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रति सक्सेना की कृति ‘अटारी पर चांद’ एक उपलब्धि / डॉ. नीरज दइया

यात्रा-वृत्तांत की पुस्तक में जिस रचनात्मकता, जीवनानुभवों की विवेकपूर्ण दृष्टि और नवीनता की उम्मीद-अपेक्षा रहती है, वह कवयित्री रति सक्सेना की प्रस्तुत कृति ‘अटारी पर चांद’ में एक उपलब्धि के रूप में सहज प्राप्य है। जर्मन कलाकारों की संस्तुति पर प्रदत्त विश्व प्रसिद्ध वालब्रेता रेजीडेंसी में लेखिका को अनेक सुविधाओं के साथ स्कॉलरशिप मिली तो उन्होंने वर्ष 2016 में लगभग तीन महिनों के प्रवास में वहां ‘पोइट्री थेरोपी’ प्रोजेक्ट पर काम किया और यह पुस्तक साथ-साथ रूप लेती रही। यहां रेजीडेंसी के अनुभवों को व्यापक परिप्रेक्ष्य में एक गौरवमय उपलब्धि के रूप में बिना मुखर हुए बेहज सहजता-सरलता, प्रवाह और धैर्य के साथ प्रस्तुत किया गया है। वैश्विक परिदृश्य में लेखिका ने स्त्रियों की आजादी जैसे प्रश्न को मुखरित किया है वहीं यह कृति देश-काल समय की सीमाओं से बाहर निकाल कर एक ऐसी दुनिया में ले जाती है जहां देशों की सीमाएं धुंधलके में चली जाती हैं। यहां हमारा एक ऐसे गद्यकार से साक्षात्कार होता है जिसका पूर्वनिर्धारित अथवा तयशुदा मार्ग नहीं है, किंतु बिखरे-बिखरे, अस्पष्ट और इस नवीन राह में बहुत कुछ समेट लेने की आकांक्षा है। रति सक्सेना की निर्लिप्तता और स्पष्टवादिता प्रभावित करती है कि वे समाज, इतिहास, दर्शन और मनोविज्ञान के अनछुए पन्नों को होले-होले खोलती हैं। असल में यह यात्रा-वृत्तांत उनकी डायरी है जिसमें उनका अध्ययन-चिंतन-मनन और वैश्विक कविता से जुड़ाव पाठकों को प्रभावित करता है। उनके बाहरी-भीतरी रचना-लोक की अनुपम छटाओं में साहित्य से भी इतर अनेक रंगों का आकर्षण यहां है। यूरोप, रूस और जर्मनी के स्थानों के बहाने यह यादों की गहरी पड़ताल है। खूबी यह है कि कोई पाठक जब इस यात्रा में प्रवेश करता है तो उसकी इस गद्य से इतनी अंतरंगता स्थापित हो जाती है कि वह लौटना चाहे तो भी बीच में लौट नहीं सकता है, यात्रा में सहयात्री उत्सुकता के साथ खुद-ब-खुद यात्रा करता है तो कृति की सार्थकता-सफलता है।

-    डॉ. नीरज दइया

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