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सुंदर बाल कहानियों का एक गुलदस्ता/ डॉ. नीरज दइया

कविता मुकेश की चौदहा सुंदर बाल कहानियों का एक गुलदस्ता है पुस्तक- ‘हिना के कबूतर’। शीर्षक कहानी की नायिका हिना बहुत प्यारी और बुद्धिमान बच्ची है। वह पढ़ाई-लिखाई में तो अव्वल है ही साथ ही साथ चित्रकारी में गजब की महारत हासिल है। इतना सब कुछ होने के वाद भी कहानीकार कविता मुकेश से बहुत व्यवस्थित तरीके से बताया है कि वह अपने हमउम्र बच्चों की तरह जीवन नहीं जी पा रही और उसे कुछ मानसिक परेशानी है। दस-पंद्रह साल के बच्चों के लिए आयोजित चित्र-प्रतियोगिता के विषय ‘सहभोह’ के लिए वह एक ऐसे सुंदर चित्र बड़ी मेहनत और लगन से बनाती है कि लगता है उसे ही प्रथम पुरस्कार मिलेगा। उसने चित्र में एक शादी के उपलक्ष्य में ‘सहभोज’ का दृश्य चित्रित किया जिसमें सभी मेहमान जमीन पर बैठकर खाना खा रहे हैं और कुछ चावल के दाने पर्श पर बिखर गए हैं जिनको उसने कुछ पक्षियों को खाते हुए चित्र में दिखाया है। चार पांच दिन की साधाना से यह चित्र पूर्ण होने को था कि इस बीच सच में दो कबूतर उसके चित्र में दर्शाए दानों को चित्र पर बैठकर असली दाने समझते हुए खाने की कोशिश करने लगे। ड्रांइंग शीट में बहुत से छेद हो गए और चित्र वर्बाद हो गया। इस बाल कहानी में यह वह दृश्य है जिसे देख कर हिना सन्न रह गई और अगले ही पल वह जोर जोर से हंसने लगती है। उसकी मम्मी उसके उस व्यवाहर से सतब्ध रह जाती है और उसे समझ नहीं आता कि जो लड़की छोटी छोटी बातों पर सदा आंसू बहाती थी वह इतनी मेहतन से बनाए चित्र के बिगड़ जाने से हंस क्यों रही है?

            ‘हिना के कबूत’ कहानी में बड़ी सहजता सरलता में मनोवैज्ञानिक ढंग से कथ्य का विकास करते हुए हिना से यह कहला देना- ‘मम्मी, आपको तो मुझे शाबासी देनी चाहिए कि मैंने इतना सजीव चित्र बनाया कि कबूतर धोखा खा गए और इन्हें असली चावल के दाने समझ कर खाने आ गए। मुझे तो मजा आ गया मैंने कबूतरों को बुद्धू बना दिया। मुझे मेरे चित्र का पुरस्कार मिल गया।’ उसकी मम्मी ने कबूतरों को असली दाने दिए और इसके बाद जब भी हिना परेह्सान होती और उसके गालों पर आंसू लढ़कने लगते तो उसकी मम्मी ने उसे हंसाने का नया और कारगर तरीका- ‘हिना, तुम्हारे गालों पर कबूतर बैठ गए। इनको उड़ाओ, जल्दी उडाओ।’ पंक्ति के रूप में खोज निकाला जो अपने आप में मौलिक है। कहानी में हिना का पुनः पुनः उस दृश्य का स्मरण करना और हंसना उसकी मम्मी की एक युक्ति है जिसे इस कहानी से गुजरने वाला वाला प्रत्येक पाठक याद रखेगा। याद रखेगा पद के स्थान पर लिखना उचित होगा कि इस युक्ति का इस प्रकार प्रस्तुतिकरण किया गया है कि यह स्मरण में कहीं अटकी रह जाएगी। यही इस कहानी और अन्य कहानियों की सफलता होती है। एक पंक्ति में  कहानी का मूल उद्देश्य कहें तो चित्रकला अथवा किसी भी कला माध्यम में मेहनत और लगन से सजीवता, पूर्णता को प्रस्तुत करना है।

            कविता मुकेश का कहानीकार मन बाल अपनी कहानियों में बच्चों को कुछ न कुछ शिक्षा और संदेश देने की कामना रखते हुए कहानी का रचवा ऐसे करने में हुनरमंद है कि उन्हें पढ़ते हुए कहीं ऐसा नहीं लगता है कि किसी बात को आरोपित किया जा रहा है। बाल कहानी वही सफल होती है जिसमें शिक्षा और संदेश अप्रत्यक्ष हो। कहानी को पढ़ना आरंभ करें तो पता नहीं चले कि यह कहां और कैसे जाएगी। कविता मुकेश के इस संग्रह में संकलित प्रत्येक कहानी अपने आप में अनूठी इसलिए है कि उनके पास बच्चों के कल्पनालोक की गहरी समझ और सूझबूझ है। वे जानती है कि बच्चों का मन पशु-पक्षियों की दुनिया में अधिक रमता है। संभवतः यही कारण है कि ‘गीत का जादू’ में वे सोनल चिड़िया के मधुर गीत को शिल्प में ढालते हुए जीवन में गीत-संगीत के महत्त्व को प्रतिपादित करती हैं। ‘चुग्गा’, ‘गैरी का दाना’ और ‘अलार्म’ जैसी कहानियों में समय के अनुरूप दैनिक दिनचर्या और कार्य के महत्त्व को दर्शाया गया है। बाल कहानी ‘बालदों की सैर’ में एक नन्हे बादल और सोलन चिड़िया के माध्यम से दोस्ती और घर परिवार के महत्त्व के साथ बच्चों को हर समय अपने घर-परिवार और जिम्मेदारियों के प्रति सजग रहने का संदेश है।

            कविता मुकेश के कथा-संसार में बाल पात्रों के साथ चिड़िया, चूहे और विल्ली की अनोखी दुनिया है जिसमें वे एक दूसरे के लिए मिलजुल कर इस दुनिया को बेहतर बनाने की प्रेरणा देते हैं। ‘मयूर के छिपे हुए दोस्त’ एक ऐसी ही कहानी है जिसमें दो चूहे गिनी-मिनी को मयूर अपनी दुनिया में रखना चाहता है तो ‘नुक्कड़ नाटक’ कहानी में चूहे भेष बदलकर विल्ली को डरते हैं। इसी प्रकार ‘रोहित की चाल’ कहानी में भी वह मिकी चूहे को बचाने के लिए बिल्ली को अपनी बातों से खूब छकाता है। बच्चे अपने पर्यावरण और जीव-जंतुओं के प्रति सजग होकर सब के साथ हिलमिल कर रहेंगे, वे दूसरों की भावनाओं को समझेंगे तभी यह दुनिया बदल सकती है। इन विषयों से इतर इस संग्रह में ‘डांस ड्रेस’ और ‘चार्ली माली’ जैसी अनुपम कहानियां भी संग्रहित है जिसमें बालक-बालिकाओं का स्वाभिमान-सम्मान है तो दूसरी तरफ हिम्मत के साथ अपनी गलतियों को समझते हुए उन्हें सुधारने का साहस भी है। इन कहानियों के बच्चे आज की बदलती दुनिया के समझदार और समय के साथ आगे बढ़ते हुए बच्चे हैं जो अपने घर-परिवार की सीमाओं आर्थिक संकटों को भी समझने में सक्ष्म हैं।

            इस बाल कहानी संग्रह को राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर के आर्थिक सहयोग से प्रकाशित किया गया है किंतु यहां यह कहना होगा कि इन बेहतरीन कहानियों का प्रभाव द्बिगुणित हो जाता यदि संग्रह की कहानियों में बीच बीच में चित्र प्रयुक्त किए जाते। ऐसे महत्त्वपूर्ण बाल कहानी संग्रह में चित्रों का अभाव खटने वाला है और कीतम भी।

समीक्षक : डॉ. नीरज दइया 



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