हमारे देश और समाज में कोरोना का आतंक रहा और इस भयावह सच का प्रभाव बाल कहानियों में भी देखा जा सकता है। संकलन में ‘कोरोना वीर’ (अनुपमा अनुश्री) बाल कहानी में लॉकडाउन और उससे पहले की स्थितियों को समझते-समझाते हुए बहुत सुंदर ढंग से हमारे दायित्व-बोध को जाग्रत करने का प्रयास किया है। किरण बादल की बाल कहानी ‘हिम्मत के पांव’ में चंदन के माध्यम से विकलांग मानसिकता पर प्रहार करते हुए दृष्टिकोण बदने का प्रभावी संदेश दिया है। यह बाल कहानी बताती है कि सफलता के लिए दृढ़ संकल्प और निरंतर अभ्यास-कार्य की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार राजकुमार जैन ‘राजन’ की बाल कहानी ‘मौत हार गई’ में कोरोना विषय को उठाते हुए पर्यावरण संरक्षण के महत्त्व को प्रतिपादित किया गया है।
अंजीव अंजुम की बाल कहानी ‘पापा झूठ नहीं बोलते’ बेहद मार्मिक है जिसमें पिता-पुत्र और पुत्र-माता के वर्तालाप के माध्यम से ‘पर्पल आम’ के झूठ को सच साबित करना प्रभावी है। बालक राम के पिता अमरेंद्र शहीद हो गए किंतु उनके मजाक में कहे शब्दों को अपनी मां के आगे सच सिद्ध करने की युक्ति प्रभावशाली है। संवादों और इसी भावभूमि से जुड़ी एक दूसरी बाल कहानी ‘यह भी एक कहानी है’ (दीनदयाल शर्मा) में पांचवी कक्षा की निशा और उसके पिता के मध्य बातचीत है। इस कहानी में पिता अपने जीवन की एक घटना को पुत्री के समक्ष कहानी के रूप में प्रस्तुत करता है। सरल-सहज और प्रसंगानुकूल छोटे छोटे वाक्यों से आगे बढ़ती इस संवाद-कहानी में सहजता के साथ बच्चों के लिए अनेक बातों को प्रस्तुत किया गया है। यह इस कहानी के नायक की सझदारी है कि वह झूठ बोलता है। उसका यह नहीं बताना कि रमन सर ने कनपटी पर थप्पड़ मारा है, उसकी महानता और गुरु-शिष्य परंपरा को दर्शाता है। गुरु को गोविंद से भी बड़ा बताया गया है किंतु क्या सभी गुरु इस महान पद के योग्य भी हैं। वर्तमान परिस्थितियों में बदलते आचार व्यवहार और परंपराओं को पतन को दर्शाने वाली सुंदर कहानी है ‘ऐना की बहादुरी’ (मानसी शर्मा) इसमें गुड टच और बेड टच को विषय बनाया गया है।
अंशु प्रधान ने आजादी के महत्त्व को पिंजरे और तोते के पुराने रूपक को अपने बाल कहानी ‘जुगनू की सीख’ में ढालने का प्रयास किया है तो अनिल जायसवाल ने अपनी बाल कहानी ‘नंबर प्लेट’ में छात्र गोगी के माध्यम से स्कूल पिकनिक के सफर का चित्रण करते हुए बालक की सूझ-बूझ से लुटेरों को पकड़ाया है। स्कूल जीवन से प्राप्त शिक्षा और संस्कारों से एक बालक किस प्रकार योग्य जिला कलेक्टर बन कर अपने गुरु का सम्मान करते हुए शांति और सद्भवना के लिए कार्य है इसका वर्णन राजेश अरोड़ा की बाल कहानी ‘प्रीत लड़ी में सब बंधे’ में हुआ है।
पर्यावरण प्रदूषण पर ‘जंगन का दुःख’ (नरेश मेहन), बच्चों में ईमानदारी के विकास हेतु ‘ईमानदारी की खुशबू’ (प्रकाश तातेड़) और जीव-जंतुओं से प्रेम-अपनापन दर्शाने वाली ‘कोने वाला गड्डा’ (प्रभाशंकर उपाध्याय) भी अच्छी कहानियां है जो मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षा के उद्देश्य को लेकर चलती है। बाल साहित्य में कल्पनाशीलता बेहद जरूरी है। ‘मेंढ़क हंसा’ (मुरलीधर वैष्णव) कहानी में जीव दया के साथ-साथ जीवन में हमें आगे किस प्रकार के कार्यों को करते हुए आगे बढ़ना चाहिए की सुंदर अभिव्यक्ति मिलती है। ‘अभिमानी हवा’ (डॉ. शील कौशिक) में हवा का घमंड दूर करने के लिए सूरज पेड़ों को गायब कर देता है और बिना किसी समझाइस के अपने उद्देश्य को पूर्ण करती है। ‘नया सरदार’ (सावित्री चौधरी) का यह वाक्य देखें- तभी उसे एक पक्षी के बोलने की आवाज सुनाई दी। जिसका मतलब था, ‘मित्र दुखी मत हो, यह फल खा लो।’ यहां उल्लेखनीय है कि बाल पाठकों से पक्षी के बोलने का मतलब समझाने की जगह उससे सीधे संवाद की कल्पनाशीलता को समझा जाना चाहिए।
इस संपादित बाल कहानी संग्रह के विषय में फ्लैप पर सृजन कुंज के संपादक और बालसाहित्यकार डॉ. कृष्ण कुमार आशु ने ठीक ही लिखा है- ‘ये कहानियां बच्चों के हौसले और उनके साहस के साथ-साथ सूझ-बूझ की कहानियां है। ये बालकथाएं समकालीन बाल कहानी का प्रतिनिधित्व करती हैं और बच्चों में इस तरह के संस्कार विकसित करने की प्रेरणा देती है कि उन्हें किसी भी स्थिति में हिम्मत नहीं हारनी है। उन्हें आगे बढ़ना है और कुछ नया करते हुए देश की सेवा करनी है।’ इस बाल कहानी संकलन से गुजरना हमारे समकालीन बाल कहानी के विविध आयामों और रंगों से परिचित होना है। आकर्षक आवरण और सचित्र सुंदर प्रकाशन के लिए संपादिका डॉ. भनोत के साथ प्रकाशक भी बधाई के पात्र हैं।
समीक्षक : डॉ. नीरज दइया
-----आरोहण (बाल कहानी संग्रह)
संपादक – डॉ. नवज्योत भनोत
प्रकाशक- अपोलो प्रकाशन, 25, न्यू पिंकसीटी मार्केट, राजापार्क, जयपुर-04
प्रथम संस्करण- 2022 ; पृष्ठ- 96 ; मूल्य- 200/-
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