मूल तमिल से अनूदित इन कथाओं में शिक्षा-संस्कार और बाल मनोविज्ञान का प्रभावशाली अंकन हुआ है। नैतिक शिक्षा की इन कथाओं से न केवल बच्चे वरन बड़े-बूढ़े भी समान रूप से प्रभावित होते रहे हैं। भारतीय बाल साहित्य के विकास और विविध आयामों को जानने के लिए ‘राजाजी की कथाएं’ एक उपयोगी कृति इस रूप में कही जा सकती है कि न केवल हिंदी वरन भारतीय भाषाओं में भी पर्यावरण से जुड़े अनेक घटकों का मानवीयकरण कर कहानियों की परंपरा रहीं हैं। संकलन की पहली कहानी ‘पेठे की बेल’ में उसका नारियल के पेड़ से संवाद और महादेवजी का प्रसन्न होकर पेठे की बेल को वरदान देना बाल मन के लिए मोहक है। कहानी के अंत में पेठे के बेल को जो शिक्षा अनुभव से मिलती है कि सदैव अपने स्वभाव व प्रकृति के अनुकूल व्यवहार ही करना चाहिए महत्त्वपूर्ण है। ‘तुलसी की खुशबू’ में राजा और राजकुमारी है वहीं गुलाब के फूल और तुलसी के पौधे का संवाद है। यहां भी घमंड नहीं करने की शिक्षा दी गई है। संग्रह की लगभग सभी कहानियों में राजाजी उपदेश की मुद्रा में कहानियों की शिक्षा को वर्णित करते हैं। इन कहानियों को हमें आज के परिपेक्ष्य में देखते हुए यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इन का लेखन आजादी के आस-पास के दौर के बाल साहित्य के विकास के लिए हुआ है।
जातक कथाएं, बोध कथाएं और पंचतंत्र की कथाओं की परंपरा में राजाजी की कथाएं हैं, जिन में बहुत सहजता, सरलता से बोधगम्य शिक्षा को छोटी-छोटी घटनाओं को रचते हुए उभारने का प्रयास किया गया है। ‘उपदेश की भाषा’ में ज्ञान के प्रचार-प्रसार की बात है तो ‘कठोर मन’ में संवेदनशील कोल्हू का चित्रण है जो स्वामी जी उपदेश से तिल के प्रति भावुकता हो जाता है। जीव हत्या नहीं करने और शाकाहरी होने पर इन कथाओं में बल दिया गया है वहीं प्रकृति के बहुत सारे नियमों का भी बहुत सुंदर ढंग से वर्णन मिलता है। सबसे बड़ी और उल्लेखनीय बात इस कृति में दक्षिण भारत के प्रांतों के परिवेश के साथ वहां के सांस्कृति जीवन की झलक भी मिलती है वहीं वहां के त्यौहार और रीति-रिवाजों से बाल पाठकों का ज्ञानवर्द्धन होता है। हरेक कहानी के साथ उसके अनुरूप रेखाचित्र से पाठ का प्रभाव द्विगुणित हो गया है। समग्र रूप से कहा जाए तो चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की इन कथाओं में बालकों के संवेदनशील होने पर बल दिया गया है क्यों बच्चे ही आने वाले कल का भविष्य है। अनुवादिका एस. भाग्यम शर्मा का यह कार्य भारतीय बाल साहित्य पर शोध करने वाले शोधार्थियों के लिए भी बेहद उपयोगी सिद्ध होगा।
‘ईनी-मीनी की मज़ेदार दुनिया’ लक्ष्मी खन्ना सुमन का बेहद रोचक बाल उपन्यास है, जिसमें मधुमक्खियों की कहानी अनेक नई जानकारियों से साथ सुंदर ढंग से संजोने का प्रयास हुआ है। बडे आकार में प्रकाशित इस उपन्यास में मनभावन चित्रों के साथ 16 छोटे-छोटे अध्यायों में उपन्यास को बांटते हुए लिखा गया है। ईनी और मीनी नाम की दो मधुमक्खियां शहद लाने में बेहद निपुण है इसलिए मधुमक्खियों की रानी को वे प्रिय भी हैं। उपन्यास का आरंभ ‘मधुमक्खी’ शीर्षक से एक सुंदर और प्रेरक कविता को देकर हुआ है।
बाल मनोविज्ञान के अनुसार बच्चे बचपन में नई नई सोचक जानकारिया जानना चाहते हैं वे अपनी सीखने की उम्र में बेजान और निर्जीव चीजों के साथ अपने पूरे पर्यावरण के घटकों से जैसे बातें करते हैं। उपन्यास में मधुमक्खियों का रोचक वर्तालाप बच्चों के स्तरानुकूल और उन्हें प्रभावित करने वाला है। सच में इनी और मीनी की दुनिया की सैर कर बाल पाठकों को लगेगा कि उन्होंने एक मज़ेदार दुनिया की सैर की है। इस दुनिया में धुएं से मधुमक्खियों का उजड़ता डेरा है तो साथ ही हर बार एक नई जगह की तलाश है। उपन्यास में पहाड़ और फलों के बगीचे हैं जिसमें मधुमक्खियां डेरा करती हैं जहां बर्र उन पर हमला करता है। ईनी और मीनी की तितलियों से दोस्ती का रोचक प्रसंग है तो उनका जलेबी का मजा लेना बाल पाठकों भी मज़ेदार लगेगा। शहर की चोरी करने वाला कोई एक हो तो वे बचे और मुकाबला करे यहां तो जगह जगह उन्हें ऐसी ही घटनाओं और हादसों का सामना करना पड़ता है। भालू शहर का छाता तोड़ता है और उसे देखकर बंदर भी शहद के लिए लालायित होता है। चिड़ियों द्वारा मधुमक्खियों की सहायता करना और बदले में मधुमक्खियों का उन्हें बहेलिए से बचना जैसे अनेक घटना-प्रसंगों को उपन्यास में बेहद कलात्मक ढंग से संजोया गया है।
मुनमुन महिरा रानी का जन्मदिन मनाना और तंदुए का भगाना बच्चों को जहां खूब मनभावन लगेगा वहीं उन्हें सहयोग, सद्भाव और निरंतर संघर्ष की प्रेरणा भी मिलेगी। उपन्यास को बिना किसी उपदेशक की मुद्रा में रचना इसकी कलात्मकता और कौशल में वद्धि करता है। यह ऐसा उपन्यास है जिसे कालजयी उपन्यासों की श्रेणी में इसलिए रखा जा सकता है कि इसमें समय के साथ संदर्भ सदा समकालीन रहेंगे और हर दौर में बाल पाठकों को यह लुभाता रहेगा। निसंदेह उपन्यासकार लक्ष्मी खन्ना सुमन बधाई की पात्र हैं, वहीं इसके प्रकाशक का साधुवाद कि उन्होंने बहुत सुंदर कलात्मक ढंग से इसे प्रकाशित किया है।
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पुस्तक : राजाजी की कथाएं (अनूदित बाल कथा-संग्रह)
मूल लेखक : चक्रवर्ती राजगोपालाचारी
अनुवाद : एस. भाग्यम शर्मा
प्रकाशक : कॉ-ऑपरेशन पब्लिकेशन्स, धमाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर
संस्करण : 2018, पृष्ठ : 128
मूल्य : 220/-
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पुस्तक : ईनी-मीनी की मज़ेदार दुनिया (बाल उपन्यास)
रचनाकार : लक्ष्मी खन्ना सुमन
प्रकाशक : तूलिका प्रकाशन, 16, साहित्य विहार, बिजनौर (उ.प्र.)
संस्करण : 2014, पृष्ठ : 80
मूल्य : 200/-
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डॉ. नीरज दइया
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