बाल कथा संग्रह ‘दादीमा री लाडली’ राजस्थानी में युवा लेखक डॉ. मदन गोपाल
लढ़ा का दूसरा संग्रह है। इससे पूर्व 1998 में ‘सपनै री सीख’ संग्रह
प्रकाशित हो चुका है। राजस्थान से उभरने वाले हिंदी-राजस्थानी के
कवि-कहानीकार के रूप में उनकी विशेष पहचान रही है। संग्रह की 11 कहानियों
में अधिकांश किशोरावस्था पर केंद्रित है। कहानियों में राजस्थानी भाषा और
परिवेश की मोहक छटा है साथ ही कहानियों के शीर्षकों में गहरी सूझ-बूझ दिखाई
देती है। पहली कहानी ‘छतरी-सो आभो’ की बात करें तो यह ग्रामीण क्षेत्र में
बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित करती है। कहानी में गुंजन के माध्यम से उन
किशोर पाठकों को अपने लक्ष्य पर केंद्रित रहते हुए सतत मेहनत करने का संदेश
है। यह संदेश उसके संघर्ष से उभारने का यहां प्रयास है। दूसरी कहानी ‘मैणत
रो फळ’ में राज्य सरकार की अस्सी प्रतिशत से अधिक अंकों वाले
विद्यार्थियों को लेपटोप देने की योजना को केंद्र में रखा गया है। कहानी
में बालिका ‘नीति’ और उसकी कलावती मेडम का संवाद प्रेरणास्पद है। यहां
अकारण नहीं कि संग्रह की विभिन्न कहानियों में लेखक मदन गोपाल लढ़ा जो स्वयं
ग्रामीण क्षेत्र और शिक्षा विभाग से जुड़े हैं अपने अनुभवों से राजस्थानी
बाल साहित्य में कहानी को ऐसे अनेक नवीन विषयों और वर्तमान संदर्भों से
जोड़ते हुए एक नया अध्याय रचते हैं।
यहां किशोर पाठकों के लिए कहानियों
में एक भरा-पूरा वितान है। जहां विभिन्न चरित्रों के माध्यम से अनेक
संकल्पनाएं हैं। उन्हें पढ़ाई-लिखाई के साथ खेलने-कूदने और विभिन्न
गतिविधियों द्वारा सर्वांगिण विकास के लिए घटनाओं और चरित्रों के माध्यम से
प्रेरित-प्रोत्साहित किया गया है। शीर्षक कहानी में दसवीं कक्षा में
अध्ययनरत गोमती और उसकी दादी माँ का प्रेम-वात्सल्य है वहीं दायित्व-बोध और
किशोर मन की सूझ-बूझ भी उल्लेखनीय है। एक रात जब घर में गोमती और दादी माँ
है और दादी माँ की तबियत खराब होने पर गोमती का आधी रात मोबाइल से 108
डायल कर शहर से ऐम्बुलेंस बुलवाना प्रेरणास्पद है।
संग्रह की कहानियों
में मानवीय मूल्यों के प्रति किशोरों की सजगता देखी जा सकती है। ‘भूल
सुधार’ में चाइनीज मंझे से पक्षियों के घायल होने का संदर्भ है तो ‘सांचो
सबक’ में गरीबी के साथ भी ईमानदारी और ‘कोई काम छोटो कोनी’ में अंग्रेजी
स्कूल में पढ़ने वाले किशोर होते बाल-मन पर अन्यों से अपने पिता की तुलना का
भाव जिस निदान के साथ प्रस्तुत किया है वह सहज ग्राह्य है। ‘ओ मारग म्हारो
कोनी’ पत्र शैली में लिखी ऐसी कहानी है जिसमें गणपत अपने पिता को कोटा से
पत्र लिख रहा है कि उसकी इच्छा डॉक्टर अथवा इंजीनियर बनने की नहीं वरन वह
अध्यापक, वकील अथवा पत्रकार बनकर या फिर खेती-दुकानदारी कर जीविका कमाने के
अभिलाषा है। दुनियावी चकाचौंध के बीच बालकों को ‘गलती रो एहसास’ कराती इन
कहानियों में छोटे-छोटे वाक्यों और सरल-सहज शब्दावली में एक उनका सुंदर
संसार रचा गया है। कहानियों में केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय के साथ
ग्रामीण बालक-बालिकाओं और किशोरों के लिए उदाहरणों के माध्यम से अनेक
मार्गों का खुलासा हुआ है।
इन कहानियों में लेखक की अभिलाषा है कि
माता-पिता के साथ दादा-दादी और नाना-नानी के बालक स्नेह-पात्र बन आशीर्वाद
प्राप्त करें। आशा है कि वे जीवन मूल्यों के विकास के साथ-साथ समाज में
नवीन अध्याय रचते हुए अपने लक्ष्य को अर्जित कर सकेंगे। कहा जा सकता है कि
दादी माँ की लाडली, सबकी लाडली किताब बनेगी। राजस्थानी में सुंदर बाल
संग्रह को उपयुक्त चित्रों और साज-सज्जा के साथ प्रकाशन के लिए विकास
प्रकाशन को साधुवाद।
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पुस्तक : दादीमा री लाडली (राजस्थानी बाल कथा-संग्रह) कहानीकार : मदन गोपाल लढा
प्रकाशक : विकास प्रकाशन, जुबली नागरी भंडार, स्टेशन रोड़, बीकानेर 334001, संस्करण : 2017, पृष्ठ : 48, मूल्य : 50/-
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डॉ. नीरज दइया
(“बाल-वाटिका” मासिक पत्रिका मई, 2019 में प्रकाशित)
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