‘पेड़ और बादल’ गोविन्द शर्मा का सद्य प्रकाशित बाल कहानियों का संकलन है। बालसाहित्यकार, व्यंग्यकार और लघुकथाकार के रूप में पर्याप्त ख्यातिप्राप्त रचनाकार शर्मा को उनके बाल कहानी संग्रह ‘काचू की टोपी’ के लिए साहित्य अकादेमी नई दिल्ली का बाल साहित्य पुरस्कार 2019 अर्पित किया जा चुका है। राजस्थान में अनेक राजस्थानी लेखकों को बाल साहित्य के लिए साहित्य अकादेमी द्वारा बाल साहित्य पुरस्कार प्राप्त है, किंतु राजस्थान से हिंदी लेखक के रूप में इसे अर्जित करने वाले गोविन्द शर्मा अकेल और पहले लेखक हैं। प्रस्तुत संकलन पर्यावरण चेतना की सुंदर-सरस दस बाल कहानियां का उनका संग्रह हैं।
वर्तमान समय में सबसे महत्त्वपूर्ण और ज्वलंत विषय पर्यावरण है। गोविन्द शर्मा के संग्रह ‘पेड़ और बादल’ की सभी कहानियां बेहद अपनी बात कहने में सक्षम-समर्थ है। यहां रेखांकित किया जाना चाहिए कि कहानीकार बिना किसी उपदेशक की भूमिका ग्रहण करते हुए बाल मन को सुंदर संदेश देने में सफल हुआ है। संग्रह की शीर्षक कहानी ‘पेड़ और बादल’ में एक छोटी लड़की गुड़िया के माध्यम से पेड़ों के महत्त्व को बहुत सुंदर कथा में स्थापित किया गया है। बादलों के बरसने का रहस्य पेड़ ही है, इस बात को गुड़िया और बादल के संवाद से सहज संभव करना यहां देखते बनता है। आज आधुनिकता और अद्यौगिक विकास के नाम पर पेड़ों को बचाना क्यों जरूरी है? खेती के अनेक संसाधनों के बाद भी वर्षा का जल क्यों जरूरी है? इन मुद्दों को कहानी स्पर्श करती है।
विकास की आंधी में पेड़ों को जिस अंधाधुन गति से काटा जा रहा है, क्या उसी तेजी से बहुत जल्दी पेड़ हम उगा सकने में समर्थ हैं? यह सवाल को कहानी ‘नीम का बीज’ के माध्यम से प्रस्तुत करते हुए कहानीकार गोविन्द शर्मा जहां विज्ञान की सीमाओं और संभवनाओं पर प्रकाश डालते हैं, वहीं पेड़ों को बचाने का संदेश भी देते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ कहानी को बाल मनोविज्ञान का निर्वाहन करते हुए प्रस्तुत किया गया है। सरकारी स्तर पर ‘पानी बचाओ, बिजली बचाओ और सबको पढ़ाओ’ की बात क्यों जोर-शोर के साथ की जा रही है? इस बात को बच्चों को समझाने का दायित्व शिक्षकों और हमारे समाज का है। संग्रह में ‘जल कंजूस’ एक ऐसी ही बाल कहानी है जिसमें एक शिक्षक का अपने विद्यार्थियों से सीधा संवाद है। यह कहानी बताती है कि कैसे बातों-बातों में ज्ञान की महत्त्वपूर्ण बातों को सरलता से समझाया जा सकता है। बच्चे भी बड़े समझदार हो गए हैं। कहानी के अंत में एक बालक का यह कथन देखें- ‘यही की आपने पढ़ाने का मूड न होने का कह कर भी हमें पानी बचाने का पाठ पढ़ा ही दिया।’ इस बात पर सर केवल मुसकराये और बच्चे हंस दिए। ऐसा ही संदेश संग्रह की एक अन्य कहानी ‘जल चोर’ में देख सकते हैं। पानी बचाने की बात को हमारी जिम्मेदारी के रूप में कहना समझना इस कहानी उद्देश्य है।
पशु-पक्षियों के लिए पर्यावरण का क्या महत्त्व है? जब आज हमारे गांव परिवर्तित और विकसित होते जा रहे हैं, तो जीव-जंतुओं और पशु-पखेरूओं के आवास स्थानों पर भी विचार किया जाना चाहिए। ‘हमें हमारा घर दो’ कहानी में बदलू के माध्यम से हरियल तोते की बात प्रस्तुत कर कहानीकार ने बाल मन को छूने का प्रयास किया गया है। ‘चलो, मेरी कठिनाई तुम्हारी समझ में तो आई। भैया, मेरी दोस्ती निभानी है, मुझे साथ रखना है तो गांव में रहो। खेती करो या शहर में गांव जैसा महौल बनाओ। फिर मुझे बुलाना।’ हरियल तोता बदलू के हाथ के नए पिंजरे को घूरते हुए उड़ गया। (पृष्ठ-37)
आज की अवश्यकता है कि बच्चे जाने कि पेड़-पौधों में भी हमारी तरह जान बसती है। यह खोज करने वाले हमारे भारतीय वैज्ञानिक सर जगदीश चंद्र बोस की बातें आज भी कितनी उपयोगी और महत्त्वपूर्ण है। यह कहना बहुत सरल है किंतु इसी बात को किसी कहानी का आधार बनाना बेहद कठिन है। इस कठिन काम को सरलता से कर दिखाया है कहानीकार गोविन्द शर्मा ने अपनी कहानी- ‘पत्ते नहीं, कान’ में। यह कहानी में दो छोटी-छोटी कहानियों या कहें घटनाओं का समूह है, जो दस वर्ष का अंतराल लिए हुए है। पहले प्रसंग को दूसरे प्रसंग से जोड़ते हुए बहुत सुंदर कहानी का रूप लेखक ने विकसित किया है। फूफाजी पूजा का प्रसाद खुद तैयार करते हैं और पूजा के लिए पेड़ से पत्ते तोड़ते हैं तो कथानायक का यह कहना- ‘फूफाजी, प्रसाद तो आप अपने हाथ से बनाकर चढ़ाते हैं, पर पत्ते किसी और के लगाए पेड़ से चढ़ाते हैं। कितना अच्छा होता यदि आप अपने हाथ से पेड़ लगाते और उसके पत्ते तोड़कर ले जाते।’ कहानी में यह कथन बड़ा मार्मिक है। नासमझ बालक की इस बात पर यह कहते हुए कि बड़ों से इस तरह बात नहीं की जाती है, फूफाजी ने उसका कान उमेठ दिया। किंतु जब फूफाजी को इस बात का मर्म समझ आया तो उन्होंने खुद एक पेड़ लगाया। दस वर्ष में एक पेड़ के पास दूसरा पेड़ खड़ा हो गया। समय के साथ उनकी कुछ आदते बदल चुकी है किंतु कुछ पुरानी है। वे प्रसाद तो अब भी बनाते हैं किंतु पेड़ के पत्ते नहीं तोड़ते।
राजस्थान की वनदेवी अमृता की कहानी हम नहीं भूल सकते हैं। शमी वृक्ष जिसे राजस्थान में खेजड़ी कहते हैं। इसी शमी की लकड़ी यज्ञ की समिधा के लिए बहुत पवित्र मानी जाती है। खेजड़ी को राजस्थान का राज्य वृक्ष घोषित कर दिया गया है। संग्रह की अंतिम कहानी ‘अमृता देवी ने बचाए वक्ष’ में इसी कहानी को प्रस्तुत किया गया है। संग्रह की अन्य कहानियों में भी पर्यावरण विषय को सराहनीय ढंग से प्रस्तुत किया गया है। भाषा और कहन के मामले में गोविन्द शर्मा जिस सहजता और सरलता से अपनी बात कह जाते हैं वह निसंदेह अनुकरणीय है। प्रस्तुत बाल कहानियों के साथ-साथ पुस्तक में सुंदर चित्रों और साज-सज्जा पर भी प्रकाशक द्वारा पर्याप्त ध्यान दिया गया है, जिससे यह पुस्तक संग्रहणीय बन पड़ी है।
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पुस्तक : पेड़ और बादल (बाल कहानियां)
लेखक : गोविन्द शर्मा
प्रकाशक : साहित्यागार, धमाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर-302003
संस्करण : 2020, पृष्ठ : 64, मूल्य : 200/-
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