-->

बटन रोज : प्रेम-संबंधों की अबूझ पहेली/ डॉ. नीरज दइया

    चर्चित कथाकार रजनी मोरवाल ने अपने दूसरे उपन्यास ‘बटन रोज़’ को ‘प्रेम करने वालों के नाम’ समर्पित किया है। उपन्यास के विषय में उपन्यासकार ने ‘अपनी बात’ में लिखा है कि वे एक प्रेम कहानी लिखने बैठी थीं और कहानी बढ़ते-बढ़ते उपन्यास में तब्दील हो गई। उपन्यास के नामकरण के विषय में उपन्यासकार का मत है : पाठकों के मन में ये प्रश्न कौंधेगा कि रोज़ (गुलाब) तो आखिर रोज़ (गुलाब) है, फिर बटन रोज़ क्यों? तब शायद उपन्यास के नायक-नायिका की तरह वे आपस में संवाद करने लगें-  
    - ‘तुम्हें ये बटन रोज इतने क्यों पसंद हैं?’
    - ‘क्योंकि ये सुबह की पहली किरण के साथ उगते हैं, किंतु दिन पर धीमे-धीमे खुलते हैं, ठीक प्रेम की मानिंद... जो होता है, तो होता है या होता ही नहीं... और जब होता है तो पूरे जीवन पर महकता है।’
    - ‘लेकिन इनकी सुगंध बहुत मंद-मंद होती है...’
    - ‘हां, लेकिन ये कई दिनों तक अपनी भीनी-भीनी सुगंध बिखेरते रहते हैं।’
    बस यहीं से इस उपन्यास का नामकरण बटन रोज़ हो गया।
    ‘बटन रोज’ को उपन्यास में एक प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करते हुए नवीनता के साथ यह सर्वांगीण हो इसलिए अनेक प्रयास किए गए हैं। वैसे प्रेम का प्रतीक गुलाब को माना जाता रहा है और उसके रंगों के हिसाब से काफी बातें कही गई है। इस संसार में ऐसा कौन होगा जिसके जीवन में कभी ‘प्रेम’ घटित नहीं हुआ होगा! सूरदास जी की गोपियों ने उद्धव को कहा था- ‘प्रीति-नदी में पाँव न बोरयो, दृष्टि न रूप परागी।’ किंतु यह सत्य है कि यह नदी जीवन में बरसात बन कर आती है और सभी को आर्द्र करती है। रजनी मोरवाल के रचना-संसार में इससे पहले भी स्त्री की स्वतंत्रता और स्वच्छंदता को विभिन्न कोणों से उठाया जाता रहा है। वे यहां भी नायिका मारिया के माध्यम से एक ऐसी स्त्री के जीवन की महागाथा को प्रस्तुत कर रही हैं जिसके पार जीवन को देखने और समझने की अपनी दृष्टि है। तीस खंडों में उपन्यास की कथा इस प्रकार प्रस्तुत हुई है जैसे वे अलग-अलग काल खंड की अनुभूतियां चित्रों के रूप में होकर एक बड़ा कोलाज बनाए। मुख्य रूप से उपन्यास की कथा के चार आधार कहे जा सकते हैं। पहला- मारिया और एडवर्ड का पहला प्यार, दूसरा- मारिया और हैनरी का वैवाहिक जीवन-संबंध, तीसरा- विवाहित मारिया और इरफान का प्रेम तथा चौथा- मारिया की घर वापसी।
    प्रेम के साथ संयोग और वियोग दो घटक जुड़े हैं। किंतु प्रेम जब भी होता है, जिस किसी अवस्था में होता है, वह जहां भी होता है अद्वितीय होता है। उसकी अनुभूति अथवा होना जीवन का एक ऐसा अनिर्वचनीय सुख है, जिसे शब्दों में पूरा का पूरा अभिव्यक्ति नहीं किया सकता है। वह जितनी भी बार घटित होता है नया नया बनकर घटित होता है। उसे रंगों में पूरा का पूरा उकेरा नहीं जा सकता है। उसे किसी गीत में पूरा गाया नहीं जा सकता है। अभिव्यक्ति के सभी माध्यम और कलाएं मिलकर भी उसे रूपायित करने का प्रयास करें तो बस उसका आभास भर होता है। उपन्यास का मुख्य नायक इरफान चित्रकार है और नायिका मारिया कला प्रेमी। चित्रकला, मूर्तिकला, कविता, इतिहास और समय-संदर्भों के साथ संगीत के घटक भी समाहित किए गए है। प्यानों के म्यूजिक पीस हो अथवा प्रकृति के रूप-रंग और संगीत की बात सभी मिलकर एक ऐसा व्यापक कला-वितान रचते हैं। सब कुछ रचे और कहे जाने के बाद भी प्रेम के लिए बस इतना ही कहा जाएगा कि बिना इस नदी में स्नान किए, प्रेम में आर्द्र होने की अनुभूति को नहीं पाया जा सकता है।
    प्रेम को फिर-फिर नए-नए रूपों-स्थितियों में चित्रित करने के प्रयास हुए हैं, और होते रहेंगे। यहां नायिका के रूप में मारिया को चुना गया है, जो मध्यवर्गीय एंग्लो इंडियन परिवार की लड़की का प्रतिनिधित्व करती है। किशोरावस्था के प्रेम में सुख के साथ दुख और अवसाद का एक ऐसा जटिल समीकरण प्रस्तुत होता है कि नायिका का विवाह हो जाता है किंतु वह किसी तलाश में है। उसकी तलाश इरफान में पूरी होती है किंतु अंत में वहां भी निराशा हाथ लगती है। असल में उपन्यास का केंद्रीय विषय एक ऐसी स्त्री के मनोलोक को उजागर करना रहा है जो विवाह पूर्व और विवाह पश्चात के प्रेम-संबंधों की अबूझ पहेली को सुलझाते हुए किसी निर्णायक स्थिति तक पहुंचना चाहती है। समाज ने वैध और अवैध दो धाराएं निर्मित की है, किंतु प्रेम जीवन में अविस्मरणीय और अद्वितीय होता है और जब उस रास्ते पर कदम उठ जाते हैं तो स्मृति से संसार घर-परिवार सभी जैसे लुप्त होने लगते हैं।
    लेखिका रजनी मोरवाल ने अपने पहले उपन्यास ‘गली हसनपुरा’ (2020) में भी अमर प्रेम की एक दर्द भरी दास्तान से अपने पाठकों को रू-ब-रू कराया था। दोनों उपन्यास में प्रेम का अधूरापन है। अधूरापन इस रूप में कि प्रेम बार-बार जीवन में आकर फिर फिर छूट क्यों जाता है? प्रेम का होना कौन निर्धारित करता है? यह जटिल प्रश्न है कि कब, किसका, कहां और किससे प्रेम होगा। विवाह समाज में क्या प्रेम होने की गारंटी नहीं देता है। मारिया के जीवन में आधुनिक होने की स्थितियों के साथ त्रासदियां है। उसका अपनी जीवन स्थितियों से जूझना और फिर-फिर अपनी परंपरा, मान्यताओं और बंधनों में बंध जाने की नियति को लेखिका ने यहां रेखांकित की है। नारी विमर्श के अंतर्गत ऐसी अनेक रचनाएं हमारे सामने हैं जिन में मुक्ति के मार्ग की तलाश करती में स्त्री जीवन के अनेक आयामों को उजागर किया गया है। उल्लेखनीय है कि यहां परंपरा और आधुनिकता का समन्वय है। लेखिका किसी विचार अथवा निर्णय को अपने पाठकों पर आरोपित नहीं करती हैं। आधुनिकता की त्रासदी के रेखांकन में भारतीय परिवेश में नारी के लिए स्वतंत्रता व स्वच्छंदता में विभेदीकरण करने वाले सवालों का यहां सूक्ष्म अंकन हुआ है। यह सत्य है कि नैसर्गिक अधिकार स्त्री-पुरुष के लिए समान होने चाहिए। कुछ मूलभूत सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक स्थिति में नारी की व्यक्तिगत परिस्थितियां भी विचारणीय रखी जानी चाहिए। कवि कृष्ण कल्पित ने उपन्यास की भूमिका में लिखा है- ‘रजनी मोरवाल का यह उपन्यास इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि यह काम और प्रेम के द्वंद्व को प्रस्तुत करता है। यह उपन्यास प्रेम जैसी संदेहस्पद चीज के बरक्स काम को विश्वसनीय बताता है। पुरुरवा और उर्वशी के जमाने से शुरू हुए इस सनातन द्वंद्व को रजनी मोरवाल ने नयी कथा में गूंथकर नए ढंग से अभिव्यक्त किया है।’
    बटन रोज बारहमासी फूलों वाला आउटडोर पौधा है। प्रेम के लिए इसके समय में तो साम्य दिखाई देता है किंतु इसका आउटडोर होना प्रेम के संबंध में पूर्णतः सही नहीं है। प्रेम के लिए कोई स्थल अथवा स्थान निर्धारित नहीं किया जा सकता है। अंत में इसके शीर्षक को लेकर यह भी कि ‘बटन रोज़’ में ‘ज’ के नीचे लगे नुक्ता लगाया गया है जिसके बिना भी काम चल सकता था। यहां परिहास में कहें तो यह मुक्ता काले टीके के रूप में इसे नजर से बचने का टोटका है। किंतु कहा गया है- इश्क़ और मुश्क छुपाए नहीं छुपते। यह प्रेम-संबंधों की अबूझ पहेली है जिसे इसके पाठ में उपन्यासकार के साथ खोजना सुखद है।
------------
उपन्यास : ‘बटन रोज़’  
उपन्यासकार : रजनी मोरवाल
प्रकाशक : सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली
पृष्ठ :192 ;
मूल्य : 395/- (पेपर बैक)
संस्करण : 2023

------------

संपर्क : डॉ. नीरज दइया


 


Share:

No comments:

Post a Comment

Search This Blog

शामिल पुस्तकों के रचनाकार

अजय जोशी (1) अन्नाराम सुदामा (1) अरविंद तिवारी (1) अर्जुनदेव चारण (1) अलका अग्रवाल सिग्तिया (1) अे.वी. कमल (1) आईदान सिंह भाटी (2) आत्माराम भाटी (2) आलेख (11) उमा (1) ऋतु त्यागी (3) ओमप्रकाश भाटिया (2) कबीर (1) कमल चोपड़ा (1) कविता मुकेश (1) कुमार अजय (1) कुंवर रवींद्र (1) कुसुम अग्रवाल (1) गजेसिंह राजपुरोहित (1) गोविंद शर्मा (1) ज्योतिकृष्ण वर्मा (1) तरुण कुमार दाधीच (1) दीनदयाल शर्मा (1) देवकिशन राजपुरोहित (1) देवेंद्र सत्यार्थी (1) देवेन्द्र कुमार (1) नन्द भारद्वाज (2) नवज्योत भनोत (2) नवनीत पांडे (1) नवनीत पाण्डे (1) नीलम पारीक (2) पद्मजा शर्मा (1) पवन पहाड़िया (1) पुस्तक समीक्षा (85) पूरन सरमा (1) प्रकाश मनु (2) प्रेम जनमेजय (2) फकीर चंद शुक्ला (1) फारूक आफरीदी (2) बबीता काजल (1) बसंती पंवार (1) बाल वाटिका (22) बुलाकी शर्मा (3) भंवरलाल ‘भ्रमर’ (1) भवानीशंकर व्यास ‘विनोद’ (1) भैंरूलाल गर्ग (1) मंगत बादल (1) मदन गोपाल लढ़ा (3) मधु आचार्य (2) मुकेश पोपली (1) मोहम्मद अरशद खान (3) मोहम्मद सदीक (1) रजनी छाबड़ा (2) रजनी मोरवाल (3) रति सक्सेना (4) रत्नकुमार सांभरिया (1) रवींद्र कुमार यादव (1) राजगोपालाचारी (1) राजस्थानी (15) राजेंद्र जोशी (1) लक्ष्मी खन्ना सुमन (1) ललिता चतुर्वेदी (1) लालित्य ललित (3) वत्सला पाण्डेय (1) विद्या पालीवाल (1) व्यंग्य (1) शील कौशिक (2) शीला पांडे (1) संजीव कुमार (2) संजीव जायसवाल (1) संजू श्रीमाली (1) संतोष एलेक्स (1) सत्यनारायण (1) सुकीर्ति भटनागर (1) सुधीर सक्सेना (6) सुमन केसरी (1) सुमन बिस्सा (1) हरदर्शन सहगल (2) हरीश नवल (1) हिंदी (90)

Labels

Powered by Blogger.

Recent Posts

Contact Form

Name

Email *

Message *

NAND JI SE HATHAI (साक्षात्कार)

NAND JI SE HATHAI (साक्षात्कार)
संपादक : डॉ. नीरज दइया