प्रकश मनु जी लिखते हैं- ‘सत्यार्थी जी की कहानियों के इस जादू के कारण उन्हें 'किस्सा बादशाह' भी कहा गया है। उनमें कहानी लिखने की ऐसी उस्तादी थी, जिसका कोई जवाब ही नहीं। इसीलिए अपने जीवन में उन्होंने जो कुछ देखा-भाला, अपनी लंबी यात्राओं में जो अजब-अनोखे अनुभव हुए, उन सबको उन्होंने बड़ी खूबसूरती से इन कहानियों में ढाल दिया है। लगता है, इन्हें पढ़ते हुए हम कहानियों के घने, हरियाले जंगल में पहुँच गए हैं। और फिर देखते-ही-देखते जीवन के कितने ही रंग हमारी आँखों के आगे झिलमलाने लगते हैं।’
परियों की कहानियों और संगीत से बालकों को विशेष प्रेम होता है और संग्रह की पहली कहानी- ‘माटी की महक’ जिस पर कृति का शीर्षक भी निर्धारित किया गया हैम उनके उसी प्रेम को तप्त करने वाली कहानी है। यथार्थ के साथ जादू, रहस्य और रोमांच में पगी इन कहानियों में जमीनी सच्चाई का बोध एक विशेषता है। कहानियां एक नए वितान को खोलती है वहीं विशद अर्थों में इस संग्रह की सभी कहनियों में बच्चे अपनी विभिन्न कलाओं के साथ जमीन से जुड़ाव की शिक्षा भी पाते हैं। संभवतः इसका एक कारण इन कहानियों में कहीं न कहीं लेखक के अनुभव सूत्र जुड़े हुए हैं। कुछ कहानियां तो जैसे संस्मरण को ही कहानी के रूप में प्रस्तुत करते हुए बालकों को जीवन-मूल्यों की शिक्षा दी गई है। इसी प्रकार संगीत कला से जुड़ी कहानी ‘सदारंग-अदारंग’ दो भाइयों की कहानी में कला के साथ स्वाभिमान की बात बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत हुई है।
घर-परिवार और समाज में प्रेम और आपसी सौहार्द की बात ‘मौसी पपीते वाली’ कहानी में बड़े सुंदर ढंग से सामने आती है। कालिंदी फल बेचने वाली का कविता से प्रेम ‘काबुलीवाला’ की याद ताजा कर देता है। कहानी बताती है कि संबंधों में कुछ संबंध हमारे रक्त के संबंधों से भी अधिक धनिष्ठ हो जाते हैं और संबंधों में प्रेम और आपसी विश्वास ही महत्त्वपूर्ण होता है।
बच्चों की जिद्द का एक प्रसंग ‘खाना नहीं खाऊंगा’ में फत्तू के माध्यम से प्रस्तुत होता है जो बिन मां का बच्चा सबको अपने मोह में इतना बांध लेता है कि उसका बिछुड़न सभी के लिए दुखदायी होता है। मूलतः फत्तू का एक भैंस को परिवार के सदस्य के रूप में रखने और नहीं बेचने के तर्क के पीछे बच्चों का बालसुलभ जीव-दया और प्रेम अभिव्यक्त होता है। कहानियों की भाषा और संवाद इतने सहज-सरल है कि कहानी अपने प्रवाह के साथ पाठकों को बांधे हुए आगे आगे खींचती ले जाती है।
मूर्तिकला से जुड़ी कहानी ‘काली शिला’ में भी अपनी जमीन का महत्त्व और मोह उजागर होता है वहीं आधुनिक समय में युवा पीढ़ी का अपनी कलाओं के प्रति मोहभंग की त्रासदी भी व्यक्त हुई है। कहानी कहती है कि रूपम जैसे बालक ही अपनी जमीन और कलाओं से जुड़कर देश का नाम रोशन करते हैं और ऐसे ही बालकों की हमें आज आवश्यकता है।
गांधी जी और देश भक्ति के एक प्रसंग से जुड़ी कहानी ‘पिता के लिए’ इस संग्रह की अनमोल कहानी है। बच्चों के लिए ऐसी कहानियां होनी चाहिए जिनसे उन्हें अपने देश के महापुरुषों के आदर्श का बोध हो वहीं उनमें देश भक्ति, सेवा और त्याग जैसे गुणों का विकास हो सके। इस कहानी में बापू के शब्द बच्चों पर जादू का काम करने वाले हैं। रहस्य, रोमांच और कौतूहल से भरपूर इन कहानियों में मानवीय संबंध में जो मूलभूत मूल्यों को दर्शाने का घटक प्रस्तुत हुआ है वह अद्वितीय है। इसी प्रकार कहानी ‘एक था अमृतयान’ में लेखक का नाम अमृतयान है जिसे नन्हा पुरु ‘घुम्मू बाबा’ कह कर संबोधित करता है में भी गांधी जी के स्मरण-प्रसंग से कहानी में जैसे जान आ जाती है। कहानी लुप्त होती पत्र-लेखन कला को भी अनजाने में छूती हुई हमें प्रेरणा से भर देती है कि सबसे बड़ा काम प्रत्येक देशवासी के लिए देश की रक्षा का भाव है। यह एकदम सच्ची कहानी कहते हुए लेखक ने अपने आने वाली पीढ़ियों के लिए जैसे किसी अनमोल धरोहर को सौंप दिया है।
धन का महत्त्व प्रतिपादित करने वाली कहानी ‘कहानी एक इकन्नी की’ में स्वयं लेखक देवेंद्र सत्यार्थी जी के अनुभव प्रस्तुत हुए हैं। उनकी यात्राएं और देश भ्रमण की कामना जहां देशाटन की प्रेरणा देती है वहीं उसके संघर्षों को भी हमारे समाने सच्चाई के रूप में प्रस्तुत करती है।
संग्रह की सभी कहानियों में भाषा के द्वारा लेखक का कहन जादू जैसे सिर चढ़कर बोलता है। कहानियों में प्रसंगानुकूल पर्याप्त चित्रों की उपस्थिति और साहित्य अकादेमी द्वारा बाल कहानियों का प्रस्तुतीकरण बेहद उत्तम है। साहित्य अकादेमी देश की सबसे बड़ी संस्था है और उनका बाल सहित्य की दिशा में भारतीय बाल साहित्य को प्रकाश में लाने का उत्तम विचार निसंदेश देश के लाखों करोड़ों बाल पाठकों की संभवानाओं को विकसित करने में सहयोगी सिद्ध होगा। इन कहानियों के चयन और सुंदर प्रस्तुति के लिए अलका सोईं जी का बहुत आभार कि उन्होंने इस श्रमसाध्य अनुपन कार्य को कर दिखाया। अंत में फिर से प्रकाश मनु जी के ही शब्दों में- ‘सच कहूँ तो सत्यार्थी जी की बाल कहानियों का एक अलग रंग, अलग आनंद, अलग ख़ुशबू है, जो बच्चों को रिझा लेती है। इस नाते उनकी सुंदर और रसभीनी बाल कहानियों की पुस्तक माटी की महक का आना बच्चों के लिए किसी खूबसूरत उपहार से कम नहीं है।’
समीक्षक : डॉ. नीरज दइया, बीकानेर (राज.)
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रचनाकार : देवेंद्र सत्यार्थी
कृति : माटी की महक (बाल कहानी संग्रह)
प्रस्तुति : अलका सोईं
प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली
पृष्ठ : 68 ; मूल्य : 90/-
प्रथम संस्करण : 2023
समीक्षक : डॉ. नीरज दइया
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