संग्रह ‘चालाकी नहीं चलेगी’ में 14 बाल कहानियां है और सभी कहानियों में मुख्य पात्र ईमानदार सत्तू कुम्हार और बेईमान चंदू कुम्हार को बनाया गया है। दो मुख्यों पात्रों के आधार पर हर बार नई कहानी को बुनना और कहानी के अंत में सीख के रूप में दो-चार पंक्तियों को काव्यात्मक रूप से जोड़ना, उनका एक सफल शैल्पिक प्रयोग है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह कृति एक ऐसे जीवन की बड़ी कथा को खंड-दर-खंड प्रस्तुत करती है जिसमें धर्म-अधर्म, सत्य-असत्य, ईमानदारी-बेईमानी जैसे दो ध्रुव है और जाहिर है बच्चों को यदि इनमें अंतर समझ आ जाए तो वे देश के लिए मूल्यों का निर्माण कर सुयोग्य नागरिक बनेंगे। वहीं दूसरे संग्रह ‘गजराज की वापसी’ में 9 बाल कहानियां है और सभी कहानियों में अलग-अलग जीव-जंतुओं को केंद्रीय चरित्र के रूप में उपस्थित करते हुए बच्चों को उनके प्रति ऋणी होने की प्रेरणा दी गई है। गाय, बंदर, हाथी, बैल, कछुआ, मोर, घोड़ा, गधा और बकरी को लेखन में केंद्रित करते हुए हमारी संवेदनाओं की बात की गई है, वहीं वन्य जीव संरक्षण आदि कानून का उल्लेख करते हुए प्रत्येक मनुष्य को जीवों के प्रति सद्भवाना रखने का उद्देश्य भी इन कहानियों में प्रमुखता से रखा गया है। लेखक ने इस कृति की भूमिका में लिखा भी है- ‘मनुष्य को इन बेजुबान निरीह और मासूम जानवरों के साथ प्यार से पेश आना चाहिए, क्योंकि ये पशु-पक्षी भी मनुष्य की तरह ही प्रकृति-चक्र का एक हिस्सा हैं। इसलिए पृथ्वी, पर्यावरण और प्रकृति की रक्षा के लिए इन पशु-पक्षियों की रक्षा भी उतनी ही आवश्यक है।’
दूसरे संग्रह में मुख्य पात्र सत्तू और चंदू के बीच कमाल की केमेस्ट्री है। वे संग्रह की सभी कहानियों में बार बार मूल्यों का पाठ पढ़ाने के लिए जूझते हैं। पहली कहानी जिस पर संग्रह का शीर्षक रखा गया है- ‘चालाकी नहीं चलेगी’ जो इसी सूत्र वाक्य के रूप में अन्य कहानियों में भी प्रयुक्त होती है। शीर्षक कहानी में चंदू मरी हुई बिल्ली को सत्तू के घर जाकर उसके मिट्टी के बर्तन पकाने वाली जलती हुई भट्टी में डाल देता है। कहानी में पंडित वृंदावन जी को सत्तू सोने की बिल्ली पाप मुक्ति के लिए कैसे भेंट करेगा यह कौतूहल सुंदर ढंग से रचा गया है। वहीं कहानी में इस समस्या का समाधान भी बहुत तरीके से प्रस्तुत हुआ है। सत्तू की समझदारी और तार्किता से रहस्य खुल जाता है और चंदू की फजीहत होती है।
दूसरी कहानी ‘झूठ कभी नहीं छुपता’ में गांव में आतंक शेर का है और सत्तू गांव को शेर से मुक्त करने के लिए साहस दिखाता है। वन विभाग की मदद से वह शेर को पिंजरे में कैद करवा देता है, वहीं चंदू इस का लाभ गांव के प्रधान जी से पाने के लिए झूठा श्रेय लेता है। कहानी प्रेरणा देती है कि झूठ कभी नहीं छुपता है, वह किसी न किसी रूप से सामने आ जाता है और सदा सत्य की जीत होती है। इन कहानियों में मानव मूल्यों की सीख को मनोवैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
‘इंसानियत के नाते’ कहानी में फिर एक नई समस्या के साथ सत्तू और चंदू जूझते हैं और चंदू फिर मात खाता है। एक घायल आदमी जो अंत में चंदू का भाई निकलता है, उसे नहीं बचाकर चंदू का लालची होना और सत्तू का अपना नुकसान कर के भी जीवन को बड़ा और जरूरी समझते हुए किसी घायल को बचाना जैसे घटना क्रम इन कहनियों में कहीं आरोपित या काल्पनिक नहीं वरन सहजता से चित्रित हुए हैं। किसी कहानीकार की सफलता यही होती है कि वह घटनाओं को इस प्रकार समायोजित करे कि सब कुछ कहानी में सत्य जैसा प्रतीत हो। संग्रह की अन्य कहानियों पर भी चर्चा की जा सकती है किंतु यहां प्रत्येक कहानी पर चर्चा करना संभव नहीं है। यह बस यही उल्लेख करना उचित होगा कि अन्य कहानियों में भी इसी भांति चरित्रों के उज्ज्वल पक्ष को उभारते हुए जीवन-मूल्यों के लिए कहानीकार ने विभिन्न स्थितियां और घटनाक्रम रचे हैं, जिनमें कहीं हास्य है तो कहीं रहस्य-रोमांच और प्रतियोगिताओं के साथ शिक्षाप्रद अनुभव। निसंदेह इस संग्रह की सभी कहानियां टेलीविजन के किसी धारावाहिक की भांति हर बार मनोरंजन से भरपूर और क्रमशः आगे बढ़ती है।
‘गजराज की वापसी’ संग्रह की पहली कहानी ‘सचमुच मां’ में दीपू और ज्योति की मां गुजर जाती है। उनके पिता तो पहले ही गुजर गए थे इसलिए वे अनाथ हो गए हैं। भाई-बहन दोनों के साथ गायत्री नाम की गाय भी एक सदस्य के रूप में इस घर में रहती आईं थी, जिसे मां ने मरते वक्त बच्चों का खयाल रखने की बात कही। गायत्री नामक गाय को चौधरी रघुनाथ अपने कर्ज वसूली के रूप में ले जाना चाहता है किंतु गांव वालों के कारण परिस्थिति वश वह नहीं ले जा पाता तो युक्ति पूर्वक गाय को कैद कर लेता है। गाय उसे जीवन-दान देती है और उसे चोरों से बचाती है तो उसका हृदय-परिवर्तन हो जाता है। गाय का महत्त्व हमारे समाज में आदिकाल से रहा है और यह कहानी गाय और मानव संबंधों की एक बेजोड़ कहानी है।
अब शीर्षक कहानी पर बात करें तो गजराज नाम से ही स्पष्ट है कि यह किसी हाथी से संबंधित कहानी है। गजराज की वापसी कहां होगी- जंगल में। सवाल यह है कि गजराज जंगल से आया कैसे और गया कैसे? इस बाल कहानी में मंदिर का पुजारी एक प्रपंच रचता है और सेठ धनपत मल द्वारा गणेश मंदिर में गजराज हाथी का दान लेता है। भगवान गणेश की मूर्ति से तीन-चार दिन से लगातार आंसू बनने की बात कह कर एक कहानी पुजारी बनाता है जिस पर कथानायक प्रखर को यकीन नहीं होता, किंतु वह उस समय कुछ नहीं कर पाता। कहानी में गजराज जैसे हाथी को पकड़ने की प्रक्रिया पर बाल संवेदनाएं जाग्रत होती है कि कितना दुखदाई होता है किसी जानवर को काबू में करना और अपने नियमों में ढालना। कहानी बड़े रोचक ढंग से पुजारी की स्वर्थ भरी करतूतों का पर्दाफाश करती संदेश देती है कि वेजुबान जीवों पर दया रखनी चाहिए।
बाल साहित्य की पुस्तकों में एक सर्वाधिक रेखांकित किए जाने योग्य बात भाषा की शुद्धता की होनी चाहिए। पुस्तक ‘गजराज की वापसी’ में कहीं-कहीं प्रूफ की अशुद्धियां हैं। जैसे- एक ही कहानी में ‘झुन्ड’ और ‘झुण्ड’ शब्द का प्रयोग। बेहतर होता यदि शब्द ‘झुंड’ प्रयुक्त किया जाता। बाल साहित्य की पुस्तकें मानक हिंदी वर्तनी को बेहतर ढंग से संप्रेषित कर सकती हैं। हाथी की कीमत इक्कीस लाख के सौदे में पांच लाख रुपये एडवांस दिए किंतु बाद में बाकी के पैसे लिखने की अपेक्षा रुपये लिखना अधिक उचित होता। दैनिक व्यवहार में हम ‘पैसे’ का उपयोग करते हैं किंतु बड़ी रकम के लिए ‘रुपये’ प्रयुक्त होना चाहिए। इसी प्रकार इस शीर्षक कहानी की दूसरी पंक्ति में- ‘संयोग से कल ही परिणाम आया था’ एक अतिरिक्त छपी पंक्ति प्रतीत होती है। साथ ही यह भी कि कहानी का नायक प्रखर चौहद वर्ष का है और वह गजराज सरीखे विशालकाय हाथी के जख्मों को प्यार से कैसे सहलता सकता है? बाल कहानी में कल्पना भी शामिल होती है। यहां जानवर भी हमारी भाषा में बोलते-समझते हैं, यह सब तो ठीक है किंतु इस परस्पर समझ में कहानियों की भाषा को लेकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण व्यवहारिक स्तर पर होना जरूरी है। यह दो-चार बातें इन कहानियों की श्रेष्ठता की तुलना में नगण्य है, किंतु यदि इन पर भी भविष्य में ध्यान दिया जाए तो सोने में सुहागा उक्ति चरितार्थ होगी। सार रूप में कहें तो डॉ. कमल चोपड़ा बाल साहित्य में एक ऐसा नाम है जिनमें लेखन को लेकर बेहद गंभीरता, सजगता और प्रयोग करने की क्षमता अद्बितीय है। कहना होगा कि डॉ. चोपड़ा की इन कहानियों में भाषा की सरलता, सहजता और प्रवाह के साथ अपने कथ्य को आगे बढ़ाने की योग्यता पाठक को बांधे रखती है। सभी कहानियों के शीर्षक भी अपने ढंग के निराले और प्रेरणास्पद रखे गए हैं। शिक्षा देने वाली ये पठनीय बाल कहानियां बच्चों के यादगार अनुभव में शामिल होने की क्षमता रखती हैं। प्रकाशक ने दोनों पुस्तकों को बड़े सुंदर और मनमोहक ढंग से प्रकाशित किया है। बाल साहित्य की पुस्तकों में साज-सज्जा के साथ यथा आवश्यक चित्रों को भी प्रयुक्त किया जाते तो पठनीयता और बच्चों का पुस्तक के प्रति आकर्षण बढ़ता है।
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रचनाकार : डॉ. कमल चोपड़ा
कृति : चालाकी नहीं चलेगी (कहानी संग्रह)
प्रकाशक : ग्लोबल एक्सचेंज पब्लिशर्स, दिल्ली
पृष्ठ : 72 ; मूल्य : 295/-
प्रथम संस्करण : 2021
कृति : गजराज की वापसी (कहानी संग्रह)
प्रकाशक :आत्माराम एण्ड संस, दिल्ली
पृष्ठ : 64 ; मूल्य : 295/-
प्रथम संस्करण : 2021
समीक्षक : डॉ. नीरज दइया
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