जीवन स्वयं में एक यात्रा है और हम जीवनपर्यंत विभिन्न माध्यमों से बाहर और भीतर अनेक यात्राएं करते हैं। ऐसी ही कुछ बाहर-भीतर की यात्राओं पर केंद्रित जीवनानुभवों का महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है- ‘हमसफ़र’, जिसे लघुकथाओं का दस्तावेज कहा गया है। कहानीकार मुकेश पोपली ने इसे अपनी हमसफ़र कवयित्री कविता मुकेश को समर्पित किया है। भूमिका के रूप में लिखे अग्रलेख ‘मुझे कुछ कहना है...’ में लेखक का कहना है- ‘बहुत सी घटनाओं को अपनी आंखों से देखा और बहुत सी बातों, घटनाओं और रोचक किस्सों को मैंने इन छोटी-बड़ी कहानियों में समेटने की कोशिश की है।’ संग्रह की छोटी-बड़ी कहानियों को छह खंडों में व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया गया है और प्रत्येक खंड में किसी न किसी यात्रा का विशेष संदर्भ है। संग्रह के आरंभिक खंड की रचनाओं में लेखक का गीत-संगीत के प्रति आकर्षण भी यहां प्रभावी रूप से देखा जा सकता है।
कहानीकार मुकेश पोपली के पास संवेदना से लबरेज भाषा के साथ कहानी कहने का अपना अंदाज है। वे यथार्थ को रोचक ढंग से प्रस्तुत करते हुए डायरी और संस्मरण विधा के करीब जाते हैं जो उन्हें कथेतर श्रेणी का लेखक भी बनाता है।कहानी और लघुकथा विधा के शास्त्रीय मानकों से इतर कुछ रचनाओं को प्रयोग के रूप में उनके साथ यात्रा संदर्भ होने से संग्रह में शामिल किया गया है। दिल्ली, जयपुर और बीकानेर के विशेष संदर्भों से सजी इन रचनाओं में लेखक की अनेक व्यक्तिगत अनुभूतियों को आंशिक परिवर्तित कर संजोया गया है। नगर और महानगर के बीच दौड़ती भागती जिंदगी में यहां मानव मन की अनेक दुविधाओं-दुष्चिंताओं के साथ प्रेम, हर्ष, उल्लास, आशा-निराशा, संदेह-विश्वास और जीवन के प्रति प्रश्नाकुलता हमें प्रभावित करती है। कहना होगा कि ‘हमसफ़र’ संग्रह विभिन्न यात्राओं के आस-पास और साथ-साथ जन्मी कुछ खरी और सच्ची घटनाओं पर केंद्रित रचनाओं का संग्रह है। इसमें निर्भया हत्या कांड का हवाला भी है तो साथ ही सामाजिक जड़ताएं, रूढ़ियां और पिछड़पन को भी लेखक समय के प्रतिबिंबों के रूप में रेखांकित करता है। मुकेश पोपली की पहली पुस्तक 'कहीं ज़रा सा....' (कहानी संग्रह) के प्रकाशन के एक लंबे अंतराल के पश्चात उनके इस लघुकथा संग्रह का स्वागत किया जाना चाहिए। इस सुरुचिपूर्ण और पठनीय संग्रह को कलमकार मंच जयपुर ने प्रकाशित किया है।
डॉ. नीरज दइया
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» यात्राओं पर केंद्रित जीवनानुभवों की लघुकथाएं / डॉ. नीरज दइया
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