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बाल कहाणी-संग्रै ‘कमाल रौनक रौ’ बसंती पंवार/ डॉ. नीरज दइया

 राजस्थानी री चावा-ठावी लेखिका रूप बसंती पंवार जी रो घणो नांव मानीजै। बां रै इण बाल कहाणी-संग्रै ‘कमाल रौनक रौ’ मांय भांत-भांत री तेरै कहाणियां भेळी बांच सकां। संग्रै री पैली कहाणी जिण माथै पोथी रो नांव राखीज्यो है मांय रौनक रो ग्यान अड़ी बगत मांय आडो आवै। जे रौनक कंप्यूटर अर ई-मेल करण रो ग्यान नीं राखतो तो ना अपहरण करणियां सूं बो बचतो अर ना उण री लाडली बैन खुशी। जीवण मांय कद कांई हुय जावै, किणी नै आगूंच कीं ठाह नीं हुवै। हरेक टाबर नै स्कूल सूं आवती-जावती बगत सावचेती राखणी चाइजै। बियां सावचेती तो ऊमर परवाण जियां-जियां आपां नवी-नवी बातां सीखां बधती जावै। जियां ‘मनकू रा जूता’ बाल काहणी मांय उपभोक्ता रै अधिकारां री बात सवाळ परोटता थकां लेखिका हेत-अपणायत री बात भेळै नवी जाणकारी ई देवै। भणाई री पोथ्यां भेळै बीजी पोथ्यां बांच्यां री बाण हुयां सूं फायदो ई फायदो है। नवी-नवी जाणकारियां मिलै। आपनै लखदाद कै अबार आ पोथी आप बांच रैया हो।

            बसंती पंवार जी री आ पोथी बांचतां म्हनै घणो हरख हुयो कै इण पोथी मांय कोराना काल री केई कहाणियां ई सामल करीजी है। जियां ‘मिनकी अर ऊंदरौ’ अर ‘भालू री समझदारी’ कहाणी री बात करां तो जीव-जिनावरां री कहाणियां नै नवै जुग मुजब परोटणो अबखो मानीजै पण बाल साहित्यकार बसंती जी घणी सावचेती सूं किणी घटना नै कहाणी रै रूप सिरजै कै बा एक यादगार कहाणी बण जावै। कम सबदां मांय जीवण सूं जुड़ी नवी- नवी बातां नै टाबरां मुजब कहाणी मांय ढाळण रो जोरदार काम अठै मिलै।

            टाबरां नै कहाणियां घणी दाय आवै इणी बात नै ध्यान मांय रखता थका बाल कहाणी ‘पढाई’ मांय मैडम कहाणी मांय कहाणी कैवै। कहाणी सूं टाबरां माथै घणो असर हुवै अर बां मांय पढण अर आगै बधण री हूंस हबोळा खावण लागै। सीखवणो जरूरी है पण उण रो ई आपरो एक तरीको हुवै, जियां ‘योग भगावै रोग’ बाल कहाणी रै सिरै नांव सूं ई आ बात खुलती हुय जावै कै इण मांय योग करण री सीख अवस हुवैला। अबै बो बगत है जद कहाणी मांय सीख देवणो कहाणी री कमी मानीजै। सीख नै सीधो उपदेस दांई बाळकां माथै ढोळ देवणो चोखी बात कोनी। कहाणीकार री बुणगट मांय भासा तो जरूरी हुवै ई पण उण सूं बेसी उण नै किण ढाळै बंतळ करता-करता परोटां आ देखण-समझण री बात अठै देख सकां। ‘रंग में भंग’ बाल कहाणी मांय जळ बचावण रै साथै साथै होळी रै मोकै पुसप होळी री बात नै आगै बधावणी जरूरी लखावै। बसंती बरसां टाबरां नै भणावता रैया अर घर मांय ई दादी नानी रै रूप आपरो रुतबो राखै तो बै सावळ जाणै कै टाबरां नै किण बात नै कियां कैवणी चाइजै।

            हंसी-मजाक ई टाबरां नै घणी रुचै, तो इणी ढाळै री कहाणियां- ‘कीं तो गड़बड़ है’ अर ‘यस मेम’ राजस्थानी बाल कहाणियां मांय आवतै मोटै बदळाव नै ई बतावै। इण ढाळै री कहाणियां आ बात मांड’र ठीमर ढंग सूं कैवै कै खुद री भासा अर खुद री जाग्या टाबरां खातर घणी मेहतावू हुया करै। पढाई-लिखाई घणी जरूरी हुवै, पण दूजां री खोड़ खोडावणो का अंग्रेजी रै लारै भाजणो माडी बात है। आधो अधूरो ग्यान फोड़ा घालै इण सारू कोई पण काम खुद री सरधा सारू ई करणो करावणो चाइजै।

            किणनै ई ठा है?’ बाल कहाणी एकदम आधुनिक ई नीं, राजस्थानी मांय उत्तर आधुनिकता रै ऐनाण री बाल कहाणी कैयी जाय सकै। किण पण रचनाकार नै प्रयोग करणा चाइजै अर न्यूटन री बात करता-करता साव मसखरी रै मूड मांय बाळक री चिंतन दसा नै कहाणी मांय राखणो साव नवी बात मानी जावैला। ‘मा’ बाल कहाणी मांय टाबर री जंतराई पछै मा आंसुड़ा क्यूं ढळकावै? इण बात नै टाबर नै समझणो चाइजै। संवेदना अर परोपकार री बात ‘देवण रो सुख’ बाल कहाणी करै। अठै ओ उल्लेखजोग है कै घर मांय दादी-नानी रै हुयां टाबरां मांय संस्कार कीं सावळ अर बेसी ढंग सूं आवै। आज जद घर-परिवारां सगळा न्यारा-न्यारा रैवण लाग्या तो टाबरां नै बाल साहित्य सूं जोड़ण रो काम घणो जरूरी समझ्यो जावणो चाइजै।

            संवेदनावां सूं भरी बसंती पंवार जी री आं कहाणियां रो म्हैं घणै मान स्वागत करूं।

डॉ. नीरज दइया

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