्डे) आदि अनेक कहानियां जिन पर बात की जा सकती है। यहां संग्रह में संकलित कहानी ‘पापा झूठ नहीं बोलते’ (डॉ. अंजीव अंजुम) के शीर्षक को देख प्रसिद्ध बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा की इसी नाम से प्रकाशित पुस्तक का स्मरण हो आया। एक ही शीर्षक पर दो कहानियां लिखी गई है किंतु जो सहजता-सरलता दीनदयाल शर्मा की कहानी है वह अंजुम के यहां दिखाई नहीं देती है।

            बालमन की बात इन बाल कहानियों और कहानीकारों को लेकर करें तो अलग अलग स्तर पर देख सकते हैं। कुछ कहानियों में अभी भी बच्चों को वही छोटे और पुराने जमाने के बच्चों जैसा चित्रित किया गया है, किंतु कुछ में बच्चे समय के साथ आगे बढ़ते हुए इक्कीसवीं सदी के नए बच्चे अपनी भाषा और कार्यों से लगते हैं। यहां राजस्थान के अनेक बाल साहित्यकार छूट गए हैं अथवा कुछ को संख्या और की सीमा के कारण छोड़ दिया गया है। किसी रचनाकार को शामिल करने का अथवा नहीं करने का फैसला संपादक का होता है। फोंट साइज थोड़ा बड़ा और कहानियों के साथ यदि मनभावन चित्र होते तो यह सोने पर सुहागा होता। यह राजस्थान की बाल कहानियों का एक श्रेष्ठ संकलन है और इसे बाल साहित्य की एक जरूरी किताब कहा जा सकता है।  

  समीक्षक : डॉ. नीरज दइया, बीकानेर (राज.)

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21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियां राजस्थान (बाल कहानी संग्रह)

संपादक – बुलाकी शर्मा

प्रकाशक- डायमंड बुक्स, नई दिल्ली

प्रथम संस्करण- 2022 ; पृष्ठ- 106 ; मूल्य- 150/-

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