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जलम शताब्दी सिमरण- अन्नाराम सुदामा री साहित्य-साधना/ डॉ. नीरज दइया

          राजस्थान शिक्षा विभाग सूं जुड़िया केई रचनाकारां रो नांव आवणवाळै टैम मांय विभाग भूल सकै पण साहित्य रो इतिहास कदैई कोनी भूलैला। विभाग री आपरी सींव अर हिसाब-किताब हुवै, नौकरी मांय जठै कठै कोई काम करै बठै जाणीजै। सेवामुगत हुया पछै ई विभाग सूं जुड़ाव रैवै। इण ढाळै कैय सकां कै जे कोई विभाग रो कर्मचारी किणी पण क्षेत्र मांय कोई नांव हासिल करै तो उण रो जस विभाग नै जावै। साहित्य री बात करां तो शिक्षा विभाग राजस्थान आखै देस मांय फगत अेक इसो संस्थान रैयो जिको आपरै गुरुजनां-कर्मचारियां री रचनात्मकता पेटै सजगता बरता थका बरसां लग पांच पोथ्यां शिक्षक दिवस रै टांणै छापी। देस रा नामी लेखक-कवि संपादक रैया। बरस 1997 मांय राजस्थानी साहित्य री संपादित पोथी ‘कोरणी कलम री’ विभाग प्रकाशित करी, जिण रो संपादन अन्नाराम ‘सुदामा’ करियो। सुदामा जी रै उपनांव सूं जाणीजता आं गुरुदेव रो जलम 23 मई, 1923 नै अर सरगवास 02 जनवरी, 2014 नै हुयो। अठै खास ध्यानदेवण जोग बात आ है कै 23 मई, 2023 सूं सरू हुयो ओ वगत अन्नाराम जी री जलम शताब्दी रो बरस है। आओ आपां इण मिस गुरुजी अन्नाराम सुदामा री साहित्य-साधना पेटै कीं चरचा करां।

          चावा-ठावा रचनाकार अन्नाराम सुदामा रै सिरजण रा केई-केई पख देखण-परखण नै मिलै। बां राजस्थानी अर हिंदी दोनूं भासावां मांय कहाणियां अर उपन्यासां रै अलावा संस्मरण, बाल साहित्य अर कविता आद विधावां मांय लगोलग सिरजण करियो। बां री रचनावां रो देस-विदेस री भासावां मांय अनुवाद ई हुयो। बां सूं म्हारी ओळख रो मोटो कारण म्हारा जीसा सांवर दइया रैया। अेक लेखक-कवि रै घरै जलम हुयां म्हारै नजीक पोथ्यां कीं बेसी रैयी पण पोथ्यां नजीक रैयां ई कीं कोनी हुवै। बांचण रो चाव मोटी बात हुया करै। स्कूल रै दिनां री बात करूं तो म्हैं नोखा रै सेठिया स्कूल सूं छोटूनाथ उच्च माध्यमिक स्कूल पूग्यो तो डेलूजी गुरुजी जिका पीटीआई हा, बां री मीठी वाणी मांय सुदामाजी री रचनावां सुणण रो सौभाग मिल्यो। फेर राजस्थानी साहित्य री रावत सारस्वत जी री परीक्षावां अर कन्हैयालाल सेठिया जी रो मायड़ रो हेलो इण मारग माथै म्हनै गति दीवी। ‘पिरोळ में कुत्ती ब्याई’ अर ‘दूर-दिसावर’ पोथ्यां पछै बरस 1985 मांय जद म्हारै जीसा सांवर दइया नै साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिल्यो तो बां रै सम्मान में नागरी भंडार बीकानेर में हुयै जळसै री अध्यक्षता अन्नाराम सुदामा करी अर म्हारा पैला दरसण हुया।

          अन्नाराम सुदामा रै जीवन परिचय अर साहित्‍य री बात करां तो राजस्‍थानी में आपरा छव उपन्यास- ‘मैकती काया: मुळकती धरती’ (1966), ‘आंधी अर आस्था’ (1974), ‘मेवै रा रूंख? (1977), ‘डंकीजता मानवी’ (1981), ‘घर-संसार’ पैलो भाग (1983), ‘घर-संसार’ दूजो भाग (1985) अर ‘अचूक इलाज’ (1990) प्रकाशित हुया। कहाणी संग्रै च्यार- ‘आंधै नै आंख्यां’ (1971), ‘गळत इलाज’ (1983), ‘माया रो रंग’ (1976) अर ‘औ इक्कीस’ (2002) प्रकाशित हुया। आपरी ख्याति मूळ रूप सूं गद्यकार अर खास तौर माथै कथाकार रूप बेसी मानीनै। बियां आप बीजी बीजी विधावां मांय ई सांगोपांग लेखन करियो।

          जातरा संस्मरण री बात करां तो दोय पोथ्यां- ‘दूर-दिसावर’ (1975) अर ‘आंगण सूं अर्नाकुलम’ (2002) छपी थकी नै चावी। आपरा च्यार कविता-संग्रह- ‘पिरोळ में कुत्ती ब्याई’ (1969), ‘व्यथा-कथा अर दूजी कवितावां’ (1981), ‘ओळभो जड़ आंधै नै’ (2002) ‘ऊंट रै मिस : थारी-म्हारी सगळां री’ (2015) साम्हीं आया तो अेक-अेक पोथी नाटक- ‘बधती अंवळाई’ (1979), निवंध- ‘मनवा थारी आदत नै’ (2003) अर बाल-साहित्य- ‘गांव रो गौरव’ (1981) री ई जसजोग मान सकां।   

          आपरै हिंदी साहित्य लेखन री बात करां तो छव उपन्यास- ‘जगिया की वापसी’ (1979), ‘आंगन-नदिया’ (1990) ‘अजहुं दूरी अधूरी’ (1996), ‘अलाव’ (2000), ‘बाघ और बिल्लियां’ (2007) अर ‘त्रिभुवन को सुख लागत फीको’ (2009) प्रकाशित हुया। चिंतनपरक साहित्य पेटै दोय पोथ्यां- ‘त्रिभुवन को सुख लागत फीको’ (2015) अर ‘अवधू अरथ उघारा’ (2015) छपी। महात्मा गांधी रै शताब्दी वर्ष रै मौकै गांधीजी री भारत यात्रा पेटै चावी पोथी ‘उत्सुक गांधी : उदास भारत’ (1970) ई घणी चर्चित रैयी।

          विभाग कानी सूं श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान रै अलावा अन्नाराम सुदामा नै घणा मान-सम्मान अर पुरस्कार मिल्या जिण मांय खास खास री बात करां तो राजस्थानी उपन्यास 'मेवै रा रूंख?' नै साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली रो राजस्थानी भाषा रो मुख्य पुरस्कार बरस 1978 रो आपनै अरपण करीज्यो। इणी ढाळै हिंदी उपन्यास ‘आंगन-नदिया’ नै राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर रो सर्वोच्च ‘मीरां पुरस्कार’ (1991-92) मिल्तो तो उपन्यास ‘अचूक इलाज’ नै राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी रो ‘सूर्यमल्ल मीसण शिखर पुरस्कार’ बरस 1992 रो अरपण करीज्यो। श्रेष्ठ गद्य लेखन सारू गोइन्का फाउंडेशन रो ‘कमला गोइन्का राजस्थानी साहित्य पुरस्कार’ बरस 2005 रो मिल्यो अर बीजा ई केई सम्मान-पुरस्कार आपनै मिल्या। मोटो सम्मान अर पुरस्कार तो ओ है कै राजस्थानी उपन्यास ‘मेवै रा रूंख?’ अर ‘मैकती काया : मुळकती धरती’ जयनारायण व्यास वि.वि. जोधपुर, म. द. स. विश्वविद्यालय, अजमेर अर महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर रै पाठ्यक्रमां मांय बरसां सूं सामल है अर लाखू पढेसरी आपनै पढ रैया है। आपरी रचनावां रो केई केई भाषावां मांय अनुवाद ई हुयो। सार रूप कैवां तो शिक्षा विभाग राजस्थान रो नांव आखै देस-विदेस अर खास कर राजस्थानी साहित्य मांय जसजोग बणावणवाळा कमलकारां मांय आप सिरै मानीजो।

          सुदामा जी सूं जुड़ी केई बातां अर यादां बां रै हरेक पढेसरी पाखती हुवणी लाजमी है। बां माथै शोध हुया है अर भळै ई हुवैला। आखो जीवण साहित्य नै सूंपण वाळा सुदामा जी लिखण माथै भरोसो करियो अर तद ई इत्तो साहित्य बै लिखग्या। काण-कायदा अर नेम नै पक्का मानण वाळा सुदामा जी रै जीवण, व्यवहार, आचार-विचार अर साहित्य सूं आपां घणो कीं सीख सकां। बां रै विविधवर्णी आखै सिरजण संसार माथै बात कीं कर’र अठै फगत राजस्थानी कथा-साहित्य री बात करालां।

          लोकथावां रै मायाजाळ सांम्ही आधुनिक कहाणी नै ऊभी करण मांय सिरै कहाणीकार अन्नाराम सुदामा रो नांव हरावळ इण सारू मानीजै कै बै पैली पीढी रा कहाणीकार हा अर पैलै कहाणी संग्रै- ‘आंधै नैं आंख्यां’ री भूमिका मांय बां लिख्यो- ‘राजस्थानी में कहाणी साहित्य री कमी है। है जिको घणखरो पुराणी खुरचण खा’र जीवै इसो। बींनै अलग-अलग आदम्यां, न्यारा-न्यारा गाभा पैरा’र आप आपरै ढंग सूं सजावण री सस्ती चेष्टा करी है, मूळ में कोई अंतर को आयोनी। केयां, संकलन अर संपादन, भूमिका में दो शब्द अर बीं में ही दो-दो पांती घाल, कथा साहित्य रो खासो भलो उपकार कियो है पण ऐ आसार कीं सीमा तांई ही ठीक हुवै। वर्तमान भी कठै न कठै, मोटो महीन चित्रित हुणो चाहीजै। बींरी पूर्ति अतीत सूं थोड़ी ही हुसी....।’

          कहाणीकार अन्नाराम सुदाम वर्तमान रै मोटो-महीन चित्रण अर अतीत सूं मुगती री बात उण दौर मांय करी जद लोककथावां रै संकलन-संपादन रो काम घणो जोरां माथै हो। आगै चाल’र बां कहाणी नै आधुनिक बणावण मांय योगदान दियो। इण सारू कहाणी-जातरां री संभाळ करतां कहाणीकार अन्नाराम सुदामा री कहाणियां माथै बात करणी लाजमी लखावै।

          ओ संजोग है कै सुदामा जी री च्यारू राजस्थानी कहाणी-पोथ्यां मांय कुल इक्कावन कहाणियां है अर बां आपरै छेहलै कहाणी-संग्रै रो नांव ‘ऐ इक्कीस’ राख्यो। किणी कहाणीकार री कहाणी-जातरा बाबत बात करता आलोचना नै बगत अर कहाणीकार री दीठ माथै ध्यान देवणो चाइजै। बरस 1971 मांय कहाणी-संग्रै ‘आंधै नैं आंख्यां’ सूं सुदामा जी जिकी जातरा चालू करी बा जातरा 2011 तांई चालू राखी। राजस्थानी कहाणी अर लोककथा री संभाळियोड़ी पूरी भाषा नै बां आपरै पैलै कहाणी-संग्रै ‘आंधै नैं आंख्यां’ री पांचू लांबी कहाणियां रै मारफत बदळ’र नुंवै ढाळै ढाळण री तजबीज करी। परंपरा मांय आ नवी भाषा नै सोधण री खेचळ ही।

          ‘आंधै नैं आंख्यां’ संग्रै री भाषा मांय हास्य अर व्यंग्य सूं बांचणियां नै रस तो आवै पण बिम्बां री भरमार सूं कहाणी री मूळ बात अर संवेदना कठैई दब-सी जावै। कहाणी जठै दौड़णी निगै आवणी चाइजै बठै कहाणी डिगू-डिगू करती आगै बधै। कहाणीकार नुंवै गद्य री सिरजणा मांय कहाणी विधा सूं घणी घणी आंतरै निकळ जावै। सुदामा री आं कहाणियां री भाषा री आलोचना हुई अर आ पूरी भाषा-बुणगट सेवट मांय कहाणीकार दूजै रूप मांय सोधण री तजबीज कर लेवै। सुदामा जी री कहाणी जातरा मांय सेवट भाषा सूं बेसी भाव, आदर्श, जीवण-मूल्य अर संस्कार मेहताऊ हुय जावै। भाषा अर दीठ अेक खास रंग-ढंग मांय लैण माथै जाणै ठेठ तांई पाटी पढावती निगै आवै। उल्लेखजोग है कै आं पाटी पढावती कहाणियां रो मूळ सुर आदर्श री थरपणा है अर इण मांय कहाणीकार आपरी सफलता दरसावै। लोक भाषा री सहजता-सरलता आं कहाणियां री मोटी खासियत मानी जाय सकै। आं सगळी बातां रै उपरांत ई कहाणीकार रो भाषा-रूप पूरी इण पूरी जातरा मांय ठैरियोड़ो-सो लखावै। प्रयोग अर इक्कीसवी सदी रै असवाड़ै-पसवाड़ै जिको बदळाव राजस्थानी कहाणी मांय निगै आवै उण भेळै आं कहाणियां नैं कोनी राख सकां। 

          ग्रामीण जन-जीवण सूं जुड़ी सुदामा जी री कहाणियां मांय सामाजिक सरोकार, जीवण-मूल्य, संस्कार अर मिनखपणै री जगमगाट जाणै बगत नै दीठ देवै। आधुनिक कहाणी परंपरा मांय आं कहाणियां री आपरी अेक न्यारी ओळखाण करी जावैला। कोई कहाणीकार कहाणी क्यूं लिखै? इण सवाल रा न्यारा न्यारा जबाब हुय सकै। कहाणीकार अन्नाराम सुदामा बाबत विचार करां तो लखावै कै बां आखी उमर माइत बण’र कहाणियां चूळियै उतरतै मानवियां नैं लैणसर लावण री दीठ सूं करी। ‘गळत इलाज’ संग्रै री कहाणियां सूं जिकी छवि कहाणीकार री बणै उण सूं आगै री कहाणियां मांय बो मुकाम बणायो राखै। बै औस्था रै बंघण सूं मुगत रैय’र ढळती उमर मांय लगोलग कहाणियां लिखता रैया। जसजोग बात आ कै अन्नाराम सुदामा मान-सम्मान अर पुरस्कारां पछै ई लिखणो सदीव चालू राख्यो। आकाशवाणी खातर बां केई कहाणियां लिखी जिकी लारला दोय कहाणी संग्रै मांय देखी जाय सकै। सुदामा जी नै बां रा करीबी मास्टर जी कैया करता हा। मास्टर जी री कहाणियां मांय ठेठ सूं अेक आदर्श मास्टर किणी बडेरै दांई सीख सीखावतो-समझावतो मिलै।

          बगत रै साथै-साथै ग्रामीण जीवण मांय शहर री हवा पूग्यां उण रै रूप-रंग मांय केई बदळाव हुया। सत-असत अर आस्थावां माथै बगत रो हमलो हुयो। इण सूं अंतस मांय सत-असत नै तोलण रा हरेक का आपरा नुंवा बाट बणग्या। कहाणी मांय जथारथ अर अंतस री दोधाचींत री पूरी पड़ताळ करीजण लागी। मिनख री इण जूझ मांय केई चितराम आंख्यां अगाड़ी किणी कहाणी रूप सांम्ही आया। मिनख रै मन मांयली जूझ रै उजळ पख रा केई केई चितरामां री ओळखाण सुदामा जी री कहाणियां सूं हुवै। ‘माया रो रंग’ अर ‘ऐ इक्कीस’ कहाणी संग्रै आं बातां नै पुखता करै।

          अन्नाराम सुदामा री कहाणियां रै केंद्र मांय- बाल-विवाह, सुगन-विचार, जीव-दया, छुआ-छूत, स्वाभिमान, आत्म-सम्मान, ईमानदारी, पाड़ौस-धर्म, अंध-भगती, जबान रो मोल, दया, संस्कार, संबंध, स्वार्थ आद मिलै। कहाणीकार रै पात्रां मांय घणखारा पचास रै आसै-पासै रा पात्र है। आपसी सम्पत अर सद्भाव सूं मेळ-मुलाकाती आं पात्रां रो सोच लूंठो है। जियां कै आगूंच जिण धन री आंधी दौड़ री बात करी उण पेटै कहाणीकार री आ थरपणा सरावणजोग है कै आज रै जुग मांय धन ई स्सौ कीं नीं हुवणो चाइजै। दोय उल्लेखजोग कहाणियां री चरचा जरूरी है। कहाणी ‘सूझती दीठ’ मांय दूध अर ‘अखंड जोत’ मांय धी नै बेचण री बात है। आज रै जुग मुजब हरेक खुद रो नफो विचारै। कीं बेसी धन मांय खुद रो लाभ विचारण रै इण जुग सांम्ही आं कहाणियां रा पात्र दूध अर घी रै बेच्या पछै उण रै उपयोग नै विचारता नफो करता जाणै घाटै नै अंगेजै। तुळछी रो हवेली रै बारकर दूध री कार निकाळण नै दूध का मीरां बाई रो सेठ चूनीलालजी रै रामशरण हुयां घी नै अंखड़ जोत करण खातर नटणो घणो अबखो काम है। आज ओ रूप कठैई देखण नै कोनी मिलै। ओ रूप अर सोच हुय सकै आ दरसावणो कहाणीकार री लांठी सोच है। दूध-घी मिनखां खातर है इण ऐळो गवाण सूं कांई सरै। इण ढाळै री आं कुरीतियां रो छेड़ो कोनी। सुदामा री खासियत आ कै हरेक कहाणी मांय याद रैवण जोग कथानक है। हरेक कहाणी री आपरी कहाणी है। कहाणी रो प्रभाव इत्तो कै उण मांय पूग्या पछै जाणै कीं बातां हियै रै आंगणै सदा खातर मंड जावै। कहाणी रा पात्र-वातावरण अर संवाद चाहे बिसर जावां पण मूळ मुद्दो जिको कहाणी कैवै बो अंतस मांय बैठ जावै।

          उपन्यास विधा पेटै पैली पीढी रा उपन्यासकार सुदामा जी रो घणो जस मानीजै। आपरा छव उपन्यासां मांय राजस्थान रै गांवां रा सांवठा चितराम मिलै। कैय सकां कै राजस्थान रै गांवां री बदळती तासीर रा केई-केई रंग सुदामा जी आपरै उपन्यासां मांय अंवेरै। आजादी पछै गांव रो रंग-रूप बदळतो गयो। मोटो बदळाव ओ हुयो कै अंग्रेजी राज तो गयो परो पण अबै उण ठौड़ गांव रा सेठ-साहूकार अर जमीदार आय'र बैठग्या। पैली राज करणिया अर लूट मचावणिया दूजा हा। अबै घर रा भेदी लंका ढावण आळा अर घर नै ई खावण आळा हुयग्या। पंच-पटवारी, पुलिस-थाणो सगळी ठौड़ आम आदमी माथै मोटी मार। किसान जिको अन्नदाता बाजै, नित अकाळ भोगै अर अन्न खातर तरसै। जे कदैई कीं भगवान री मेहर सूं खेत सावळ हुवै तो बो करजै रै मांय डूब्योड़ो ब्याज भरै अर ऊपर सूं बेगार न्यारी काढै।

          सुदामा जी रै उपन्यासां रै मूळ मांय सामंती सोसण व्यवस्था री व्यथा-कथा मिलै। बै जिण गांवां रा चितराम आपां साम्हीं राखै, उणा मांय जात-पांत रो टंटो मिलै। मिनख-लुगाई किणी इकाई रूप कोनी। बै का तो गरीब है का अमीर। बै का तो सोसक है का सोसित। निम्न-मध्यम वरग री मानसिकता मांय जीवता घणा लोग-लुगाई जद धन री अनीत देखै, उणा नै कोई मारग नीं लाधै। रछक ई भछक भेळै रळियोड़ा दीसै। गांव री जीया-जूण मांय पग-पग परसती राजनीति रा रंग-ढंग। गरीब अर किसान नै ठौड़-ठौड़ मार। कदैई कोई तो कदैई कोई अर सुणवाई कठैई कोनी। आं सगळी बातां अर हालातां बिचाळै सुदामा जी आपरै उपन्यासां मांय इसा पात्रां नै ऊभा करै जिका कीं बदळाव री हूंस लियोड़ा हुवै। आत्मकथात्मक उपन्यास 'मैकती काया : मुळकती धरती' री नायिका सुगनी नानी आपरै दोहितै गोरधन नै आपरी जूण-गाथा मांड'र कैवै। इण कैवणगत मांय कथा नै कैवण रो जूनो तरीको मिलै। लोककथा दांई हंकारो भरणियो ई दोहितो है अर मुंहबोली नानी सूं उण री जूण-विगत सुण रैयो है। सुगनी रै मारफत उपन्यासकार अेक लुगाई री जूझ नै साम्हीं राखै।

          'आंधी अर आस्था' उपन्यास मांय सुदामा जी मेट माथै काम करणियै जगन्नाथ री जूण-गाथा राखै। जगन्नाथ अर सरपंच रै कांई ठाह कांई बैर बंधै कै बो आंख बांध लेवै। ओ अेक संजोग ई कैयो जाय सकै कै जगन्नाथ सेठ प्रताप रै घरै चारो लावण नै जावै अर रात रै बगत बो सेठ नै घर री विधवा बीनणी भेळै सूतो देख लेवै। जगन्नाथ आंख्यां मींच छानै-मानै पाछो आ जावै, पण सेठ नै काळो खावै अर बो आत्मघात कर लेवै। इसो मौको सरपंच ताकै ही हो अर उपन्यास री कथा इण ढाळै आगै बधै कै बो जगन्नाथ नै फसा देवै। उण नै जेळ हुय जावै। उपन्यास मांय दूजो संजोग ओ सधै कै जगन्नाथ री बहू यसोदा ई बीकानेर मांय अेक सेठ रै चक्कारियै मांय उळूझै जावै अर अठै आळो सेठ ई मर जावै। दुख-दरद ई जूण री कहाणी बणै पण जद जीवण मांय दुख-दरद, कलीफां री आंधी पूरै परिवार माथै आय जावै तो कोई कांई करै।

          ‘मैवै रा रूंख?’ उपन्यास रो सिरैनांव प्रतीकात्मक है। उपन्यास मांय अेक ठौड़ डोकरी कैवै- ‘ना अन्नदाताजी, खूंटण री जबान मत काढोन, फळो फूलो मैवै रा रूंख हो थे, म्हे तो दिया लेवा, म्हारै सागै घणो नान्हो लेखो करता थे फूठरा को लागोनी।’ (पेज-53) रसूखदार मिनख, जिका कीं अड़ी मांय किणी रो काम काढ सकै, जिका माथै भगवान री मेहरबानी कीं बेसी है - बै सेठ-साहूकार-जमीदार-पइसैआळा मैवै का रूंख है। पण उपन्यासकार आं रूंखा माथै सवाल रो निसाण लगावै। असल मांय अै लोग खाली कैवण कैवण नै मैवै रा रूंख है, पण असल मांय आं रो मैवो फगत खुद खातर ई है। प्रेमचंद रै होरी रो प्रभाव भण्यै-गुण्यै किसान सिनाथ माथै देख्यो जाय सकै।          

          ‘डंकीजता मानवी’ उपन्यास मांय सुदामा जी जिण डंक री बात करै वो फगत कोई अेक गांव मांय कोनी, ओ डंक तो फगत अेक दाखलै रूप समझो। राजस्थान रै ई नीं आखै देस रै गांवां मांय मानवी डंकीजता जाय रैया है। हालत अर हालात मांय उगणीस-बीस फरक हुय सकै, पण सगळै गांवां अर लोगां री दसा इण सूं न्यारी नीं कैय सकां। ब्याज भुगतता अर बेगार करता गांव रा लोग-लुगाई अन्याय री घाणी मांय पीसता जावै। कोई रकम नीं, जाणै बां री सांस अडाणै राखीजगी। जिकी अेक'र फस्या पछै इण जूण मांय तो मुगती कोनी मिलै।  

          ‘घर-संसार’ उपन्यास दोय खंड मांय साम्हीं आयो अर ओ गांधी-दर्शन, अछूत-उद्धार माथै आधारित राजस्थानी रो पैलो उपन्यास है। अछूत-उद्धार री बात सुदामा जी रै पैला रा उपन्यासां मांय ई मिलै पण इण मांय पूरी बात इणी विसय माथै केंद्रीत करीजी है। समाज मांय बदळाव लावणो कोई सरल काम कोनी। समाज बीसवीं सदी मांय पूगग्यो पण हाल बो डोरा-मादळिया री बात करै। समझावण री कोई कमी कोनी, पण समझता थकां ई कोई नासमझ बणै उण रो कांई करियो जावै। ‘घर-संसार’ री अेक दूजी खासियत खुद री खुद सूं बातां ई कैय सकां – ‘सुधा सोचै ही अै आदमी-लुगाई ही कदेई स्वाभिमान अर सुतंत्र कमाई री खरीदी खुद री पौसाक पैरसी? मैनत जे मोड़ बदळ लियो तो क्योंनी? बण ही सवाल कियो अर बण ही समाधान।’ उपन्यास मांय इण ढाळै सवाल-जबाब मांय पात्रां री मनगत तो साम्हीं आवै ई आवै, साथै इण ढाळै बांचणियां साम्हीं सीख रा दरवाजा ई खुलै। उठै उपन्यासकार बिना कैया ई कैय देवै कै चिंतन ई किणी पण काम री सफलता रो आधार हुवै।

          ‘अचूक इलाज’ तांई पूगता-पूगता सुदामा जी आपरी जमीन माथै आदर्स भेळै आक्रोस रा सुर ई साम्हीं लावै। बै जीवण मूल्यां नै पोखै। भलै साथै भलो अर बुरै साथै बुरो हुवण रो संदेस देवै। भासा मांय हास्य व्यंग्य अर लोक री रंजकता रूढ हुवती जावै। गांव जिसा गांव है। खेत जिसा खेत है। किसान जिसा किसान है। सेठ-साहूकार जिसा सेठ-साहूकार है अर बाणियां, प्याऊ, बूढ़ा-बडेरा सगळा आपरी संवेदनावां मांय सामाजिक सरोकारां सूं जुड़ता चेतना अर क्रांति खातर उडीक करै। अकाळ हुवो भलाई बिखै रा दिना, आं सगळां री जूझ अर हूंस कमती नीं हुवै। बदरंग हुवती जूण मांय रंगां री आस मांय सुदामा जी रा पात्रां सूं भरोसो उपजै। भरोसै सूं भरियोड़ा पात्र नवै समाज रो सपनो फगत देखै-विचारै ई नीं, उण नै साकार ई करै। वां रै उपन्यासां रा पात्र जमीन सूं उठियोड़ा अर जमीन सूं बंध्योड़ा हुवै। भलाई वै किणी पोसाळा मांय भणिया-गुणिया ना हुवो, पण बै अक्कल रै मामलै मांय इक्कीस कैया जावैला। अक्कल जाणै बां रै हियै उपज्योड़ी हुवै। सगळां सूं सांवठी बात कै बां पाखती जूण रै अनुभवां ई मोटी कमाई हेमाणी रूप मिलै, जिकी नै बै अेक-दूजै री मदद खातर बरतता रैवै। सार रूप कैयो जाय सकै कै आधुनिकता रै पाण हुया बदळावां बिचाळै गांवां रै राजस्थानी समाज रो सुदामा-पख असल मांय अेक सरकारी मास्टर अन्नाराम सुदामा री आंख सूं देख्योड़ो साच अर सुपनां रो जंजाळ है। 

डॉ. नीरज दइया. संपादक- ‘नेगचार’ (पाक्षिक)





 

 

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