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बाल मन के उद्गारों की लयबद्ध अभिव्यक्ति / डॉ. नीरज दइया

 राजस्थानी भाषा और साहित्य के लिए विगत तीन दशकों से सक्रिय पवन पहाड़िया की पहचान एक कवि और राजस्थानी भाषा मान्यता हेतु संघर्षशील रचनाकार के रूप में है। अपनी मातृभाषा के लिए ऐसे अनेक रचनाकारों की अपनी निष्ठाएं और आस्थाएं हैं, जिनके रहते वे अनेक मोर्चों पर स्वयं खड़े होने के लिए विवश है। पवन पहाड़िया भी एक कवि-लेखक के साथ-साथ जनचेतना और साहित्य के प्रचार-प्रसार-प्रकाशन हेतु सक्रिय है। इसके अतिरिक्त वे राजस्थानी भाषा के नए रचनाकारों को प्रेरित और प्रोत्साहित करने के लिए भी पहचाने जाते हैं। उन्होंने अनेक भामाशाहों को प्रेरित कर साहित्य पुरस्कार आरंभ किए हैं।
     ‘नम्बर वन आऊंला’ संग्रह पर पवन पहाड़िया को साहित्य अकादेमी का बाल साहित्य पुरस्कार (राजस्थानी) वर्ष 2017 का अर्पित किया गया है। यह बाल कविताओं का संग्रह उन्होंने प्रख्यात राजस्थानी साहित्यकार बी.एल. माली की प्रेरणा से लिखा है और यह संग्रह उन्हें ही समर्पित किया गया है। इस संग्रह की भूमिका में कविताओं में वर्णित विषयों और भावबोध का खुलासा करते हुए आलोचक डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित लिखते हैं- ‘‘एक अबोध बाल का मन सदैव आगै बढ़ने की चाहत रखता है। यही चाहत उसे सदैव सफलता के शिखर तक ले जाती है। उसी चाहत को कवि अपनी रचनाओ- नम्बर वन आऊंला के मार्फत बालकों में जाग्रत करता है। चेतना को ललकारता है कि वह किसी से कम नहीं है, वह सदा सत्य के मार्ग चलते हुए एक नया इतिहास रचेगा। यही चाहना ही उसे सफलता दिलाती है, सर्वश्रेष्ठ बनाती है।’’   
आरंभ में अपनी बात ‘मेरा दर्द’ शीर्षक से व्यक्त करते हुए कवि पवन पहाड़िया लिखते हैं- “नई पीढ़ी से मेरा आग्रह है कि वे चाहे अंग्रेजी में पढ़े-लिखें या हिंदी में पर घर में अपनी मातृभाषा को काम में लेंवे।” घर-परिवार और समाज में भाषा को संस्कार बनाएं रखने और जाग्रत करने के प्रमुख धेय से ही कवि ने इस संग्रह की 41 कविताएं लिखी है। पुस्तक की पहली कविता वंदना के रूप में करतार से अरदास है तो दूसरी बाल कविता ‘तिंरंगो’ में देश-भक्ति की भावना उजागर होती है। संग्रह में बालकों के आत्मीय और निजी संबंधों यथा मां, बहन आदि के महत्त्व को भी उजागर किया गया है। कवि कविताओं में श्रम के महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए संदेश भी देता है कि पढ़ने-लिखने के साथ-साथ खेलना-कूदना भी जीवन में उतना ही आवश्यक और अनिवार्य है। शिक्षा और चरित्र निर्माण की भावना इन कविताओं में प्रमुखता से उभर कर सामने आती हैं।
    संग्रह की अनेक कविताएं प्रेरणादायी है जिनमें बालकों से पानी के महत्त्व और वृक्षारोपण जैसे अनेक मुद्दों पर सीधा संवाद है। कवि मौसम की बात करते हुए गर्मी, सर्दी और वर्षा के मौसमों के विविध रंगों को कविताओं में शब्दबद्ध कर अनेक बिंब रखते हुए सुंदर चित्रों को जैसे चित्रित करते हुए बालकों को समोहित करता है। कविताओं में बालकों को प्रिय लागने वाली तितलियों और बिल्लियों की दुनिया के साथ अन्य पशुओं-पक्षियों को भी वर्णित विषय बनाया गया है। इन कविताओं से बालकों में भारतीय त्यौहारों का हर्ष-उल्लास एक झलक के रूप में प्रस्तुत होता है। होली, दीपावली, अक्षय तृतीया और मकर सक्रांति जैसे पर्वों के माध्यम से बालकों को संस्कारित करने का प्रयास भी हुआ है।
    संग्रह की शीर्षक कविता में राजस्थान सरकार द्वारा प्रतिभावान विद्यार्थियों को ‘लेपटोप’ दिए जाने को केंद्र में रखते हुए उन्हें प्रेरित करने हेतु एक बाल मन के उद्गार कवि ने लयबद्ध अभिव्यक्त किए हैं। मूल कविता की आरंभिक पंक्तियां हैं- ‘लेपटोप घर में ल्याऊंला / मां म्हैं नंबर वन आऊंला / बैगो दिनगै म्हनै उठाज्यै,/ दांतण करियां पाठ पढ़ाज्यै।’ बच्चों के द्वारा बच्चों को संदेश देना अधिक प्रेरक और प्रभावशाली है।
    बाल साहित्य के लिए कवि पवन पहाड़िया का सक्रिय होना सुखद है पर भाषिक संरचनागत कुछ बातों का भी यहां विशेष ध्यान रखा जाना आवश्यक है। बालक जो भाषा सीख रहा है उसके समक्ष भाषा की अनेक चुनौतियां भी होती है। उदाहरण के लिए पुस्तक के आवरण पृष्ठ पर ‘नम्बर’ लिखा गया है जबकि संग्रह में कविता के शीर्षक में ‘नंबर’ शब्द प्रयुक्त हुआ है। पंचमाक्षर का यह रूपभेद समरूपता की मांग यहां रखता है। कविताओं के साथ प्रयुक्त चित्रों को केवल कंप्यूटर के भरोसे नहीं छोड़ते हुए किसी कलाकार के माध्यम से अधिक मेहनत के साथ प्रस्तुत किए जाने की संभवाना बनी हुई है। ऐसी कुछ बातों के बावजूद यह संग्रह अपनी सरलता, सहजता, गेयता के कारण मनोहक और प्रभावशाली है। कवि को बाल मनोविज्ञान की गहरी समझ और भाषा की गहरी सूझ-बूझ है। उनके छंद-ज्ञान से संग्रह की इन बाल कविताओं को बल मिला है।
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नम्बर वन आऊंला (राजस्थानी बाल कविताएं)
कवि : पवन पहाड़िया, प्रकाशक- नेम प्रकासण ग्रा.पो. डेह (नागौर) राज. 341022, पृष्ठ : 52 मूल्य : 100/- संस्करण : 2014     
 
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० डॉ. नीरज दइया


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