-->

इतिहास के धूसर पृष्ठ का काव्य रूपांतरण : तिष्यरक्षिता / डॉ. नीरज दइया

डॉ. संजीव कुमार की सद्य प्रकाशित काव्य कृति "तिष्यरक्षिता" मगधकालीन इतिहास के धूसर पृष्ठ का सुंदर काव्यात्मक रूपांतरण है। धूसर इस अर्थ में कि सम्राट अशोक की रानी तिष्यरक्षिता और युवराज कुणाल के बारे में आसक्ति का जो घटना प्रसंग यहां काव्य की विषय वस्तु बना है वह लगभग अज्ञात सा अथवा अति न्यून विवेचित रहा है। यह कृति इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इसमें एक ऐतिहासिक पृष्ठ का कवि की दृष्टि से सुंदर काव्यात्मक विवेचन हुआ है और वह भी हिंदी काव्य की महाकाव्य परंपरा का अनुसरण करते हुए। 
कृति के आरंभ में कवि डॉ. संजीव कुमार ने इस समस्त घटना प्रसंग पर अपने विशद आमुख में कथा की पूरी पृष्ठभूमि को ऐतिहासिक साक्ष्यों के साथ संदर्भों के हवाले से उजागर करते हुए स्पष्ट किया है। इस विवेचना में कवि का अध्ययन और संभवत गूगल सर्च इंजन के कुछ परिणाम सहयोगी रहे हैं। विमाता का अपने पुत्र के प्रति कामोत्तेजक होकर वासना वशीभूत अंधा हो जाना यहां अनेक प्रश्नों को जन्म देता है। नर और नारी के मिलन में सांसारिक बंधनों और नियमों के साथ प्रणय का महत्व आदिकाल से हमारे यहां रहा है, किंतु कुछ ऐसे उदाहरण भी मिलते हैं जहां व्यक्ति मन की स्वच्छंद कामना से प्रतिकूल कथाओं ने जन्म लिया है। यह सवाल अब भी बना हुआ है कि रामायण और महाभारत क्या इस भारत भूमि पर घटित सत्य घटनाएं हैं अथवा केवल कवि कपोल कल्पना है। जो भी हुआ अथवा नहीं भी, फिर भी इन रचनाओं के माध्यम से जो सत्य उजागर हुआ है उसमें कहीं ना कहीं हमारी परंपरा अथवा आधुनिकता के अनेक संदर्भ जुड़ते हैं। कहा जाना चाहिए कि अशोककालीन इतिहास के साक्ष्यों को इतिहासकारों ने जिस दृष्टि से देखा है, उससे भिन्न नवीन दृष्टि से कवि संजीव कुमार ने आधुनिक संदर्भों में देखा है। यौन उत्तेजना के वशीभूत इस संसार में अनेक ऐसे घटनाक्रम घटित होते हैं, जिनमें से कुछ पर्दे के भीतर रहते हैं, कुछ पर्दे के बाहर आते हैं। संभवत एक अभिमत इस संदर्भ के हवाले कवि का भारतीय और पाश्चात्य मिली-जुली संस्कृति से पनप रहे इक्कीसवीं शताब्दी के भारत में स्वस्थ चिंतन को स्वर देना है। संबंधों के साथ देह में अवस्थित स्त्री अथवा पुरुष मन की कामनाएं, अभिलाषाएं और इच्छाएं किस किस भांति हमारे भीतर अनेक द्वंद्व रचती हैं। यह द्वंद्व कभी उजागर हो कर निंदनीय होते हैं तो कभी उस आवेग को मानव मन नियंत्रित कर लेता है। "तिष्यरक्षिता" कृति ऐसे अनियंत्रित मन की अभिव्यक्ति है, जिसे इस कृति में शब्दबद्ध किया गया है। कथा वस्तु के विविध भावों को यहां अट्ठारह खंडों में विभक्त करते हुए कवि एक अनुचित प्रतिशोध की पूरी कहानी कहता है। कृति की भाषा सरल, सहज है जो कथा को पूरे आवेग के साथ एक प्रवाह में प्रस्तुत करने में सक्षम है। निसंदेह यह इस कृति की विशेषता है कि इसे पढ़ना आरंभ करने के बाद इसे एक बैठक में पूरा करना होता है। 
-------
कृति : तिष्यरक्षिता (काव्य)
कृतिकार : डॉ. संजीव कुमार
प्रकाशक : इंडिया नेटबुक, नोएडा
संस्करण 2020
मूल्य : 350/-
पृष्ठ : 124
------
डॉ. नीरज दइया

 

Share:

No comments:

Post a Comment

Search This Blog

शामिल पुस्तकों के रचनाकार

अजय जोशी (1) अन्नाराम सुदामा (1) अरविंद तिवारी (1) अर्जुनदेव चारण (1) अलका अग्रवाल सिग्तिया (1) अे.वी. कमल (1) आईदान सिंह भाटी (2) आत्माराम भाटी (2) आलेख (11) उमा (1) ऋतु त्यागी (3) ओमप्रकाश भाटिया (2) कबीर (1) कमल चोपड़ा (1) कविता मुकेश (1) कुमार अजय (1) कुंवर रवींद्र (1) कुसुम अग्रवाल (1) गजेसिंह राजपुरोहित (1) गोविंद शर्मा (1) ज्योतिकृष्ण वर्मा (1) तरुण कुमार दाधीच (1) दीनदयाल शर्मा (1) देवकिशन राजपुरोहित (1) देवेंद्र सत्यार्थी (1) देवेन्द्र कुमार (1) नन्द भारद्वाज (2) नवज्योत भनोत (2) नवनीत पांडे (1) नवनीत पाण्डे (1) नीलम पारीक (2) पद्मजा शर्मा (1) पवन पहाड़िया (1) पुस्तक समीक्षा (85) पूरन सरमा (1) प्रकाश मनु (2) प्रेम जनमेजय (2) फकीर चंद शुक्ला (1) फारूक आफरीदी (2) बबीता काजल (1) बसंती पंवार (1) बाल वाटिका (22) बुलाकी शर्मा (3) भंवरलाल ‘भ्रमर’ (1) भवानीशंकर व्यास ‘विनोद’ (1) भैंरूलाल गर्ग (1) मंगत बादल (1) मदन गोपाल लढ़ा (3) मधु आचार्य (2) मुकेश पोपली (1) मोहम्मद अरशद खान (3) मोहम्मद सदीक (1) रजनी छाबड़ा (2) रजनी मोरवाल (3) रति सक्सेना (4) रत्नकुमार सांभरिया (1) रवींद्र कुमार यादव (1) राजगोपालाचारी (1) राजस्थानी (15) राजेंद्र जोशी (1) लक्ष्मी खन्ना सुमन (1) ललिता चतुर्वेदी (1) लालित्य ललित (3) वत्सला पाण्डेय (1) विद्या पालीवाल (1) व्यंग्य (1) शील कौशिक (2) शीला पांडे (1) संजीव कुमार (2) संजीव जायसवाल (1) संजू श्रीमाली (1) संतोष एलेक्स (1) सत्यनारायण (1) सुकीर्ति भटनागर (1) सुधीर सक्सेना (6) सुमन केसरी (1) सुमन बिस्सा (1) हरदर्शन सहगल (2) हरीश नवल (1) हिंदी (90)

Labels

Powered by Blogger.

Blog Archive

Recent Posts

Contact Form

Name

Email *

Message *

NAND JI SE HATHAI (साक्षात्कार)

NAND JI SE HATHAI (साक्षात्कार)
संपादक : डॉ. नीरज दइया