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जीवनानुभवों को व्यंजित करती कहानियां / डॉ. नीरज दइया

 हिंदी जगत के लिए गौरव का विषय है कि वरिष्ठ कहानीकार हरदर्शन सहगल अब भी सक्रिय हैं। आपका जन्म 26 फरवरी, 1935 को कुंदियाँ, जिला मियाँवाली (अब पाकिस्तान) में हुआ, यानी उम्र के 82 वसंत देख चुके सहगल की एक लंबी कहानी और अपनी जीवन-यात्रा है। उन्होंने अपनी दिनचार्या में अब भी लिखने-पढ़ने को अबाध गति से जारी रखा है। निसंदेह वे आज कथा-साहित्य के प्रतिमान हैं किंतु फिर भी वे अपनी रचनाओं के बारे में छोटी से छोटी राय-टिप्पणी पर भी ध्यान देते हैं साथ ही निरंतर परिष्कार और परिवर्धन की बातें सोचते रहते हैं।
    हरदर्शन सहगल अपनी अपनी जीवन-कथा आत्मकथा के रूप में ‘डगर डगर पर मगर’ में लिख चुके हैं, फिर भी उनकी झोली में अनेक अपनी और आस-पास की कहानियां शेष हैं। गुलाम और आजाद भारत के साथ बदलते शहरों और लोगों के मंजर उनके जेहन में नित्य कथाओं के उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं। आपके कृतित्व की बात करें तो अब तक दस कहानी-संग्रह, एक व्यंग्य कथा-संग्रह, तीन उपन्यास, दो बाल उपन्यास, एक नाटक, एक हास्य संस्मरण, दस बाल कथा-नाटक संग्रह, कई संपादित पुस्तकें के अतिरिक्त बाल साहित्य की अनेक पुस्तकें तथा लगभग दो हजार से अधिक स्फुट रचनाएं प्रकाशित व प्रसारित हो चुकी है। उनका विभाजन की त्रासदी पर लिखा उपन्यास ‘टूटी हुई जमीन’ अनेक भाषाओं में अनूदित और चर्चित हुआ है। वहीं ‘वर्जनाओं को लाँघते हुए’, ‘कई मोड़ों के बाद’ संग्रह विशेष रूप से चर्चित रहे हैं। इसी शृंख्ला में उनका कहानी संग्रह ‘मुहब्बते’ आज के बदलते समय और संदर्भों में विशेष रूप से उल्लेखनीय इसलिए भी है कि इसमें उनकी प्रेम कहानियों को संकलित किया गया है। ‘मुहब्बतें’ में संकलित कहानियां केवल नायक-नायिका के देहिक प्रेम की कहानिया नहीं है, वरन यहां प्रेम के विशद और व्यापक बहुआयामी रूप को देखा-समझा जा सकता है।
    संग्रह के आवरण पर कहानीकार हरदर्शन सहगल और श्रीमती कमला सहगल का एक पुराना चित्र और किताबों के बीच उनकी उपस्थिति अपने आप में एक कहानी है। यहां यह बताना भी आबश्यक है कि कृति के समर्पण पृष्ठ पर अंकित है- ‘‘जिसका होना ही मेरा अस्तित्व है : कमला”
    संग्रह के आरंभ में ‘गल्प का यथार्थ’ शीर्षक से एक भूमिका है जिसमें कहानी के बदलते रंग-रूप पर व्यापक चर्चा करते हुए अनेक स्थापनाएं-आग्रह प्रस्तुत हुए हैं। मनुष्य के विचार-बोध और व्यवहार के अंतर के रेखांकित करते हुए हरदर्शन सहगल साहित्य के समाजवादी उद्देश्य के पक्ष में अपना मत रखते हुए अंत में दो छोटी मगर जरूरी बातें कहानी के संदर्भ में प्रस्तुत करते हैं, जो इस प्रकार है-“एक छात्र को मैडम सजा देती है। आगे जाकर वह डॉक्टर बन जाता है। सेवानिवृति पश्चात मैडम अस्पताल पहुंचती है डॉक्टर झट से आगे बढ़ कर मैडम के पांव छूता है- मैडम आपने मेरा जीवन संवार दिया।/ एक दूसरा छात्र है। उसे भी मैडम सजा देती है। आगे चलकर वह भी डॉक्टर बन जाता है। मैडम को देखते ही उपेक्षा से मुह फेर लेता है।/ दोनों ही यथार्थवादी कहानियां है। कौन सी अच्छी लगी?”
    कहानी अच्छी या बुरी से अधिक जीवनानुभवों को व्यंजित करती है। दोनों ही स्थितियों पर यदि उस छात्र के मनोविज्ञान का अध्ययन किया जाए तो गलत दोनों नहीं हैं किंतु हर चरित्र से एक पाठक और कहानीकार की अपेक्षा होती है। कहानी में कुछ रूढ़ चरित्र और आदर्शों के रहते बदलता यथार्थ पूर्ण रूपेण चित्रित होने के रह भी जाता है। इस भूमिका और हरदर्शन सहगल की कथा-यात्रा के विविध पड़ावों को देखते हुए निसंदेह कहा जा सकता है कि वे बहुधा चरित्रों को आदर्श स्थितियों में देखने के पक्ष में दिखाई देते हैं। उनका कहानीकार सदा संबंधों को बनाने और बनने पर बने रहने, बने रखने के पक्ष में सक्रिय रहा है। बिना जीवन मूल्यों के पोषण के कहानी या साहित्य का भला क्या उद्देश्य हो सकता है।
    ‘देश हुआ बेगाना’ में दो दोस्तों की मुहब्बत की अविस्मरणीय कहानी है जो विभाजन की त्रासदी और संत्रास को ब्यंजित करती है। इसी पृष्ठभूमि पर कहानी ‘आज़ादी के वे दिन उर्फ वह्शियाना तूफान’ है जिसमें भी 1947 के वे दिन आंखों के सामने साकार होते हैं। ‘टूटते हुए पंख’ को एक प्रयोग और प्रतीकात्मक कहानी कहना अधिक उपयुक्त होगा इसमें राजतंत्र की अनेक परतों को खोलते हुए एक मासूम पक्षी की कथा है। ‘हारमोनियम और ग्रामोफोन’ कहानी में भी संदर्भ देश के बंटवारे का है किंतु यह अपनी सांकेतिकता में एक मार्मिम संकेत भी छोड़ती है। हारमोनियम और ग्रामोफोन दोनों ही जीवन और संगीत के साथ हमारी कलात्मक रुचियों को प्रकट करने के उपकरण के रूप में कहानी में आएं हैं। कहानी के अंत में सरदार सिंह का हारमोनियम पहुंचाने का उपक्रम और यह संवाद- ‘संभालो अपनी दूसरी अमानत को! बड़ी मुश्किल से सब कुछ छोड़कर, इसे बचा लाया था।’ एक विशद संकेत है। यहां मानवीय मूल्य-बोध के साथ जीवन के संगीत की पुनर्रचना का स्वर भी कहानी से उभरता है।
    ‘पहलू’ अपेक्षाकृत लंबी कहानी है जिसमें दशहत के सामने सिर उठाने के प्रसंग को बड़े कलात्मक ढंग से संजोते हुए प्रताप नारायण भार्गव के माध्यम से बदलते समय के साथ बदलती स्थितियों का चित्रण किया गया है। दादाजी के प्रति पौत्रों की मुहब्बत की इस कहानी के अंत में कहानीकार का कहना- ”अब यह कथा किसी को अयथार्थवादी लगे तो बेशक लगे लकिन हकीकत यही है कि अग्ले सप्ताह से बच्चों ने प्रताप बाबू के नेतृत्व में बाजार में पिकटिंग (धरना) शुरू कर दी। संवाददाता आये। प्रेस फोटोग्राफर आये। संसद का अगला सत्र शुरू होने वाला था। सो नेता भी आये। नहीं आये तो वो हफ़्ताबारी उगाहने वाले। पुलिसवाले, अपने ट्रासंफर के लिए नये-नये स्टेशनों की तलाश में मशगूल हो गये।” कहानी ‘इंतजार’ में मदमाती का प्रतिशोध जिस प्रविधि से आहिस्ता-आहिस्ता कहानी में फलित हुआ है वह प्रभावित करता है।
    शब्दों के आवरण में कहानी में कल्पना भी यर्थाथ सदृश्य प्रस्तुत होती है। कहानी का द्वंद्व यह भी है कि कहानीकार के सामने जो यथार्थ है उसे वह उसी रूप में अथवा उसके परिमार्जित रूप में प्रस्तुत करता है। यथार्थ से अंश दर अंश चयनित कर उसे कहानी में घटित और फलित होने की प्रविधि हरदर्शन सहगल के यहां यहां तक पहुंचते पहुंचते जिस मानक तक आ गई है वह रेखांकित किया जाना चाहिए। कहानी में भाषिक प्रवाह के साथ अंत तक उत्सुकता को बनाए रखना भी एक कला है जिसे अथक साधना से सहगल जैसे कहानीकारों ने साध कर इस विधा को लोकप्रिय बनाए रखा है।
    संग्रह की दो कहानियों- ‘कुछ बंगले और मकान’ और ‘अंतर्जगत’ को कहानीकार ने ‘परा मनोवैज्ञानिक कहानी’ के रूप में रेखांकित किया है। शीर्षक कहानी ‘मुहब्बतें’ में नम्रता और वैभव के बदलते-बिगड़ते-संवरते संबंधों को परिवार और बच्चों के साथ प्रस्तुत करते हुए संबंधों के बने और बनाए रखने का स्वर भी है। संग्रह की शेष कहानियां भी अपने-अपने स्तर हमारे संबंधों के रहस्यों पर प्रकाश डालती हुई मन की अनेक परतों को खोलती और प्रभावित करती हैं।
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मुहब्बतें (कथा संग्रह) कहानीकार : हरदर्शन सहगल, प्रकाशक- कलासन प्रकाशन, मॉर्डन मार्केट, बीकानेर (राज.), पृष्ठ : 150, मूल्य : 250/-, संस्करण : 2017   
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डॉ. नीरज दइया


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