बाल कहानियों में भाषा सरल, सुबोध और सहज हो यह ध्यान रखते हुए लेखक ने अनेक स्थलों पर भाषा के सामर्थ्य का भी परिचय कराया है। अनेक पर्यायवाची शब्दों से बालकों के शब्द-भंडार में वृद्धि का कार्य भी कहानियों में रेखांकित किए जाने योग्य हुआ है। शीर्षक कहानी ‘माँ की महक’ में चूहों की अनोखी दुनिया से बच्चों का साक्षात्कार होता है। एक चुहिया जिसके छह बच्चे हैं और उनकी अपनी दुनिया और दुनिया के विषय में नजरिया इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है कि बाल मन पर वह स्पष्ट छाप छोड़ने वाली है। शिक्षा को बाल कहानियों में आरोपित नहीं किया जाना चाहिए, इस बात को लेखक बखूबी जानते हैं इसलिए जिस सहजता और सरलता से सुकोलम मन में अप्रत्यक्ष रूप से मूल्यों की स्थापना भी इन कहानियों में हुई है। बच्चों में भी छोटे-छोटे चूहों की भांति जानने का भाव गजब का होता है किंतु यह जानना अनुशासित होना जरूरी है। कहानी के अंत में बच्चों को माँ के द्वारा आजादी देना और उसके लिए जरूरी बातों को बड़े दुलार से समझाना उल्लेखनीय है। इसी प्रकार ‘सियारू’ कहानी में भी एक छोटा शृगाल अपने माँ-पिता के प्यार से अपनी दुनिया अपने दोस्त भालू की मदद से रचता है। वह खुद शिकार करता है और नए संसार में जीने के खतरों के प्रति जिम्मेदारी का भाव भी अंगीकार करता है। इन बाल कहानियों में जीव-जंतुओं का जीवन जिस वास्तविकताओं के साथ उजागर हुआ है वह कहीं भी आरोपित या असहज प्रतीत नहीं होता है। ऐसा लगता है कि यह एक समानांतर दुनिया है जो बच्चों के सामने धीरे-धीरे स्वाभाविक रूप से खुलती जा रही है।
कहानियों में घटनाक्रम को इस सहजता से प्रस्तुत किया गया है कि बात में से बात निकलती चली जाती है। ‘कोई बात तो है!’ कहानी में एक शेर का एक चूहे से डरना और उसके शेर दोस्तों का भी डर जाना काल्पनिक अथवा बनावटी नहीं लगता। ठीक इसी प्रकार अंत में गीदड़ के द्वारा रहस्य का खुलना इतना मनोरंजक है कि हंसी और उत्सुकता दोनों का निर्वाहन बखूबी लेखक ने किया है। इस कहानी को पढ़ते हुए पंचतंत्र की कहानियों का स्मरण हो आता है। इसी जमीन पर कहानी ‘आदमी की खोज और...’ में भी गीदड़ और शेर को केंद्र में रखा गया है। आदमी प्रयोग के लिए पहले गीदड़ की पूंछ काट लेता है फिर जोड़ देता है और इसी क्रम में शेर के साथ भी यही घटनाक्रम घटित होता है। कौतूहल के भाव का निर्वाहन करना और भाषा के स्तर पर कहानी में कहीं भी कसावट को कमजोर नहीं होने देना विनायक जी की कहानियों की अतिरिक्त विशेषता है।
‘किस्सा एक आईने का’ कहानी में एक बंदर छोटी लड़की से आईना छीन कर ले जाता है तो एक नया तमाशा आरंभ हो जाता है। आईने में बंदर का खुद को देखना और उससे एक रोचक कहानी को रच देना आसान नहीं है किंतु विद्वान लेखक ने जिस सहजता से घटनाक्रम को विकसित किया है वह देखने योग्य है। हिंदी बाल कथा साहित्य में ऐसी रचनाओं को हम कालजयी कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। बातों-बातों में पति-पत्नी का प्रेम, मां-बेटे का प्रेम और वहीं उस आईने को कोटर में रखना फिर कौवों और उल्लू की अनोखी कहानी से जोड़ देना निसंदेश प्रसंशा योग्य है। कहानी के अंत में आईने को उल्लू के द्वारा नदी में कछुओं के लिए गिराना और वापस आईना उसी लड़की के घर पहुंचना केवल सुखद संयोग नहीं है। कहा गया है कि कला सर्वाधिक वहां होती है जहां वह दिखाई नहीं देती है। विनायक जी की कहानियाँ इस उक्ति को प्रमाणित करती हुई ऐसी कहानियों को हमारे संसार में जोड़ती हैं जो देखने में बेहद सरल है किंतु उसकी बुनावट में कला की निपुणता देखते बनती है।
विशेष उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि इस पुस्तक के विवरण में स्पष्ट अंकित किया गया है कि यह दस से बारह वर्ष के बच्चों के लिए है। बाल साहित्य में इस प्रकार के विभेद से पुस्तक अपने वास्तविक पाठकों तक पहुँचने में निसंदेह सफल होगी। इस कृति का सुरुचिपूर्ण प्रकाशन राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत ने किया है। कृति में चित्रकार पार्थ सेनगुप्ता की बेजोड़ कला से सजी इन कहानियों में सियार, भालू, चूहे, चुहिया, शेर, हिरण, बंदर, बंदरिया, कौवे, कौवी, उलूक आदि जीव-जंतु बोलते दिखाई देते हैं। बाल पाठकों के लिए इन कहानियों के जुड़े भाव और वातावरण के अनुरूप रंगीन चित्रों की मोनमोहक छटा पुस्तक की गुणवत्ता में वृद्धि करती है। इस पुस्तक का पाठ जीव-जंतुओं से जुड़ी बाल कहानियों के शीर्ष अथवा मानक रूप को जानना और समझना भी है। ऐसी आशा की जानी चाहिए कि इस प्रकार की पुस्तकों के प्रकाशन से हिंदी बाल साहित्य
निरंतर समृद्धि को प्राप्त होता रहेगा।
समीक्षक : डॉ. नीरज दइया, बीकानेर (राज.)
कृति : माँ की महक व अन्य कहानियाँ (बाल कहानी संग्रह)
लेखक : विनायक
प्रकाशक : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
पृष्ठ : 52 ; मूल्य : 90/- ; पहला संस्करण : 2023
समीक्षक : डॉ. नीरज दइया
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