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अे.वी. कमल रो रचना-संसार/ डॉ. नीरज दइया

 6 मार्च पुण्यतिथि माथै खास सिमरण-

राजस्थानी कवि-कथाकार-नाटककार मानीता अब्दुल वहीद ‘कमल’ (17 अप्रैल, 1936 - 6 मार्च, 2006) नै इण संसार सूं गया नै आज लगैटगै अठारा बरस हुवण नै आया है। आपां जे अेम.अे. कॉलेज रै हाई-वे सूं मुक्ता प्रसाद कानी जावां तद मुक्ता प्रसाद सरु हुवण सूं पैली जीवणै हाथ कानी मोटै आखरां मांय ‘घराणो’ नांब लिख्यो दीसैला। ओ गुरुजी अे.वी.कमल रो रैवास हो अर बां रै चावै उपन्यास रो नांव ई ‘घराणो’ हो जिको बरस 1996 में छप्यो अर उण नै साहित्य अकादेमी पुरस्कार बरस 2021 रो मिल्यो। इण उपन्यास री भूमिका लिखता पद्मश्री लक्ष्मीकुमारी चूण्डावत अर दूजा लेखकां ई सरावणा करी। इण उपन्यास पछै आपरो दूजो उपन्यास ‘रूपाळी’ (2003) ई घणो चरचा में रैयो। आं दोनूं उपन्यासां नै केंद्र में राखता म्हैं अेक लांबो आलेख ई उपन्यास विधा रै विगसाव रूप परखता मांडियो हो। म्हारो मानणो है कै राजस्थानी उपन्यास परंपरा नै पोखण पैटै अे.वी.कमल रा दोनूं उपन्यास आपरी कथा-जमीन अर पात्रां रै पाण घणा-घणा महतावूं है।
म्हैं जद सार्दूल स्कूल मांय पढ़तो हो तद मानीता अे.वी. कमल, मो. सद्दीक, अजीज आदाज आद केई गुरुजनां सूं घणो कीं सीखण नै मिल्यो। साहित्य सूं ओळखाण करवाण मांय घर-परिवार अर स्कूल री मोटी भूमिका हुवै। कमल गुरुजी स्कूटर राख्या करता हा अर बां रै जीवण रै लारलै बरसां बां रो पृथ्वीराज रतनू अर कन्हैयालाल बोथरा सूं बेसी घराणो रैयो। बां मिमझर नांव सूं संस्था रै मारफत काम करिया अर जसजोग ग्रंथ ‘आपणी धरती आपणा लोग’ मांय बां रो मोटो सैयोग रैयो। गुरुजी अे. वी. कमल कवि अर नाटककार रै साथै बाल साहित्यकार रूप ई जाणीजै। बां रो बाल उपन्यास ‘हावड़ै रो धोरो’ घणो चावो रैयो। इणी ढाळै नवयुग ग्रंथ कुटीर सूं बां रो कविता संग्रै छप्यो। नाटक री बात करां तो राजस्थानी नाटक ‘तूं जांणी का म्हैं जांणी’ (1993) जिको अकादमी सैयोग सूं बां खुद बाबुल प्रकाशन सूं छाप्यो। इण नाटक रो 23 मार्च, 1993 नै रेलवे प्रेक्षागृह मांय लक्ष्मीनारायण सोनी रै निर्देशन में मंचन हुयो। ओ मंचन राजस्थली संस्थान कानी सूं हुयो अर राजस्थान संगीत नाटक अकादमी री मंचीकरण योजना रै तैत इण नाटक मांय हनुमान पारीक, प्रदीप भटनागर, जगदीश सिंह राठौड़, सुरेश खत्री, सीमा माथुर आद कलाकार रूप भाग लियो तो ओम सोनी, आभाशंकर जिसा दिग्गज नांव ई इण नाटक सूं जुड़्या हा। कैवण रो अरथाव कै कोई रचनाकार आपरै जीवण काल मांय खूब काम करै पण उण रै जायां पछै उण काम री अंवेर कम हुया करै। इण रा केई कारण कैया जाय सकै। घर-परिवार कानी सूं उण री सिरजणा रो मोल-तोल नीं करीजै तद उण काम नै ठबक लागै। कमल गुरुजी री केई अणछपी रचनावां फाइलां अर पांडुलिपियां रूप ई रैयगी। जिकी छपी बै अबै सगळी मिलण मांय समस्या है। बां रै समग्र साहित्य माथै पोथ्यां नीं मिलण सूं बात नीं हुय सकै पण बां रै उपन्यासकार रूप बाबत अठै कीं खास खास बातां कैवणी चावूं।
अब्दुल वहीद 'कमल' आपरै दोय उपन्यासां घराणो (1996) अर रूपाळी (2003) रै पाण जिकी कीरत कमाई उण री बात करां तो उपन्यासकार कमल री सगळां सूं लांठी खासियत आ है कै बां आपरै समाज रो जिको सांतरो चितराम सबदां रै मारफत राख्यो बो मुसळमान समाज रै जुदा-जुदा रूप-रंग नै राखतां थकां उण मायंला दुख-दरद अर सांच नै राखै। राजस्थानी उपन्यासां में कमल सूं पैला किणी रचनाकार इण दिस इण ढाळै री रचनावां कोनी करी। राजस्थानी उपन्यास परंपरा में संजोग रा खेल बात परंपरा सूं हाल तांई साथै-साथै चालै। घराणो में ई संजोग-दर-संजोग उण री कथा रै जथारथ नै अळघो बैठावै, पण आ कुबाण तो आपां देखां, उपन्यास परंपरा री खास खासियत है। उपन्यास ‘घराणो’ में काव्यात्मक गद्य रा दरसण ई हुवै, जिण रो अेक दाखलो- ‘मांझळ रात ही। तारां छायी चूनड़ी सो आभो आपरी छक जवानी माथै हो। स्यांत समुंदर-सो गहरी नींद में सूत्यो सगळो गांव। बाळू रेत रै धोरां सूं चौफेरो घिरियोड़ो ओ गांव अर गांव रै च्यारूंमेर पसरियोड़ो सागीड़ो सरणाटो, जाणै ओ सरणाटो सगळै गांव नै आपरी गोदी मांय सांवट राख्यो हो।’ (पेज - 11)
भासा बाबत अेक बीजी घणी सरावणजोग बात आ है कै आं उपन्यासां में मुसळमान समाज री जिण राजस्थानी भासा रो अेक खरो-खरो रूप आपां सामीं आवै बो आपरै लोक जथारथ रै कारण घणो असरदार है। भासा में सामाजिक रूप-रंग नै राखतां थकां, उणां मांयला दुख-दरद अर सांच नै लेखक जिण रूप में चवड़ै करै बो उपन्यास परंपरा में सदव यादगार रैवैला। घराणो में ‘म्हारा दो आखर’ में उपन्यासकार री टीप तीन पानां में छपी है। कबीर आपां नै ढाई आार में पंडत बणा देवै, तो लेखक आगूंच दो-आखर में रचना रा सगळा पोत चवड़ै कर देवै। आगूंच दो आखर में उपन्यासकार लिखै- ‘म्हैं इण उपन्यास में आ कैवण री चेष्टा करी है कै ‘घराणो बेटी’ रै नांव सूं, बेटी रे सुभाव सूं, बेटी रै बरताव सूं अर बेटी रै चाल-चलन सूं ओळखीजै।’ तो सा ओ मूळ मंतर है जिको इण रचाव रो सार है। अेक समाज रै सांच नै लेखक इण ढाळै प्रगटै- ‘बेटी नै जलमतै ई गळो घोट’र का अमल देयर मारणै री रीत इण घराणै में लारली चार-पांच पीढियां सूं चाल रैयी है। इणां रौ ओ मानणो है कै बेटी तो भाग-फूट्यां रे हुवै है।’ (पेज - 17)
घरणो मुसळमान दांईं हमीदा री कीरत नै बखाणै। उपन्यास अेक छोरै री आस में गळती सूं जलमी छोरी रै प्राणां री अेंवर रै मिस सवाल उठावै, पण उण नै जिण रूप में बिगसावै बो सहज कोनी। असहज कथा ई कथा रो आधार होया करै, पण असहज नै लेखक सहज रै रूप में प्रगटै आ लेखक री खिमता मानीजै। विचार में आ बुणगट कै हिंदू-मुसलमान अेक है-हमीदा रो हीराबाई रै रूप में बदळाव प्रभावित करै, अर ठाकर धनजी अर जीवण रो आंतरो मिनख-मिनख रै विचारां रै आंतरै नै दरसावै।
घराणो बरस 1957 सूं 1966 तांईं रै बगत नै आधार बणावै। रूपाळी में बगत बरस 1965 अर 1971 रै भारत-पाकिस्तान जुद्ध रै अेनाणां रै अैन बीचाळै ऊभो है। जुद्ध रै मांयला-बारला नफा-नुकसाणां री विगतां में केई विगतां अधूरी रैय जावै। बां री संभाळ रचनाकार ई कर सकै, अर अेक संभाळ नै आपां उपन्यास ‘रूपाळी’ में देख सकां। रूपाळी में हिंदू-मुसळमान अेकता अर सद्भाव नै जठै सुर मिल्या है, बठै ई मिनखबायरै घर में किणी लुगाई अर उण रै टाबरां नै हुवण आळी तकलीफां रो लेखो-जोखो पूरी ईमानदारी सूं सामीं राखीज्यो है। जीवण-जुद्ध जूझती लुगाई-जात री इण अंवेर खातर लखदाद। आगूंच ढाई आखर में उपन्यासकार कमल लिख्यो है- ‘उपन्यास में म्हैं आ कैवण री चेष्टा करी है कै जकी लुगाई, लोक लाज सूं, लुगाई जात री मर्यादा सूं आज तक घुट-घुट’र मरती रैयी है। अबै बा समाज री कुरीत्यां अर लोक री अनीत्यां सूं जुड़ै थकां जुलमां अर अणकथ कष्टा नै भोगण नै त्यार नीं है। चावै बा रूपाळी (जमाली) हो का राधा। क्यूं कै लुगाई जात है। लुगाई रो धरम लुगाई है। उपन्यास री नायिका रूपाळी रो चरित्र अेक अेड़ो ई चरित्र है।’
लुगाई जात रो समाज री जूनी मानता, परंपरा, रिवाज का अणचाइजती बात सामीं हुवणो नै पेटै गळत रै विरोध मे हरफ काढणो किणी, आधुनिक रचना में सरावणाजोग मानीजै। स्त्रीवाद जैड़ी चरचा राजस्थानी में कोनी पण उपन्यास रूपाळी रै मारफत जे लेखक राजस्थानी समाज री किणी लुगाई रै इण नवै रूप री ओळखाण करावै तो उण री सरावण हुवणी चाइजै। अठै आ ओळी लिखतां रूपाळी री इण दीठ सूं पुरजोर सरावणा करणी चावूं। उपन्यास-जातरा में ‘रूपाळी’ उपन्यास रो खास उल्लेख इण खातर करियो जावैला कै इण में उपन्यासकार हिंदू-मुसळमान अेकता अर बां री आपसरी री प्रीत रा केई बेजोड़ चितराम ई मांड्या है। बियां घणै गौर सूं रूपाळी री कथा माथै विचार करां तो आ अेक प्रेम-कथा है, जिण में रूपाळी री प्रेमकथा रै साथै-साथै उण री मां जुबैदा री आपरै घरधणी रै लारै प्रेम अर विरह री कथा आधार रूप गूंथीजी है। सगळां सूं सिरै बात आ है कै जुबैदा आपरै घराळै जमालखां (जगमाल) अर छोरी जमाली (रूपाळी) रै सुख-दुख में बंधी राजस्थानी उपन्यासां में जीवटआळी यादगार नायिका रै रूप में आपां सामीं ऊभी होई है। उपन्यास में मुसळमान रो ठेठ भारतीयकरण मिलै, जिण नै कोई हिंदूवाद का हिंदूकरण ई मान सकै। लेखक जमाली रो नांव ई रूपाळी अर जमाल खां रो जगमाल बरतै। आं चरित्रा में लेखक रो मकसद हिंदूवाद नीं पण अेक गांव री भारतीयता रो रंग उजागर करण रो रैयो है।
सगळा सूं मोटी बात आ कै कमल गुरुजी खुद आपरै जीवण मांय धरम का किणी पण आधार रो भेदभाव कोनी राख्यो। बै किणी जात का संप्रदाय रा लेखक नीं हा अर बां रै लेखन सूं इण संसार साथै बसतो लोक जीवण रो अंस उजागर हुवै जिको भारत री मूरत नै पूरण करण मांय मददगार बणै। बै सदीव राजीमन सूं बोलता-बतळावता अर छोटा रो खास लाड रखता हा। बां रै उपन्यासां माथै फिलम बण सकै आ बात बै जाणता इण सारू बां कीं प्रयास ई करिया। म्हनै चेतै आवै कै आमीर खान सूं ई इण सिलसिलै मांय मिल्या पण आगै संयोज ओ रैयो कै बै इण संसार सूं विदा ले लीवी अर सगळी बातां लारै रैयगी। आज जरूरत बां रै प्रकाशित अप्रकाशित साहित्य नै अंवेरण री कैय सका जिण सूं बां रै साहित्य माथै विगतवार चरचा हुय सकै।

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