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पाठकों के नाम खुला पत्र / डॉ. नीरज दइया

मेरे प्रिय किशोर पाठकों!
     कैसे हैं आप? आशा है कि सकुशल और आनंद से होंगे। कोरोना के बाद जीवन फिर से अपनी गति पकड़ रहा है। हम एक बहुत बड़ी त्रासदी से बाहर आएं हैं, किंतु अब भी हमें नियमों और निर्देशों का पालन करना है।
     आज मैं खुद को आनंदित अनुभव कर रहा हूं क्योंकि आपके हाथों में हमारे समय के सुपरिचित साहित्यकार नन्द भारद्वाज जी की नई किताब ‘रामलीला रा चरित’ है। इस कृति में राजस्थानी भाषा में रचित तीन लघु नाटक हैं। नाटकों के विषय में कुछ बात करेंगे किंतु उसके पहले नाटककार नन्द भारद्वाज जी के वारे में कुछ बातें करनी जरूरी लगती हैं।
     साहित्य की विविध विधाओं में आदरणीय नन्द भारद्वाज जी ने खूब लिखा है और आपकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हैं। पूरे भारत में वे कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, अनुवादक, आलोचक के साथ-साथ मीडिया-विशेषज्ञ के रूप में जाने-पहचाने जाते हैं। आकाशवाणी और दूरदर्शन के उच्च पदों पर रहते हुए आपने अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए, जिनके लिए सम्मानित भी हुए हैं।
     साहित्य की बात करें तो नन्द भारद्वाज जी को प्रतिष्ठित साहित्य अकादेमी नई दिल्ली का मुख्य पुरस्कार वर्ष 2004 का उनके राजस्थानी उपन्यास ‘सांम्ही खुलतौ मारग’ के लिए अर्पित किया गया है। प्रतिष्ठित बिहारी पुरस्कार के अतिरिक्त अनेक मान-सम्मान और पुरस्कारों से वे अलंकृत हुए हैं, किंतु आज भी जब उनसे कोई मिलता है तो वे बड़ी सहजता-सरलता और सखा-भाव से मिलते हैं। बहुत बड़े लेखक होने का लेश मात्र भी दंभ उनमें नहीं है।  
     हमारे अनेक विद्वानों का कहना है कि बड़े लेखकों को बच्चों और किशोरों के लिए भी साहित्य लिखना चाहिए क्योंकि नई पीढ़ी ही देश का उज्ज्वल भविष्य है। स्वयं नन्द भारद्वाज जी भी इस बात से सहमत रहे हैं और उन्होंने बाल साहित्य लिखा भी है, किंतु पुस्तकार रूप में यह उनकी पहली किताब है।
     राजस्थानी बाल साहित्य में नाटकों की संख्या बहुत अधिक नहीं है और आधुनिक भाव बोध के स्तरीय लघु नाटक तो उससे भी कम मिलते हैं। इन नाटकों के लिए नन्द भारद्वाज जी ने किशोर मनोविज्ञान के साथ-साथ नाटकों के तकनीकी पक्षों को भी ध्यान में रखा है। नए युग के किशोरों की साहित्य से क्या अपेक्षाएं हैं, उनको दृष्टि में रखते हुए भाषा, शिल्प और कथ्य के स्तर पर उन्होंने समझौता नहीं किया है। निसंदेह इस संग्रह के तीनों लघु नाटकों में राजस्थानी भाषा के सहज प्रवाह के साथ जीवन की जटिलताओं को समझने-समझाने का प्रयास किया है। रेखांकित किए जाने योग्य यह भी है कि ये तीनों लघु नाटक बहुत कम संसाधनों और सीमित पात्रों द्वारा विद्यालयों में सरलता से मंचित किए जा सकते हैं।
     ‘रामलीला रा चरित’ में परंपरा और आधुनिकता का सुंदर समन्वय है तो बहुत ही रोचक ढंग से नाटककार ने हमारे सामाजिक ढांचे के ताने-वाने को उकेरने का सुंदर प्रयास किया है। व्यक्ति की कथनी और करनी के भेद को इंगित करते हुए हास्य और व्यंग्य से सधा यह लघु नाटक हमें हमारे आस-पास के चरित्रों पर फिर से सोचने-समझने का आह्वान करता है। संग्रह का दूसरा लघु नाटक ‘गळी गवाड़’ में राजस्थान के ग्रामीण जीवन के साथ आकाल और आर्थिक मार से त्रासदी भोगते एक परिवार का दुख-दर्द है। लोक में मान्यता रही है कि आदमी ही आदमी के काम आता है। इसी मान्यता को यह नाटक नाटकीय ढंग से प्रस्तुत करते हुए हमें विषय परिस्थितियों में आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। यह हमारी उम्मीद और हौसले को सकारात्मक दिशा में बनाए रखने की बात करता है। संग्रह की अंतिम रचना ‘बैतियांण’ प्रसिद्ध चीनी कथाकार लू शुन की कहाणी का नाट्य रूपांतरण है। यह आधुनिक भाव बोध के साथ दर्शन-चिंतन का दामन हमें थामने को प्रेरित करता है। आगे क्या होगा? यह कोई नहीं जानता है किंतु यह निश्चित है कि भविष्य में जो भी होगा, वह हमारे आज के कार्यों का परिणाम होगा। आधुनिक भाव भूमि से जुड़ी ऐसी गंभीर रचनाएं आप किशोर पाठकों को विश्व-साहित्य से जुड़ने, उसे जानने की प्रेरणा के साथ-साथ कहानी और नाटक के संवंध, समानता-असमानता आदि को समझने की पृष्ठभूमि भी प्रदान करेंगी।
     यहां यह भी स्पष्ट करता चलूं कि मैं स्वयं जब किशोरावस्था में था तब से आदरणीय नन्द भारद्वाज जी की रचनाओं को पढ़ता रहा हूं। संभव है आपने भी इन्हें कहीं किसी पत्र-पत्रिका या किताब में पढ़ा हो। जो भी हो किंतु मेरा बस यहां यही कहना है कि यह किताब आप पूरी पढ़ लेंगे तो मेरी इस बात से सहमत हो जाएंगे कि नन्द भारद्वाज बहुत बड़े और प्रभावशाली लेखक हैं। मुझे वेहद खुशी है कि उन्होंने मुझे यहां आपको संबोधित करने का यह एक अनुपम अवसर दिया है।
    अंत में बस इतना ही कि आजकल ई-मेल का जमाना है, यह किताब आपको कैसी लगी यह ई-मेल पर उन्हें बता सकते हैं। श्री नन्द भारद्वाज की का ई-मेल nandbhardwaj@gmail.com है। आपके ई-मेल पाकर उन्हें वेहद खुशी होगी, क्योंकि जब वे किशोरावस्था में थे तब ई-मेल का जमाना नहीं था और अब पत्रों का जमाना लुप्त होता जा रहा है। अपना ध्यान रखें।

सस्नेह आपका

-      डॉ. नीरज दइया

drneerajdaiya@gmail.com

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