‘स्मृतियों के गवाक्ष’ में सत्राह संस्मरणों को संकलित किया गया है, इनके संदर्भ में लेखन ने पुस्तक के पूर्व स्पष्ट किया है- ‘ये संस्मरण डेढ़ से तीन दशक पुराने हैं। यादों की पगड़ंडियां तो बचपन की है, जिसमें मेरी ढाणी ठाकरबा गांव नोख और बाप गांव तक सीमित है, किंतु यादों के गवाक्ष जोधपुर की सड़कों पर आने के बाद खुलते हैं।’ संस्मरण विधा की अन्य पुस्तकों की भांति यहां भी आईजी की लेखकीय दुनिया की सुनहरी यादें हैं, जिनमें उनके जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर जैसे कर्मस्थलों की सुवास महकती है तो साथ ही यहां एक गांवाई विद्यार्थी अपने जीवन में कैसे सफल हुआ, वह कैसे अपने संसार में स्वयं को गढ़ता है या उसकी दुनिया उसे बनाती है इसके भी अनेक सूत्र यहां मौजूद हैं।
यह पुस्तक हमें लेखक डॉ. आईदान सिंह भाटी के हवाले बाबा नागार्जुन, डॉ. नामवर सिंह, डॉ. विमल, नेमीचंद भावुक, हरीश भादानी, शिवरतन थानवी, बिज्जी, दीनदायल ओझा, विभूतिनारायण राय, शिवमूति, सत्यनारायण, डॉ. शाहिद मीर, प्रो. नईम, रघुनंदन त्रिवेदी आदि प्रख्यात हिंदी, राजस्थानी और उर्दू भाषा के विद्वानों, रचनाकारों-आलोचकों से मिलवाने का सुंदर उपक्रम करती है। अपने छात्र-जीवन के संघर्षों-कठिनाइयों के साथ यहां आईजी अपने ‘रस-प्रसंग’ को भी उजागर करने से गुरेज नहीं करते हैं। अपने स्नेहिल गुरुजनों, मित्रों और साथी रचनाकारों का स्मरण करते हुए कहीं कहीं उनका आलोचक रूप मुखरित होकर कृतियों और रचनाओं से भी हमारा परिचय करवाता है, तो कहीं इन प्रसंगों के सुंदर वार्तालाप के साथ पत्र-संवाद से भी हमें आनंदित करता है। वेशक आईजी की पहचान श्रुति परंपरा के वरेण्य कवि के रूप में होती रही हैं, किंतु यहां उनके गद्य में उनका आलोचक और बेहद आत्मीय चेहरा दिखाई देता है जिससे संबंधों को निभाने और गुणगान का हुनर सीखा जा सकता है। किसी भी बेहतर संस्मरण कृति की प्रमुख विशेषता होती है कि वह जिस जिस को उल्लेखित करे, उसे पूरी ऊर्जा के साथ रेखांकित करते हुए स्वयं को गौण रखे और यही विशिष्टता ‘स्मृतियों के गवाक्ष’ कृति को प्रमुख बनाती है। इस कृति के पाठ से हम अपने प्रिय लेखक-कवि आईजी के अनछुए, अज्ञात अथवा अल्पज्ञाअत अनेक पहलुओं को जान सकते हैं।
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पुस्तक का नाम – स्म्रुतियों के गवाक्ष (संस्मरण संग्रह)
कवि – आईदानसिंह भाटी
प्रकाशक – रॉयल पब्लिकेशन, जोधपुर
पृष्ठ- 144
संस्करण - 2020
मूल्य- 300/-
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