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राजस्थानी कथा-साधना का प्रतिबिंब / डॉ. नीरज दइया

राजस्थानी के वयोवृद्ध लेखक देवकिशन राजपुरोहित ने हिंदी और राजस्थानी की विविध विधाओं में विपुल लेखन और संपादन कार्य किया है। अपनी साहित्य यात्रा ‘वरजूड़ी रो तप’ कहानी संग्रह से आरंभ कर ‘दो घूंट पाणी’ छठा कहानी संग्रह है जिसमें 20 राजस्थानी कहानियां संकलित है। राजस्थानी कहानी में एक धारा परंपरागत स्वरूप को लिए अविरल गति से प्रवाहमान है उसी धारा में इन कहानियों में वाचिक परंपरा और लोक रंजन की प्रमुखता देखी जा सकती है।
संग्रह की शीर्षक कहानी ‘दो घूंट पाणी’ राजस्थान की जल समस्या को लेकर रची गई कहानी है जो इस माटी के अनूठे संघर्ष की अभिव्यक्ति है, वहीं मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं पर भी प्रकाश डालती है। लेखक राजपुरोहित की कहानी कला अपने सरोकारों और विशिष्टताओं के साथ एक विशेष धारा का पोषण करती है। वे अपने जीवन के विविध प्रसंगों और मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत रची संग्रह की कहानियों में बहुत सी बातें जीवनानुभवओं और यथार्थ पर आधारित प्रस्तुत करते हैं। पेशे से शिक्षक रहे लेखक देवकिशन राजपुरोहित की इन रचनाओं में शिक्षा और संस्कारों के साथ इस धरा के विकास के विविध आयामों की लंबी दास्तान भी दिखाई देती है। संग्रह का सर्वाधिक उल्लेखनीय पक्ष कहानियों की भाषा है। भाषा में राजस्थानी जन-जीवन को वाणी मिली है। यह सतत अभ्यास और साधना का प्रतिफल है कि उनकी भाषा अपने पूरे लोक के अनेक रम्य चित्रों और अविस्मरणीय कथानकों से पाठकों को जोड़ती है।
इन कहानियों में केवल कलात्मकता अथवा मनोरंजन से इतर राजपुरोहित उद्देश्यपरकता को सर्वोपरि मानते हुए समाज को शिक्षा और संदेश देने की दिशा में प्रयासरत नजर आते हैं। प्रख्यात कवि-कहानीकार डॉ. मंगत बादल ने भूमिका में लिखा है- ‘आज का रचनाकार कला पक्ष में इतना खो जाता है कि पाठक को कभी कभी तो रचना भी समझ नहीं आती। ये कहानियों इस दोष से मुक्त है। श्री देवकिशन जी राजपुरोहित सीधी कहानी कहते हैं और वह पाठक के कलेजे में उतर जाती है।’
उम्र के इस मुकाम पर देवकिशन राजपुरोहित की सक्रियता और निरंतर रचनात्मकता ठीक वैसे ही नजर आती है जैसे कोई मनीषी राजस्थानी की कीर्ति पताका को लेकर अग्र पंक्ति में चलता जा रहा हो। निसंदेह यह कृति स्वागतयोग्य है।
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पुस्तक का नाम - दो घूंट पाणी (राजस्थानी कहानी संग्रह)
कहानीकार - देवकिशन राजपुरोहित
प्रकाशक - राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर
पृष्ठ- 80
मूल्य- 200/-
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डॉ. नीरज दइया

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