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युवा मन की भावपूर्ण कहानियां / डॉ. नीरज दइया

 समकालीन कविता, कहानी, आलोचना और अनुवाद के क्षेत्र में युवा लेखक डॉ. मदन गोपाल लढ़ा एक प्रमुख नाम है, जो विगत दो दशकों से राजस्थानी और हिंदी साहित्य में सक्रिय है। सद्य प्रकाशित हिंदी कहानी संग्रह ‘हरे रंग का मफलर’ उनकी अठारह कहानियों का संकलन है। शीर्षक कहानी में ही नहीं संग्रह की अन्य कहानियों में भी एक युवा मन के विविध भावों और खासकर मूक प्रेम की संयमित अभिव्यक्ति प्रमुखता से देखी जा सकती है। इस कहानी में कथानायक के यहां एक मफलर ‘गिफ्ट’ के रूप में पहुंचता है, जिसे अनुष्का ने भेजा है। ‘मैंने मफलर को गले में लपेटा तो ऊन के साथ अनाम रिस्ते की गर्माहट को भी करीब से महसूस किया।’ और कहानी फ्लैश-बैक में चलती है। कहानीकार बहुत सयंमित भाषा में परत-दर-परत संबंधों को बहुत ईमानदारी से उजागर करता जाता है कि कब, कहां, क्या और कैसे हुआ? और फिर उसके पास दस्तावेजी जन्मदिन पर उसका कोई ‘गिफ्ट’ पहुंचने लगा। कहानी के अंत में कथानायक की सात साल की बिटिया मफलर को देखकर बोली- ‘पापा यह तो मैं लूंगी।’ और कथानायक एकबारगी चौंकते हुए सहज होकर मफलर को उसके गले में डाल देता है। यह छोटी सी कहानी जो एक स्मृति के साथ एक बड़ी कहानी को प्रस्तुत करती है का समापन कथानायक के अपनी बेटी को करीब खींचकर मोबाइल से दोनों की सेल्फी लेने और ‘थैक्स वैरी मच’ के साथ अनुष्का को व्हाट्सएप करने की पंक्ति पर पूरी होती है।

            हमारे समाज में स्त्री-पुरुष के संबंधों को एक बंधे-बधाए सांचे के अंतर्गत ही देखते हैं और इन कहानियों में भी सांचों के समानांतर अनेक मनः स्थितियों को अभिव्यक्ति करते हुए संबंधों को नए सिरे से परिभाषित करने की मांग मुखरित होती है।            ‘बुद्धं शरणं गच्छामि’, ‘रेलवे स्टेशन’, ‘अधूरी पंक्ति’, ‘चमेली की महक’ और ‘सिर्फ अंधेरा’ आदि ऐसे ही मूक प्रेम अथवा प्रेम की राहों में पीछे छूट जाने को अभिव्यक्ति देती है, यह ऐसा प्रेम है जिसे संबंध के रूप में पहचाना तो गया है किंतु वह किसी प्रचलित परिभाषा से परिभाषित होने से वंचित रह गया है। कहनीकार मदन गोपाल लढ़ा की इन कहानियों में बहुत कोमलता के साथ आहिस्ता-आहिस्ता एक एक कर स्थितियों और मनोभावों को प्रस्तुत करना बेहद मार्मिक और प्रभावित करने वाला है कि वे बहुत कम शब्दों में जैसे छोटे कैनवास पर जीवन के बडे प्रसंग को रूपाकार करने में समर्थ-सिद्ध हैं।

            कहानी ‘एक्सरे’ में स्त्री-पुरुष जीवन की मानसिक संरचनात्मक-त्रासदी अभिव्यक्त हुई है कि विवाह पश्चात स्त्री अपनी सहनशीलता को बनाए रखती है किंतु दूसरी तरफ पुरुष अपनी पत्नी के विगत जीवन में किसी संबंध अथवा सामान्य लोक व्यवहार को भी ‘एक्सरे’ से परखने की प्रवृत्ति रखता है। संबंध कोई भी हो उसमें प्रेम का सूत्र समाहित होता है। ‘पारिजात का फूल’ कहानी में पारिजात और चमेली के फूल के माध्यम से नखत सिंह जी का मनोरम चरित्र प्रस्तुत किया गया तो कोरोना काल के समय को व्यंजित करती कहानी ‘इक मुस्कान जो खिली’ में रोज कमाकर खाने वाले परिवारों के संकट कि दिहाड़ी के नाम पर अपने परिवार का खाना मांग कर काम करने की मार्मिक अभिव्यक्ति है।

            मानव व्यवहार और संबंधों को परिभाषित करना अथवा मनोभावों को सहज रूप में जान लेना बेहद कठिन होता है। आधुनिक जीवन की दौड़-भाग और यांत्रिकता के बीच भी कुछ लोग ऐसे हैं जिनके कार्यों पर हम गर्व कर सकते हैं। ‘स्माइली जैसा कुछ’ कहानी ब्ल्ड-डोनर की तलाश में जीवन के सकारात्मक पक्ष की अभिव्यक्ति है। आधुनिक समय और समाज में कैपटाउन में बैठी फाल्गुनी अहमदाबाद के मरीज के लिए तीन हजार रुपये ऑनलाइन देकर जैसे पुन्न कमा रही हो। मदन गोपाल लढ़ा की इन छोटी-छोटी कहानियों में जैसे देश विदेश के अनेक स्थलों को समेटते हुए एक व्यापक और विशद परिदृश्य प्रस्तुत होता है। यहां कहानीकार के गुजरात प्रवास से संबंधित कुछ कहानियां भी हैं जैसे- ‘जमवानु तैयार छे’ संभवतः उनके व्यक्तिगत प्रसंग से जुड़ी एक कहानी है। मन कहीं कुछ कह और कर पाता है तो कहीं बस वह मूक रह जाता है। इन कहानियों का केंद्र स्मृति है और कहानी ‘किराये का घर’ में कथानायक ना चाहते हुए भी अपनी स्मृतियों में खोया स्वतः अपने पुराने किराये के घर के दरवाजे तक पहुंच जाता है।

            कहानीकार के अनुसार मन बड़ा चंचल होता है और उसे पग पग पर संभालकर रखना होता है। ‘मोड़ से पहले’ कहानी सड़क पर सफर करते ड्राइवर और खलासी की कहानी है जिसमें संयमित जीवन का संदेश है वहीं ‘नमकीन टेस्ट’ के माध्यम से व्यक्ति के चारित्रिक पतन को उजागर किया गया है। यहां यह उल्लेखनीय है कि पंजाबी के प्रख्यात साहित्यकार डॉ. जगविंदर जोधा ने इस पुस्तक के फ्लैप पर लिखा है- ‘हमारे पंजाबी की कहानी अत्यधिक नवीनता दिखाने की कोशिश में नाना प्रकार के कथा-प्रयोगों को ओढ़ लेती है। इससे कथा-रस क्षीण हो जाता है। इसकी तुलना में मदन गोपाल लढ़ा की कहानियां कहीं अधिक सरल एवं कथा-रस से सराबोर है। यह जमीन से उनके जुड़ाव को दर्शाता है।’ निसंदेह कहानीकार लढ़ा जमीन से जुड़े कहानीकार है और इन कहानियों की कलात्मकता इनकी सरलता-सहजता और सहज प्रवाह में जीवन की अभिव्यक्ति में निहित है।  

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पुस्तक का नाम – हरे रंग का मफलर (कहानी-संग्रह)
कवि – मदन गोपाल लढ़ा
प्रकाशक – इंडिया नेटबुक्स प्राइवेट लिमिटेड, नोएडा
पृष्ठ- 80

संस्करण - 2021
मूल्य- 350/-

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डॉ. नीरज दइया


 

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