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कहानियों में लोक कथाओं जैसी रंजकता ० डॉ. नीरज दइया

सिंधी संस्कृति और समुदाय का बहुत ही लोकप्रिय पत्र वतायो फकीर खुदा का ऐसा बंदा था जिसकी अनेक कहानियां-किस्से लोक में बेहद चाव से आज भी सुने-पढ़े जाते हैं। डॉ. हूंदराज बलवाणी ने ऐसे ही सुने-अनसुने 47 किस्सों की अपनी किताब 'वतायो फकीर की कहानियां' में रोचक भाषा-शैली में पिरोया है। यह किताब 47 मनकों की एक ऐसी माला है जिसे पढ़कर तीन सौ वर्षों पहले हुए वतायो फकीर के जीवन प्रसंगों से बहुत कुछ सीखा और समझा जा सकता है। इन कहानियों में लोक कथाओं जैसी रंजकता के साथ साथ आधुनिकता के अनेक संदर्भ छिपे हुए हैं। 

जितनी महत्त्वपूर्ण इस संग्रह की कहानियां हैं उतनी ही महत्त्वपूर्ण लेखक द्वारा लिखी भूमिका है, जिसमें ना केवल वतायो फकीर के इतिहास को युग संदर्भों के साथ प्रस्तुत किया गया है वरन उसकी तुलना समकालीन संतो-फकीरों दर्शनिकों से भी की गई है। निसंदेह यह एक श्रमसाध्य और जरूरी काम था जिसे पूरी जिम्मेदारी और जवाबदेही के साथ डॉ. हूंदराज बलवाणी ने पूरा किया है। बलवाणी जी लिखते हैं- "कुछ लोग हास्य-व्यंग्य, चतुराई और हाज़िरजवाबी की दुनिया के जाने-पहचाने पात्रों बीरबल, मुल्ला नसरूद्दीन, गोनु झा, गोपाल भांड, आफन्ती, मुल्ला दोप्याज़ा की श्रेणी में सिंध प्रदेश के वतायो फकीर को भी रखते हैं। क्योंकि उनकी विनोदी तथा गुदगुदाने वाली बातें न सिर्फ हंसाने का काम करती हैं बल्कि सोचने के लिए मजबूर भी करती हैं। यह एक ऐसा किरदार है जिसकी सीधी-साधी बातों में ज्ञान और नसीहत का भंडार भरा पड़ा है। यह एक ऐसा किरदार है जिसे आम आदमी पसंद करता है और उसे अपने आसपास उपस्थित पाता है। लोग उसे प्यार करते हैं और बात-बात में उनका कोई न कोई उदाहरण देते हैं। इनकी कहानियां, जो छोटी-छोटी हैं और लघुकथाओं जैसी हैं घर-घर में चाह से पढ़ी जाती है।" (पृष्ठ-9)

राजस्थानी भाषा में वरिष्ठ कवि-कहानीकार मोहन आलोक ने भी ऐसा ही एक काम अपनी कृति 'अभनै रा किस्सा' में किया था और मैं इस बात का साक्षी रहा हूं कि लोक में विश्रुत ऐसी कहानियों-किस्सों को लिपिबद्ध करते समय कितना श्रम और मेधा की आवश्यकता होती है। ऐसे ही कार्य के बल पर साहित्य में विजयदान देथा की लोकप्रियता शिखर पर पहुंची। डॉ. हूंदराज बलवाणी एक सुपरिचित नाम है और आपकी कीर्ति के अनेक घटकों में इस कृति को भी जोड़ा जाएगा क्योंकि ऐसे कार्य वृहत पाठक वर्ग को साहित्य से जोड़ने में सक्षम होते हैं।

बेहतर होगा कि हम वतायो फकीर की इन कहानियों में से कुछ की चर्चा करें जिनमें जीवन जीने का मर्म छिपा है साथ ही ये हास-परिहास में गहरे अर्थों को भी अभिव्यक्त करती हैं। अपने परिवेश से जुड़ी इन कहानियों में वतायो फकीर का लोक से साथ व्यवहार चित्रित हुआ है तो वहीं अनेक कहानियों में वतायो और उसकी मां का संवाद भी देखने को मिलेगा। इन सभी कहानियों के द्वारा जो चरित्र वतायो का हमारे सामने उभर कर सामने आता है वह विविध वर्णी होने के साथ जीवन मूल्यों को पोषित करने वाला है। जैसे 'खुदा की तरह' कहानी में एक अमीर अपने घर में खुशी के किसी अवसर पर पास-पड़ोस वालों का मुंह मीठा करवाना चाहता है और वह मस्जिद में मिठाई बांटने के लिए वतायो फकीर को बुलाता है। मिठाई तो फकीर ने बांटी पर खुदा के 'खुदाई सिद्धांत' पर जिसके द्वारा किसी को कम मिठाई मीठी मिली तो किसी को अधिक मिली। ऐसे में अमीर आदमी का गुस्सा होना लाजिमी था, किंतु वतायो इस व्यवहार के लिए शर्मिंदा नहीं था बल्कि वह खुद की दुहाई दे रहा था। बहुत सीधे और सरल तरीके से यहां जो व्यंग्य सामने आता है वह जितनी सहजता से तिलमिलाने वाला है उसका कोई जवाब नहीं। इसी प्रकार 'केवल एक रुपया' कहानी में वतायो की मां उसे एक रुपया मांगती है और कहती है कि मलिक तेरी बहुत सुनता है तो उससे मांग। इस पर वतायो कहता है वैसे तो मुझे मांगना अच्छा नहीं लगता फिर भी तू कहती तो आज अल्लाह से मांग कर देखता हूं। कहानी बहुत कम शब्दों में आगे बढ़ती है और उसके बाद फकीर घर से बाहर निकाल कर एक जगह रुक कर आकाश की ओर देखते हुए अपने मालिक से अम्मा का हवाला देते हुए एक रुपया मांगता है। उसी समय आकाशवाणी होती है कि तेरे घर के पिछवाड़े में जो बेरी है उसे हिलाओगे तो तेरी इच्छा पूर्ण होगी। इस पर वतायो फकीर वैसा ही करता है तो पेड़ से रुपए बरसने लगते हैं, लेकिन वतायो खुदा का बंदा केवल एक रुपया उठाकर अपनी मां के पास पहुंचता है। जब मां को पूरी कहानी सुनाता तो मां का कहना कि अल्लाह ने इतने सारे रुपए दिए फिर भी तू केवल एक रुपए लेकर आया! तो वतायो का उत्तर उल्लेखनीय है, वह कहता है- अम्मी तूने मांगा भी एक रुपया ही था ना, ज्यादा लालच करोगी तो अल्लाह यह एक रुपया भी छीन लेगा। भला वतायो की इस सादगी और सरलता पर कौन फिदा नहीं होगा। 

ऐसी ही अनेक कहानियों का सुंदर गुलदस्ता है डॉ. हूंदराज बलवाणी की कृति 'वतायो फकीर की कहानियां'। इस संग्रह की अंतिम कहानी 'रोटी भी छीन ली' को पढ़ते हुए हमें अक्क महादेवी की कविता का स्मरण हो आता है। कविता कुछ इस प्रकार है- 'हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर/ मँगवाओ मुझसे भीख/ और कुछ ऐसा करो/ कि भूल जाऊँ अपना घर पूरी तरह/ झोली फैलाऊँ और न मिले भीख/ कोई हाथ बढ़ाए कुछ देने को/ तो वह गिर जाए नीचे/ और यदि मैं झुकूँ उसे उठाने/ तो कोई कुत्ता आ जाए/ और उसे झपटकर छीन ले मुझसे।' यहां जिस भक्ति में अक्क महादेवी डूबी है उसी रंग में वतायो और मां का संवाद संग्रह की अंतिम कहानी में है जिसमें वतायो मा से रूखी रोटी के साथ दही छाछ मांगता है और वह लेने जाता इससे पहले कहीं से एक कुत्ता आ धमका और वह रोटी खाने लगा तो वतायो के मुंह से यह शब्द निकले- 'ऐ मालिक दही या छाछ तो नहीं दी, मेरी रोटी भी छीन ली। गजब के हो तुम!' मालिक के गजब होने की यह दास्तानों से भरी यह कृति निसंदेह बाल पाठकों को ही नहीं वरन बूढ़े और वयस्क पाठकों को भी बहुत कुछ सीखने-समझने और सीखाने में सक्षम बनाने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करेगी। यह कृति हिंदी साहित्य अकादेमी गुजरात के सहयोग से प्रकाशित हुई है।

समीक्षक : डॉ. नीरज दइया

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कृति : वतायो फकीर की कहानियां (बाल कहानी संग्रह)

लेखक : डॉ. हूंदराज बलवाणी

प्रकाशक : स्कैन कंप्यूटर्स, अहमदाबाद

पृष्ठ : 80 ; मूल्य : 180/- ; संस्करण : 2023

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