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लघकथा विधा सूं ‘भ्रमर’ री अपणायत/ डॉ. नीरज दइया

    भंवरलाल ‘भ्रमर’ राजस्थानी रा चावा-ठावा कहाणीकार अर संपादक रूप जाणीजै। आपरा तीन कहाणी-संग्रै ‘तगादो’, ‘अमूझो कद तांई’ अर ‘सातूं सुख’ घणा चर्चित रैया। कहाणियां रै अेक संपादित संग्रै ‘पगडांडी’ रो जस ई आपरै नांव। बाल उपन्यास ‘भोर रा पगलिया’ अर लघुकथा संग्रह ‘सुख सागर’ (1997) ई राजस्थानी में छप्योड़ा। आपरै संपादक-रूप री बात करां तो ‘मनवार’ (1981) नांव सूं कहाणी पत्रिका काढी, जिण रो फगत अेक अंक ई साम्हीं आयो। मुरलीधर व्यास ‘राजस्थानी’ री प्रेरणा सूं राजस्थानी कहाणी रै विगसाव सारू आप घणा जतन करिया। कहाणी विधा रै विगसाव नै लेय’र ‘मरवण’ (1986) नांव सूं अेक तिमाही पत्रिका आप बरसां-बरस आपां साम्हीं राखी। ‘मरवण’ सूं अेक कथा आंदोलन री सरुआत हुई। इण रा कहाणी-अंक, व्यंग्य अंक अर ‘कनक सुंदर’ उपन्यास अंक बरसां याद करीजैला। इणी ढाळै आप राजस्थानी भाषा साहित्य अेवं संस्कृति अकादमी बीकानेर री पत्रिका ‘जागती जोत’ रै अेक अंक संपादित करियो। इण नै लघकथा विधा सूं ‘भ्रमर’ री अपणायत ही कैय सकां कै बां लघुकथा विधा री सबळी ओळखाण खातर ‘अपणायत’ (1996) नांव सूं अेक पत्रिका सरु करी।
    पत्रिकावां रै इतिहास मांय भंवरलाल ‘भ्रमर’ री इतिहासू भूमिका मानी जावैला क्यूं कै कोई पण लघुपत्रिका काढणी अर उण नै चलावणी घणो अबखो काम है। कैवै कै पत्रिका काढणो हाथी पाळणो हुवै। नफै री बात तो कठैई कोई कोनी, इण सूं खुद री रचनात्मकता अर पइसा-टका रो नुकसाण ई साफ निजर आवै। संपादन नै केई-केई स्तर माथै सैयोग चाइजै। आर्थिक समस्या हल करै तो ढंग री रचनावां री समस्या अर उण रै संपादन पछै छापैखानै री समस्या। आजकलै तो छपाई कंप्यूटराइज हुया केई सुभीता हुया है भ्रमर जी री टैम राजस्थानी नै लेय’र छापाखाना री घणी अबखाई ही। अबखाई तो हाल ई है कै राजस्थानी नै सावळ टाइप करणियां टाइपिस्ट साव कमती है जिका नै इण काम री जाणकारी है। भ्रमर जी रै साम्हीं आयै छपाई रै अबखै काम में सदीव राजस्थानी रा विद्वान लेखक माणक तिवाड़ी ‘बंधु’ रो मोटो सैयोग रैयो। तिवाड़ी जी खुद प्रेस लाइन सूं जुड़ियोड़ा हा अर ‘मरवण’ अर ‘अपणायत’ रै प्रकाशन नै लेय’र बां घणी मैनत करी। ‘अपणायत’ रो चौथो अर पांचवो अंक कंप्यूटराइज हुवण सूं उणां में लारलै अंक सूं फरक साफ-साफ निगै आवै। अबै जरूरत ‘अपणायत’ अर दूजी दूजी पत्र-पत्रिकावां रै पीडीएफ का इमेज रूपां नै इंटरनेट रै हवालै सूंपण री जिण सूं आगै रै सोध-खोज रै कामां मांय सुभीतो हुवै। अबै अपणात पत्रिका का किणी दूजी पत्रिका का जूना अंक कठै मिलै अर बां बाबत पुखता जाणकारी ई कठै। राजस्थानी मांय इण ढाळै रै कामां री अंवेर हुवणी चाइजै।
    विगतवार बात करां तो लघुकथा विधा रै विगसाव नै लेय’र भंवरलाल ‘भ्रमर’ घणी हूंस साथै ‘अपणायत’ नै तिमाही रूप काढण री योजना बणाई ही। पत्रिका रो पैलो अंक मार्च, 1996 मांय पाठकां साम्हीं राख्यो। पत्रिका रो दूसरो अंक जून में आवणो हो पण नीं आय सक्यो। बरस 1996 रा लारला दोय अंक-  सितंबर अर दिसंबर में बगतसर प्रकाशित हुया। उण पछै बरस 1997 रै दिसंबर महीनै में ‘अपणायत- 4’ आपां साम्हीं आवै, उण पछै अेक मोटो गेप अर ‘अपणायत- 5’ रो अंक दिसंबर, 2007 में पाठकां साम्हीं आवै। इण कमी रै छता अठै आ कम मोटी बात मानीजैला कै कोई संपादक राजस्थानी में लघुकथा विधा री स्वतंत्र पत्रिका का पांच अंक काढ्या। अपणायत रो छठो अंक तैयार जरूर करीज्यो पण प्रेस में अटकग्यो अर पछै इण ढाळै रो कोई काम राजस्थानी में कोनी हुयो।
    आज देखां तो राजस्थानी री कोई पत्रिका लघुकथा रै विगसाव पेटै समरपित कोनी। बगत-बगत माथै पत्रिकावां में लघुकथावां छापै पण दुर्गेश टाळ कोई दूजो लेखक कोनी जिण सूं लघुकथा विधा री का उण लेखक री ओळखाण राजस्थानी लघुकथाकार रूप बणी हुवै। फगत अेक पत्रिका- ‘राजस्थली’ है, जिकी बरसां पैली लघुकथा केंद्रित विशेषांक काढ्यो। इणी ढाळै जे लघुकथा रै संपादित ग्रंथां री बात करां तो इण विधा रो पैलो संपादक हुवण रो जस कवि श्याम महर्षि नै जावै, बांरै संपादन में अेक लघुकथा संग्रै प्रकाशित हुयो। प्रयास संस्थान अर रामकुमार घोटड़ इण दिसा में काम करिया है अर ‘मिणिया मोत’ नांव सूं पैलो व्यवस्थित संपादित लघुकथा संग्रै साम्हीं आयो। काम तो केई हुया अर भळै ई हुवैला पण अठै भंवरलाल ‘भ्रमर’ री बात करूं तो कैयो जावैला कै बां मांय संपादन नै लेय’र अेक गैरी दीठ देखी जाय सकै।
    अपणायत-1 सूं 5 तांई हरेक अंक मांय संपादक आपरै संपादकीय मांय लघुकथा विगसाव री बातां नै लेय’र चिंता करै साथै ई अंक नै न्यारा-न्यारा संतभां सूं उल्लेखजोग बणावण री खेचळ ई करै। दाखलै रूप बात करां तो बडेरा लेखकां री लघुकथा लेखन रचनात्मकता नै दरसावण सारू ‘धरोड़’ स्तंभ में मुरलीधर व्यास ‘राजस्थानी’ सांवर दइया, श्रीचंद राय, नृसिंह राजपुरोहित, दुर्गेश री लघुकथावां अेकठ प्रकाशित करी तो किणी लेखक री अेकठ रचनात्मकता रै दरसाव सारू ‘हेमाणी’ स्तंभ में नीरज दइया, डॉ. मनोहर शर्मा, भंवरलाल ‘भ्रमर’, बुलाकी शर्मा, उदयवीर शर्मा री लघुकथावां नै ठौड़ दीवी। अठै सवाल ओ पण करियो जावणो चाइजै कै लेखकां रै नांव मांय वरिष्ठता रो ध्यान क्यूं नीं राखीज्यो तो इण पेटै म्हारो कैवणो है क्यूं कै म्हैं ई संपादन रै काम सूं जुड़ाव राखूं कै किणी पण पत्रिका रै संपादक साम्हीं बगत बगत माथै केई अबखायां रैवै। रचनावां नै संपादन रै मारग सोधणो अर संजोवणो सरल नीं है अर जे भंवरलाल ‘भ्रमर’ जद कदैई कोई लघुकथा रो संकलन संपादित करैला तद बै अवस वरिष्ठता क्रम का अकादि क्रम सूं लघुकथा लेखकां नै राखैला।
    म्हारै इण आलेख रो मकसद लघुकथा लेखकां अर बां रै संग्रां रा नांव गिणावण रो नीं मानता थकां म्हैं कैवणी चावूं कै लघुकथावां रै विगवास री सोध करणिया आ पण कैवै कै आ विधा आजादी सूं पैली पांगरी। भ्रमर जी आपरै पैलै अंक रै संपादकीय मांय लिखै- ‘‘स्व. मुरलीधर व्यास ‘राजस्थानी’ री ‘प्रभु रो धरम’ राजस्थानी री पैली लघुकथा मानीजै, जिकी ‘ओळमो’ रै प्रवेशांक (1954) में छपी।” अपणायत रै प्रवेशांक में व्यास जी री तीन लघुकथावां ‘धरोड़’ स्तंभ में छपी जिण मांय अेक ‘प्रभु रो धरम’ ई सामिल है। लघुकथा में ‘लघु’ सबद रो मायनो कम सबदां सूं लियो जावै पण कम नै आपां किणी सबद सींव मांय नीं बांध सकां। लघुकथा में मूळ सबद लघु नीं ‘कथा’ है। अठै विरोधाभास ई देख सकां कै कथा रै दायरै मांय उपन्यास अर कहाणी दोनूं नै मान्या जावै फेर इसो उपन्यास का कहाणी जिकी कम सबदां मांय लिखीजै कांई बा लघुकथा कैयी जावै?
    राजस्थानी में अेक ही रचना नै कठैई कहाणी अर कठैई उपन्यास कैवणिया ई मिलै अर इण ढाळै री रचनावां पण मिलै जिकी कहाणी रूप रचनाकार राखी, पण पछै उण नै विस्तार देय’र उपन्यास रो नांव अर सरूप देय दियो। सांवर दइया रो दाखलो आपां साम्हीं है जिका छोटी छोटी कहाणियां रै कोलाज सूं ‘हालत’ अर ‘स्कूल : अेक कोलाज कथा’ मांडी जिण रै मूळ मांय लघुकथावां है इणी ढाळै बां री छोटी छोटी व्यंग्य-कथावां नै ई आपां ‘लघुकथा’ रै पाळै राख सकां। इण रो अरथाव ओ पण मान सकां कै कोई रचनाकार किणी लघुकथा नै ई विस्तार देय’र कहाणी का उपन्यास अथवा लघुकथवां रै कोलाज सूं ई कहाणी बण सकै। भरत ओळा रो दाखलो आपां साम्हीं है जिका कहाणियां रै कोलाज सूं उपन्यास बणावण री खिमता राखै। सबद तो रचनाकार रै हाथां री माटी है जिण सूं बो किणी रचना नै आकार प्रकार देवै। ‘लघुकथा’ विधा में कथा रो अरथाव उण री खिमता साथै रस नै अंगेजै। लघुकथा मांय व्यंग्य अर विरोधाभास री पूछ कीं बेसी हुवै। इण सारू व्यंग्य नै विरोधाभास नै लघुकथा रा जरूरी घटक मान सकां। आ बात आखै लघुकथा इतिहास रै विगसाव नै देखता साची निजर आवै। इण रै दाखलै रूप अठै कहाणी रा आगीवाण लेखक मुरलीधर व्यास ‘राजस्थानी’ री लघुकथा ‘न्याय’ देखां- जिकी लुगाई अर पंच रै फगत अेक संवाद सूं बणाइजी है। अेक सवाल है अर दूजो पड़ूतर। लघुकथा इयां है-
    लुगाई – मनै अेकली नै ई कियां दंड देवो हो? म्हारै जिसी खोटा करतब करणआळी बीजी रांडां नै भी तो दंड मिलणो चाइजै।
    पंच – थां रै पाप रो घड़ो फूटग्यो, समझगी! नहीं जणै धोती मांय कुण नागो कोनी?!
    कुल 37 सबदां री इण रचना में जठै अेक समाजिक साच प्रगट हुवै बठै ई न्याय व्यवस्था रा पोत ई निगै आवै। इण ढाळै री व्यंग्य री लकब आगै चाल’र लक्ष्मीनारायण रंगा, भंवरलाल ‘भ्रमर’ आद लघुकथाकारां री केई-केई लघुकथावां में ई देखी जाय सकै।
    राजस्थानी लघुकथा विधा री जातरां देखां तो ठाह लागै कै मानीता कवि कन्हैयालाल सेठिया री गद्य कवितावां री कृति ‘गळगचिया’ मांय लघुकथा सोधणिया बिरथा जतन करै! क्यूं कै राजस्थानी में घणा लेखक मिलैला जिका छिड़ी-बिछड़ी लघुकथावां मांडी, पण इण विधा खातर समरपित लेखक कमती है। म्हारी इण बात मांय नृसिंह राजपुरोहित अर सांवर दइया आद लेखकां नै सामिल करता कैवणी चावूं कै बां बगत रै दबाव में कणाई कीं रचनावां लघुकथा रै रूप मांडी पण बै प्रमुख लघुकथाकार रूप नीं जाणिया जावै। मनोहर शर्मा, उदयवीर शर्मा, दुर्गेश, भानसिंह शेखावत, नीरज दइया, पवन पहाड़िया, भंवरलाल ‘भ्रमर’, माधव नागदा, रामकुमार घोटड़ आद केई लेखकां रा नांव इण खातर उल्लेखजोग कैया जावैला कै आं लघुकथा विधा मांय आपरो अवदान बरसां सूं लगोलग दरसावता थकां विधा रै विगसाव सारू सोच्यो।
    ‘अपणायत’ पत्रिका में देस-दिसावर-विदेस तीन स्तंभ तीन दिसावां रा मारग खोलै। ‘देस’ संतभ मांय मूळ राजस्थानी लेखकां री रचनात्मकता देखी जाय सकै तो परदेस अर विदेस दो दूजा स्तंभां मांय केई-केई भासावां सूं अनूदित लघुकथावां सामिल कर’र संपादक इण विधा रा नवा दीठावां साम्हीं राखै। भंवरलाल ‘भ्रमर’ लघुकथा आलोचना री दिसा में ई काम करियो अर ‘लघुकथा रा बिगसता दरसाव : अेक इतिहासू दीठ’ नांव रै आलेख में बां लघुकथा नै परिभाषित करता थकां उण रै उद्भव अर विकास री बात करी है। अठै खास उल्लेखजोग बात आ है कै भंवरलाल ‘भ्रमर’ ‘अपणायत-1’ में लिख्यो कै स्व. मुरलीधर व्यास ‘राजस्थानी’ री ‘प्रभु रो धरम’ राजस्थानी री पैली लघुकथा मानीजै, जिकी ‘ओळमो’ रै प्रवेशांक (1954) में छपी। जद कै बां आपरै इण आलेख में लिख्यो है- ‘आधुनिक राजस्थानी लघुकथा रो श्रीगणेश लगैटगै 1937-38 ई. मांय श्रीलाल नथमल जोशी रै संपादन में ‘ज्योति’ हस्तलिखित पत्रिका में प्रकाशित श्रीचंद राय री ‘जापानी बबुओ’ सूं मानी जाय सकै। राजस्थानी री पैली लघुकथा रो जस ‘जापानी बबुओ’ नै मिलै। नित नवै सोध-खोज सूं जूनी स्थापनावां बदळै अर कैय सकां कै इण दिसा मांय फेर ई काम हुवैला अर नवी बातां आपां साम्हीं आवैला। आपरी कैयोड़ी बात नै सुधारणी अर स्वीकार करणी भ्रमर जी री मोटी बात कैय सकां।
    मुरलीधर व्यास ‘राजस्थानी’ री लघुकथा ‘न्याय’ नै इणी आलेख मांय आपरै साम्हीं राखी जिकी इयां लखावै कै राजस्थानी री सबसू छोटी लघुकथा हुवैला पण भ्रंवरलाल ‘भ्रमर’ आपरै आलोचनात्मक आलेख में लिख्यो है- ‘विकट पहेली’ बां (श्रीचंद राय) री लघुतम लघुकथा ही, जिकी आजादी सूं घणी पैली छ्प’र मोकळी चावी हुई- ‘अेक सत्ताधारी मिनख नरमुंडा री फुटबाल खेलतो कीं नहीं लखै, पण बो ही जद सत्ताहीण हो जावै तो गळियां रै मांय फिरता सूं नर नूं नारायण जाण दोनूं हाथ जोड़नै नमस्कार करण लागै।’ मुरलीधर व्यास ‘राजस्थानी’ री लघुकथा ‘न्याय’ कुल 37 सबदां री ही अर 34 सबदां री। उण मांय अेक संवाद है अर इण मांय अेक स्टेटमेंट है। लघुकथा री सबसूं मोटी खासियत ‘घाव करै गंभीर’ मानीजै अर देखणो ओ चाइजै कै अै दोनूं लघुकथावां कित्तो, कांई कोई घाव करै...!
    हरेक रचनाकार अर आलोचक री आपरी आपरी मनगत अर सींव हुवै। दूजी दूजी भासावां मांय ई पैली लघुकथा बाबत केई केई बातां मिलै अर सोधणिया आ पण सोधै कै संसार री सगळा सूं छोटी लघुकथा किण नै माना। लघुकथा में मरम री गैरी बात हुवणी चाइजै अठै दाखलै रूप चावा-ठावा लेखक खलील जीब्रान री लघुकथा ‘लोमड़ी’ री चरचा करणी ठीक रैसी।
    सूरज ऊगाळी री टैम खुद री छियां देख’र लोमड़ी कैवै- आज दुपारा रै खाणै मांय ऊंठ खासूं।
    दिनूगै रो पूरो बगत उणा ऊंठ री तलास मांय गुजार दियो फेर दुपारां उण आपरी छियां देख’र कैयो- अेक मूसो ई घणो हुसी।
    दूजी बात- लोक में अेक छोटी कहाणी चलै- ‘अेक हो राजा, अेक ही राणी। दोनूं मरगिया, खतम कहाणी।’ आपां जाणा कै इयां राजा-राणी रै मरिया कहाणी खतम कोनी हुवै। खलील जीब्रान री लघुकथा लोमड़ी मांय जिण ढाळै लोमड़ी आपरी छियां देख’र रंग बदळै उण सूं घणी बातां आपां रै मनां मांय उठै-बैठै। अंतस मांय इण ढाळै री बात जाणै किणी खूंटी माथै अटक जावै। लागै कै कीं तो हुयो है अर नवो हुयो है। कोई पण रचना आपरै पाठकां नै संस्कारित करै। पंच की बात करां का सत्ताधारी अर सत्ताहीन री तो आं री मनगत लोक मांय आगूंच ई इणी ढाळै री बणियोड़ी है।
    कवि नारायणसिंह भाटी आपरी चावी कविता ‘मिनख नै समझावणो दोरौ है’ में लिखै- ‘जोयेड़ी जोत रो कांई जोणो है/ होवतै काम रौ कांई होणौ है/ अणु नै उधेड़णो सोरौ है/ पण मिनख नै समझावणो दोरौ है।’ म्हारो मानणो है कि कोई पण रचना रो मूळ काम मिनख नै समझावणो है अर ओ काम दोरौ इण खातर है कै बो आगूंच समझ्यो-समझायोड़ो है। अेक रचनाकार अर रचना री इणी चुनौती नै आलोचना देख्या करै का कैवां कै आलोचना नै देखणो चाइजै। अठै भाटी साब री काव्य-ओळी सूं ई अेक बात आलोचना रै सीगै कैवणी चावूंला कै आलोचना नै ‘जोयेड़ी जोत रो कांई जोणो है’ ओळी रै मरम नै समझणो चाइजै। किणी पण आलेख में फगत इतिहासू बिकास रै नांव माथै पैली सूं बखाणीज्या आंकड़ा सूचनावां नै खुद रै आलेख मांय राखण रो काम ई राजस्थानी आलोचना करती रैयी है, बात बिना होवतै काम नै करण री हूंस लेय’र कीं नवो करण री हुया करै। अर नवी बात लघकथा विधा सूं ‘भ्रमर’ री अपणायत नै देखण-परखण री है।
००००
डॉ. नीरज दइया





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