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नायक का विरह गीत रिंकी टेलर / डॉ. नीरज दइया

  साहित्य की सभी विधाओं में प्रेम पर बहुत कुछ लिखा गया है और यह संभावना बनी हुई है कि भविष्य में भी प्रेम पर बहुत कुछ लिखा जाएगा। राजस्थानी के चर्चित कवि-कहानीकार कुमार अजय के नए कविता संग्रह “रिंकी टेलर” में विरही नायक का आलंबन नायिका रिंकी है। ‘रिंकी टेलर’ भले कोई वास्तविक अथवा काल्पनिक पात्र हो, किंतु यह उल्लेखनीय है कि एक छोटे से कथा-सूत्र में पिरोकर इन कविताओं के माध्यम से कवि ने उसे अमर बना दिया है। मैं को माध्यम बनाकर नायक का विरह गीत रिंक टेलर कुछ इस तरह प्रस्तुत हुआ है कि वरिष्ठ कवि डॉ. नारायणसिंह भाटी, सत्यप्रकाश जोशी की स्मृति ताजा होती है। रिंकी के विरह और स्मरण में कुमार अजय की इन कविताओं की परंपरा में ‘सुंदर थानै भूल्यां कीकर पार पड़ै’ अथवा ‘मुड जा फौजा नै पाछी मोड़ ले’ है, जो प्रेम और विरह के अद्वितीय उदाहरण कहे जाते हैं। इसी क्रम में ‘हाथ में भाठा लियां/ बगत तोड़ै आखै बगत/ नीं ठाह किण-किण रा/ कैड़ा-कैड़ा चांद-सा/ सोवणा-मोवणा सपना’ जैसी स्मरणीय काव्य पंक्तियों के माध्यम से इस कृति में कवि ने अनूठे बिम्बों के माध्यम से अपनी परंपरा को आधुनिक बनाने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है।
    रिंकी नमक नायिका के प्रेम-विरह का यह कृति महाकाव्य अथवा खंडकाव्य जैसा है, जिसे नई कविता के फ्रेम में प्रस्तुत कर निसंदेह चुनौतीपूर्ण कार्य कवि कुमार अजय ने बेखूबी किया है। कवीर जिन ढाई अक्षरों की बात कहते हैं, वे अक्षर यहां जैसे अपनी झलक दिखा कर नायक को एक राग थमा कर कहीं दुनियादारी में खो गए हैं। काव्य नायक जीवन के प्रत्येक क्षण, घटना, दृश्य और स्थिति में अपनी नायिका रिंकी को तलाशता है। वह उसके स्मरण में अपने विगत से जूझते हुए फिर-फिर उसे पाने की पिपासा में जैसे प्रेम को ही जीवन का एक मात्र लक्ष्य-आधार निर्धारित कर बैठा है।
    प्रेम के उत्स का एक छोटा सा कथा-सूत्र लिए इस संग्रह की कविताओं को पृथक-पृथक आस्वाद देता है, ये कविताएं किसी भी क्रम में पढ़ी-देखी जाए तो स्वायत मुकम्मल अनुभूतियों को वर्णित करते हुए रिंकी के प्रति आसक्त नायक की कहानी को अंश-दर-अंश रचती हैं। विभिन्न शीर्षकों में व्यवस्थित इन कविताओं की केंद्रीय संवेदना टूटती नहीं है। यहां एक तरफा प्रेम है, जो नायक के हृदय में है और उसकी अभिलाषा है- ‘साची बतावूं रिंकी/ अठै-वठै, नीं ठाह कठै/ थन्नै हेरतौ-हेरतौ गमग्यौ म्हैं/ म्हनै सोध लेय नीं आयनै एकर।’
    अपनी भाषा, शिल्प और संवेदना के साथ प्रस्तुतिकरण में उल्लेखनीय इन कविताओं का स्मरण राजस्थानी साहित्य में लंबे समय तक किया जाएगा। इस कृति पर सुंदर आवरण रामकिशन अडिग का है और इसे एकता प्रकाशन चूरू ने प्रकाशित किया है।
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डॉ. नीरज दइया


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