अपने समय के किसी कवि और उसक रचना-प्रक्रिया को जानने-समझने के लिए उसके पाठकों और आलोचकों की भी अपनी-अपनी दृष्टि होती है। किसी रचना को रचने के पश्चात उसका कवि भी पाठक हो जाता है। आलोचक भी अंततः पाठक ही होता है। अत्यंत संवेदनशीलता और गहन अंतर्दृष्टि के साथ किसी रचना के पाठ में दूर तक साथ निभाने वाले विशिष्ट पाठक को हम समीक्षक-आलोचक कहते हैं। रचना में निहित अनुभव को सूक्ष्मता के साथ स्वयं अनुभूत करना और किसी रचना के भाव-कला पक्ष को जानने-समझने के काव्यशास्त्र के रूढ़ मानकों से व्याख्या करना दोनों भिन्न-भिन्न प्रविधियां हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि प्रस्तुत कृति में संकलित आलोचनात्मक अध्ययन में रचनाओं के मूल्यांकन में उसकी समाजशास्त्रीय भूमिका, सामाजिक उपयोगिता, रचना का अपने समय और समाज के साथ व्यवहार देखा गया है। आलोचक डॉ. नवज्योत भनोत की सूक्ष्म विवेचना-दृष्टि में कृति की आलोचना करते हुए प्रस्तुत में अप्रस्तुत का विधान और पाठ के संकेतों के निहितार्थ को उजागर करना विशेष महत्त्वपूर्ण है।
समीक्षा और आलोचना भी अंततः रचना रूप है और इनकी सार्थकता मूल्यांकन-आयुधों को रचना के अनुरूप तलाश करने में है। किसी रचना और कृति के समानांतर यहां यह रचना-उपक्रम ‘कविता का उजास’ द्वारा कुछ कवियों और कविताओं को केंद्र में रखते हुए अपने समय-समाज और संबंधों को जानने-समझने का प्रयास है। कविता के इस आलोचनात्मक परिदृश्य में हम जहां कुछ नामचीन कवियों की चयनित कविताओं अथवा कृतियों को देखते हैं, वहीं कविता की परख के समय के साथ बदलते आयुधों को भी देखते है। इस कृति की सर्वाधिक रेखांकित किए जाने योग्य विशिष्टताओं की बात करें तो आलोचक डॉ. नवज्योत भनोत का राजस्थान की कविता पर ध्यान केंद्रित कर उसके व्यापक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करना कहा जाएगा। यहां यह भी स्पष्ट करना जरूरी है कि यहां चयन को लेकर मत-भिन्नता हो सकती है, किंतु यह उनका अपना चयन है और प्रत्येक चयन व्यक्तिगत ही होता है और होना भी चाहिए। यही कारण है कि हम इस कृति में जहां हम ज्ञानेंद्रपति, मंगलेश डबराल अथवा रमणिका गुप्ता जैसे कवियों की कृतियों का गहन मूल्यांकन पाते हैं, वहीं हरीश भादाणी, हरिराम मीणा, मंगत बादल अथवा प्रीता भार्गव सरीखे कवियों की कृतियों के प्रति भी समभाव देखते हैं। यहां यह भी स्पष्ट है कि प्रत्येक चयन की अपनी सीमाएं और संभावनाएं होती है। यहां जो संभावनाएं है वे अधिक व्यापक और विशद है।
निसंदेह इस संग्रह में संकलित प्रत्येक कवि पर पृथक से स्वतंत्र पुस्तक लिखी जा सकती है। कुछ कवियों के संदर्भ में हिंदी में ऐसा कार्य हुआ भी है। यहां किसी कवि की विशिष्ट कृति का चयन उस कृति और कवि की विपुल संभावनाओं को देखते हुए किया है। गहन विमर्श करते हुए आलोचक डॉ. भनोत कविता के विविध पक्षों को वर्णित करते हुए, संग्रह में संकलित प्रत्येक रचना की संभावनाओं को देखने-दिखाने के लिए प्रतिबद्ध है। समय और समाज की तात्कालीन स्थितियों, समस्याओं और सीमाओं को जहां-जहां कविताओं में वर्णित किया गया है, उन्हें यहां विस्तार से रेखांकित करने का प्रयास यह आलोचना-कृति है। यहां किसी कवि के मूल्यांकन हेतु न केवल कृति को आधार बनाया गया है, वरन कुछ पत्रिकाओं में विशिष्टता के साथ प्रकाशित कवियों और विषय केंद्रित कविताओं पर भी विवेचना मिलती है। उदाहरण के लिए ‘ज्ञानोदय’ (मार्च, 2004) में प्रकाशित जल संबंधी कविताओं पर एक आलेख है। ‘अन्यथा’ (जुलाई, 2006) में प्रकाशित अरुण कमल की तेरह कविताएं पर भी आलोचनात्मक आलेख है। इसी प्रकार पत्रिका ‘सृजन कुंज’ (मई, 2021) ने गीताश्री पर विशेषांक प्रस्तुत किया, उस अंक की कविताओं पर लिखित आलोचनात्मक आलेख भी यहां संकलित है।
कवि ज्ञानेंद्रपति के ‘गंगातट’ की कविताओं के बहाने यहां हमारे समय की सर्वाधिक विकट समस्या गंगा के प्रदूषित होते पानी और भविष्य के लिए जल समस्या के प्रति हमारी सजगता का आह्वान है। जल और पर्यावरण की बात गहता के साथ करना आलोचना का रचना पक्ष है। जैसे रचना में विचार और भावना का महत्त्व होता है वैसे ही इस कृति में आलोचना की जिम्मेदारी और जवाबदेही का प्रतिफलन है। यहां यह भी स्पष्ट करना समीचीन रहेगा कि कविता की अपनी सुदीर्घ यात्रा में अनेक उतार-चढ़ाव, वाद-विमर्श रहे हैं किंतु आलोचक डॉ. नवज्योत भनोत किसी एक स्थिति अथवा विशिष्ट विचार-वाद का दामन थाम कर नहीं बैठती हैं। उनकी दृष्टि में व्यापकता के साथ नवीनता को पहचानने की क्षमता है। यही कारण है कि यहां मंगलेश डबराल के संग्रह ‘आवाज भी एक जगह है’ को स्थान मिला है तो हरीश भादानी के ‘सयुजा-सुखाया’ को भी। ज्ञान-विज्ञान समय-समाज के साथ दर्शन और आध्यात्म भी जरूरी है।
हिंदी कविता की मुख्य धारा में जहां अनेक धाराएं है तो कुछ ऐसे क्षेत्र भी है जिनको विशेष रूप से चिह्नित किया जाना जरूरी है। उदाहरण के लिए कवि हरिराम मीणा हिंदी कविता में एक विशिष्ट स्वर के लिए जाने-पहचाने जाते हैं। मुख्यधारा के जीवन के साथ-साथ आदिवासियों का जीवन भी देखा जाना चाहिए। उनके प्रति भी हमारा उत्तरदायित्व है। संग्रह ‘सुबह के इंतजार में’ पर यहां विशद चर्चा मिलती है और हमारा दृष्टिकोण विकसित होता है। आलोचक डॉ. नवज्योत भनोत का यह राजस्थान और राजस्थानी से प्रेम है कि प्रस्तुत कृति में उन्होंने अपने चयन में राजस्थानी कवि श्याम महर्षि के राजस्थानी कविता-संग्रह के हिंदी अनुवाद ‘कुछ तो बोल’ को शामिल किया है। यह कविता में लोक भाषाओं की महक से स्मृद्ध होते कविता-संसार की बानगी है।
मेरा विनम्र अनुरोध है कि जो यहां नहीं है उसकी बात अथवा अन्य से तुलना के स्थान पर जो यहां प्रस्तुत है उसकी व्यापक चर्चा से हम इस कृति और कृतिकार के महत्त्व को जान सकेंगे। वैसे भारतीय कविता के विशद ग्राफ और संभावनाओं को किसी एक कृति में प्रस्तुत करना संभव भी नहीं है, ऐसे में इस प्रकार के आकलन दर आकलन से हम समग्रता की दिशा में आगे बढ़ते हुए समेकित ग्राफ को जान सकेंगे। अंत में एक बार फिर इस आलोचनात्मक उपक्रम के लिए मैं नवज्योत भनोत जी को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं अर्पित करता हूं।
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पुस्तक का नाम : कविता का उजास ; लेखक : डॉ. नवज्योत भनोत
विधा – आलोचना; संस्करण – 2022 ; पृष्ठ संख्या – 128 ; मूल्य – 200/- रुपए
प्रकाशक – बोधि प्रकाशन, जयपुर
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