सुधीर सक्सेना अपने आरंभिक काल से ही प्रयोगवादी कवि रहे हैं। उन्होंने ‘समरकंद में बाबर’ जैसे कविता-संग्रह से कविता में इतिहास-बोध के कारण अपना अलग स्थान बनाया तो बाद में प्रकाशित ‘रात जब चंद्रमा बजाता है बांसुरी’ में प्रेम कविताओं और ‘ईश्वर हां, नहीं तो...’ में ईश्वर पर केंद्रित कविताओं के कारण बेहद चर्चित रहे हैं। उनकी विभिन्न शहरों-स्थानों और अपने मित्रों को लेकर लिखी गई कविताएं भी उल्लेखनीय हैं। विज्ञान कविताओं की धमक उनके पूर्ववर्ती संग्रहों में देखी-सुनी जा सकती है। उनकी कविता ‘यूरेका’ जो इस संग्रह में संकलित है, इसे उन्होंने बहुत पहले लिखा था जो उनके पूर्व संग्रहों में प्रकाशित भी है। इस कविता की आरंभिक पंक्तियां हैं- ‘अगर पानी में छपाक से/ कूदता नहीं आर्किमिडीज/ तो भला कहां/ होता एथेंस की सड़कों पर/ यूरेका-यूरेका का शोर’ (पृष्ठ-141)
इस कविता संग्रह में एक सर्वाधिक उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि कवि ने बाइस पृष्ठों की भूमिका लिखी है, जिसमें इन विज्ञान कविताओं की जमीन के विषय में बेबाकी से खुलासा किया गया है। साथ ही इन कविताओं के विभिन्न आयामों को उद्घटित करती अनेक बातें पढ़ते हुए कवि की मेधा का पता चलता है। इससे पूर्व के कविता-संग्रहों और उनकी गद्य रचनाएं से मुझे लगता रहा है कि वे इतिहास के विद्यार्थी रहे होंगे, किंतु इस संग्रह से खुलासा होता है वे विज्ञान के विद्यार्थी रहे हैं। यहां यह भी जानना बेहद रोचक है कि उनके आरंभिक आध्ययन-काल में उनको विज्ञान किस प्रकार आकर्षित करता रहा था। यहां कवि के ज्ञान और गहन चिंतन का लोहा मानना होगा कि किस प्रकार एक विद्यार्थी की वैज्ञानिक दृष्टि विकसित और परिमार्जित होती है। इसी के बल पर कवि आगे चलकर आविष्कारों को कविता में रूपांतरित करना संभव बनाते हैं। इतिहास और विज्ञान जैसे नीरस और तथ्यात्मक विषय से कविता खोजना कोई सुगम और सहज कार्य नहीं है। सुधीर सक्सेना ने आंकड़ों पर आधारित प्रयोगों के विषय पर कविताओं की सरस और मार्मिक अभिव्यक्ति संभव कर हिंदी कविता को अद्वितीय योगदान दिया है। मैं स्वयं विज्ञान विषय का विद्यार्थी रहा किंतु जिस प्रकार से इस कविता संग्रह में विज्ञान के विविध विषयों को व्यापकता के साथ प्रस्तुत किया गया है, वह हैरतअंगेज करने वाला है। क्या रामानुज, होमी जहांगीर, जे. सी. बोस, आर्यभट्ट, सी. वी. रमन, विश्वेश्वरैया आदि पर कविताएं करना संभव है? इस प्रश्न और ऐसे ही अन्य अनेक प्रश्नों के उत्तर केवल और केवल सुधीर सक्सेना जी ‘हां’ में दे सकते हैं। इन कविताओं में बड़े पैमाने पर विज्ञान का जादू, रहस्य, रोमांच जैसे किसी संगीत के साथ अभिव्यक्त हुआ है। डॉ. अनामिका अनु की इस बात से सहमत हुआ जा सकता है- ‘इन कविताओं को पढ़ना खेती, उद्योग, स्वास्थ्य, परिवहन और जीवन के सभी क्षेत्रों में वैज्ञानिक हस्तक्षेपों को काव्यात्मकत समीक्षा से गुजरना भी है।’
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सलाम लुई पाश्चर (कविता संग्रह) सुधीर सक्सेना
प्रकाशक : आईसेक्ट पब्लिकेशन, ई-7/22, एस.बी.आई. आरेरा कॉलोनी, भोपाल
संस्करण : 2022 ; पृष्ठ : 184 ; मूल्य : 250/-
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