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रहस्य, रोमांच और कौतूहल से भरपूर दो सफल बाल उपन्यास / डॉ. नीरज दइया

 बहुत कम लेखकों द्वारा बाल साहित्य में कहानी और उपन्यास के रूपगत भेद को चिह्नित किया गया है। वैसे यह केवल बाल साहित्य की बात नहीं, हमारे भारतीय साहित्य के संदर्भ में भी कमोबेश यही हाल है। किसी भी रचनाकार के लिए यह जरूरी है कि जिस किसी विधा में जो लिखा जा रहा है, उसका स्वरूप और भेद बहुत बारीकी से जान लिया जाए। यह जिम्मेदारी बाल साहित्य के लेखकों की बढ़ जाती है। क्योंकि बाल साहित्य में बाल मनोविज्ञान के साथ-साथ समय-संदर्भों में बदती भाषा-परिवेश और बच्चों की आवश्यकताओं को जाना-पहचाना जाना जरूरी है। ऐसा क्या और कैसे लिखें कि बच्चों में उसे पढ़ने की ललक हो और उन्हें पढ़ाई से इतर यह सब पढ़ना रुचिकर लगे। वर्तमान संदर्भों के साथ कल्पना भी रचना के लिए जरूरी है। कोई भी पाठ हो किंतु उसमें बालकों का मनभावन ऐसा हो कि उन्हें यह कतई ना लगे कि यह लेखक उपदेश दे रहा है। त्रासदी यहां यह भी होती है कि लेखक एक ही में इतना कुछ कह कर इतिश्री कर लेना चाहता है कि पाठकों का मोहभंग हो जाता है। आवश्यकता है कि ऊब भरे उपदेशों के स्थान बाल साहित्य की खास कर उपन्यास साहित्य में कुछ ऐसी बातें भी हो जो खुद निकल कर उनके सामने आए। वे बातें बच्चों में भरोसा और आत्मविश्वास के साथ हौसले और उम्मीद की बात से जुड़ी हुई हो। इन सब में सर्वाधिक ध्यानदेने की बात किसी रचना में भाषा-शैली होती है। शिल्प ऐसा हो कि एक बार किताब को पढ़ना आरंभ करें तो उसे छोड़ने का मन ना हो। ऐसा लगे कि इसे तो पूरा पढ़ लेना है। मैं यहां यह उपदेश की बातें नहीं कर रहा हूं। इस सभी और ऐसी अनेक अवधारणाओं के परिप्रेक्ष्य में यहां अनेक रचनाओं को उदाहरण स्वरूप रखा जा सकता है। आलोचना में यही कसौटी के रूप में देखें तो त्वरित उदाहरण के रूप में यहां दो बाल उपन्यास- ‘रेड सन के एलियन’ और ‘मिट्टी मेरे देश की’ पर बात कर सकते हैं। इन दोनों बाल उपन्यासों के लेखक हैं- संजीव जायसवाल ‘संजय’।
    बाल साहित्य के क्षेत्र में संजीव जायसवाल ‘संजय’ सुपरिचित हस्ताक्षर हैं। पचास से अधिक आपकी पुस्तकें प्रकाशित हैं। आपको अनेक मान-सम्मान और पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं। हाल ही में आपको उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वार ‘बाल साहित्य भारती सम्मान’ अर्पित किया गया है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली द्वारा 2016 में आयोजित अखिल भारतीय हिंदी बाल-साहित्य लेखन प्रतियोगिता के ‘विज्ञान कथाएं’ वर्ग में उपन्यास ‘रेड सन के एलियन’ को प्रथम पुरस्कार घोषित हुआ और इसका प्रकाशन ट्रस्ट द्वारा वर्ष 2019 में किया गया है। पहला प्रश्न यह कि लेखक ने रेड सन के स्थान पर ‘लाल सूरज’ पद क्यों नहीं लिया शीर्षक में? एलियन एक रहस्यमय शब्द है और इस शब्द के साथ एक आकर्षण भी जुड़ा है। बच्चों की उत्सुकता इस शीर्षक से इस किताब के प्रति बढ़ जाती है। आधुनिक ज्ञान-विज्ञान और तकनीक की बातें केवल और केवल शुद्ध हिंदी में नहीं की जा सकती है। यह व्यवहारिक भी है कि बच्चों की भाषा के जो संस्कार आज बदल गए हैं वह समकालीन रचनाओं में आने चाहिए। यदि यह उपन्यास अपने समय से बहुत पहले लिखा जाता तो संभव है कि इसका शीर्षक ‘लाल सूरज के एलियन’ भी हो सकता था किंतु इक्कीसवीं शताब्दी में बच्चों के जो भाषिक संस्कार और संरचना में बदलाव देखे जा रहे हैं उसमें सहजता और सुगमता के लिए यह जरूरी है कि जो शब्द हिंदी में इतर भाषाओं अथवा अंग्रेजी के हो उन्हें सहज स्वीकार्य मान लेना चाहिए। निसंदेह यह शीर्षक अपने आप में उपन्यास की पूरी संरचना से जुड़ा और उपयुक्त है।
    ‘रेड सन के एलियन’ की कहानी में देश के प्रख्यात खलोग वैज्ञानिक प्रो. गंगाधर सहाय के साथ तीन बच्चे जुड़े हैं। तीन बच्चों में एक लड़का रोनित तो उनका खुद का है और दूसरा लड़का मानव और लड़की प्रियंका उसके कॉलेज के प्रतिभावान विद्यार्थी हैं। इस विज्ञान कथा पर आधारित उपन्यास की रूपरेखा बहुत सोच-समझ कर लेखन ने तैयार की है। घटनाएं बेशक काल्पनिक हो किंतु उसे भाषा में इस प्रकार रचा है कि सब कुछ जैसे हमारे सामने क्रमिक घटित होता हुआ प्रतीत होता है। किसी रचनाकार का यही कौशल होता है कि वह सब कुछ उपन्यास में इस क्रम के साथ सामने लाता है कि असत्य भी सत्य के स्वरूप में सामने आता है। उपन्यास के कथ्य में सर्वाधिक भूमिका इन्हीं तीन बालकों की है। ये तीनों बुद्धिमान, तार्किक और वैज्ञानिक दृष्टि सम्पन्न होनहार विद्यार्थी हैं। इनकी लग्न और धैर्य के साथ परिस्थितों का मुकाबला करने के अच्छे संस्कार ही इनकी जीत को सुनिश्चित करने वाले घटक हैं। उपन्यास का पलक और समस्या वैश्विक है जिससे पूरा विश्व जूझ रहा है कि आखिर यह एलियन आखिर चाहते क्या हैं। पूरे रहस्य को बहुत धैर्य के साथ लेखक धीरे धीरे पाठकों के सामने लाता है और उसी गति से आगे उसका समाधान भी होने लगता है। देश विदेश में भारत को अग्रणी रखने की संकल्पना भी इसे पाठकों से जोड़ती है।
    सुपर कंप्यूटर के इस खेल में भयानक राक्षसी चेहरे वाले ‘रेड सन’ ग्रह के सम्राट डॉ. डेयर डेविक का वायु सेनाध्यक्ष को धमकी देता है- ‘तुम मूर्ख हिंदुस्थानी समझते हो कि तुम्हारे खिलौनों जैसे सुपर-सोनिक जेट विमानों के डर से आज रात हमारे एलियन नहीं दिखे। बहुत बड़ी भूल है तुम्हारी। हमारा ‘रेड सन ग्रह’ तुम्हारे सूरज से पचास गुना बड़ा है और सौ गुना ज्यादा ऊर्जावान है। तुम लोग जीव-जंतुओं और वनस्पतियों को खाकर ऊर्जा ग्रहण करते हो। लेकिन हम लोग आग की लपटों से ऊर्जा ग्रहण करते हैं। तुम लोग ऑक्सीजन से सांस लेते हो। लेकिन हम लोग कार्बन डाई-ऑक्साईड से सांस लेते हैं। तुम लोगों ने मूर्खों की तरह पृथ्वी पर अनगिनत भाषाएं और धर्म बना रखे हैं और उसके लिए लड़ते-मरते रहते हो। लेकिन हमारे यहां केवल एक धर्म और एक ही भाषा है और हमने तुम्हारी सभी भाषाओं को समझने और अनुवाद करने की तकनीक भी विकसित कर ली है।’ यही वह सूत्र वाक्य है जिस के बल पर आगे चलकर होनहार बालकों ने इस पहेली का हल खोजा।
    मानव जैसे होनहार बच्चे को उसके अन्य दो साथियों के साथ उपन्यास आदर्श रूप प्रस्तुत कर बहुत मनोरंजन के साथ कौतूहल को बचाते हुए प्रेरक चरित्र तो उपस्थित करता ही है साथ ही साथ विज्ञान और नियमों की बहुत गहरी और गंभीर बातों को भी बेहद सहजता से समाहित किया गया है। प्रकृति चित्रण के साथ हास्य और गंभीरता दोनों का निर्वाहन उपन्यास में हुआ है। एक स्थल पर मानव उत्तेजित स्वर में प्रो. सहाय से कहता है- ‘अंकल, मैं कहता था न कि अपराधी चाहे कितना भी चालक क्यों न हो, कोई न कोई सबूत जरूर छोड़ जाता है। इस रिकॉडिंग को एक बार फिर से देखिए। इसमें अनेकों सबूत भरे हुए हैं जो चीख-चीख कर कह रहे हैं कि ये लोग एलियंस नहीं है।’ इस पंक्ति में एक पुरानी अवधारणा को बहुत सकारात्मक दृष्टि से प्रस्तुत करते हुए विश्वास पर प्रतिबद्धता है किंतु यहां एक अशुद्धि शब्द-प्रयोग को लेकर देखी जा सकती है। हिंदी में ‘एक’ का बहुवचन ‘अनेक’ है और कुछ लेखक बहुवचन का अशुद्ध बहुवचन ‘अनेकों’ प्रयोग में लेते हैं। यहां इस अशुद्धि का संकेत इसलिए भी जरूरी है कि पुस्तक को चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित किया गया है। जब सब कुछ ठीक है तो यह भी ठीक होना चाहिए। पुस्तक निसंदेह मनभावन आवरण और चित्रों से मनमोहक है जिसके लिए चित्रकार अंकुर मित्रा को श्रेय दिया जाना चाहिए। पुस्तक ‘विज्ञान कथाएं’ वर्ग की रचनाओं में एक धरोहर के रूप में है और इसे बाल पाठकों के साथ बाल उपन्यास से जुड़े लेखकों द्वारा भी जरूर पढ़ा जाना चाहिए।
    दूसरे उपन्यास ‘मिट्टी मेरे देश की’ में यात्रा-वृतांत और डायरी विधाओं का उपन्यास में शिल्पगत प्रयोग किया गया है। उपन्यास का मुख्य पत्र संकल्प लखनऊ के सेंट मेरी स्कूल का होनहार विद्यार्थी है जो दो सप्ताह के ‘ट्रैकिंग ट्रनिंग कैंप’ में जाने वाला है। जाहिर है कि इस रोमांच उपन्यास में नैनीताल और पहाड़ों के दृश्यों से प्रकृति और भ्रमण की शानदार जानकारी लेखक ने सहेजी है। अनुशासन प्रियता और जीवन में नियमों का महत्त्व विषय भी स्वत समाहित हो गया है। संकल्प को अपने कैंप में साथी मिले। संयोग है कि उपन्यास ‘रेड सन के एलियन’ की भांति यहां भी तीन विद्यार्थी मुख्य चरित्रों के रूप में सामने आते हैं और उनमें अनुपात भी समान है- दो लड़के संकल्प-विपुल और एक लड़की मान्या। उपन्यास में बच्चों का घर छोड़ना और कैंप के लिए रवाना होना दिखाने के साथ ही तीसरे अध्याय में कथा का सूत्र धर्मदास को किसने मारा प्रस्तुत किया गया है। सनसनीखेज और रोमांचक घटनाक्रम के बीच उपन्यास आगे बढ़ता है और मध्य तक पहुंचते पहुंचते पूरी कमान बच्चों के हाथ में लेखक ने थमा दी है। उपन्यास बहुत सहजता और क्रमबद्ध ढंग से धीरे धीरे सूत्रों को खोलते हुए आगे बढ़ता है। अपराधियों के सूत्रों में पहले एक जूता और बाद में दूसरा जूता हांगकांग का मिलना संदेह को बढ़ाते उसे उसमें सतत प्रवेश के लिए विवश करता है। पाठक उपन्यास की कथा में डूबता जाता है और रहस्यों का खुलासा होता जाता है। उपन्यास इक्कीस अध्यायों में विभाजित है और इसका चरम ‘डायरी के पन्ने’ अध्याय है जहां धर्मदास की गुमशुदा डायरी बच्चों द्वारा खोल ली जाती है अथवा उन्हें मिल जाती है। यात्रा-वृतांत के भीतर पांच मई से तेरह मई तक की डायरी पूरे घटनाक्रम को खोल देती है किंतु रहस्य अब भी यह बाकी था कि धर्मदास ने चौदह मई की डायरी क्यों नहीं लिखी जबकि वह पंद्राह मई को घायल मिला था।
    उपन्यास में विदेशी गोल्डन हिल्स से सोना ले जाने की फिराक में थे और उन्हें खुदाई के लिए बहुत आदमियों की आवश्यकता थी इसी बीच गांव से आदमी गायब होते हैं और ट्रैकिंग में बिछुड़े तीन वालक उस गिरोह को मिल जाते हैं। बालकों की समझदारी और सूझबूझ से बदमाशों पर काबू पाना बेशक बहुत पुरानी और रटी रटाई युक्ति हमारे बाल साहित्य में रही है। किसी पुरानी और प्रचलित युक्ति का समसामयिक ढंग से आधुनिक संदर्भों में प्रयोग करना भी एक कौशल है। रचना में शिल्प और कहन का ढंग लेखक का अपना है जो बाल पाठकों को बांधने वाला है। कानून को अपने हाथ में नहीं लेना जैसी संकल्पनाओं को भी दर्शाना जरूरी है और राजकीय व्यवस्थाओं के बीच बहादुर बच्चों का सम्मान भी जरूरी है। मित्रारुण हालदार के चित्रों से सुसज्जित इस बाल उपन्यास को पढ़ना सच में अपने देश की मिट्टी पर गर्व करना है कि हमारे देश में ऐसे होनहार बच्चे हैं जो इस मिट्टी की गरिमा बचाने किए कटिबद्ध है। दोनों उपन्यासों के लिए लेखक संजीव जायसवाल ‘संजय’ बधाई के पात्र हैं।
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पुस्तक : रेड सन के एलियन (बाल उपन्यास)
लेखक : संजीव जायसवाल ‘संजय’
प्रकाशक  : चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली
संस्करण : 2019, पृष्ठ : 88, मूल्य : 70/-
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पुस्तक : मिट्टी मेरे देश की (बाल उपन्यास)
लेखक : संजीव जायसवाल ‘संजय’
प्रकाशक  : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत, नई दिल्ली
संस्करण : 2019, पृष्ठ : 116, मूल्य : 65/-

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समीक्षक : डॉ. नीरज दइया


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