-->

बिल्कुल कोरी स्लेट नहीं होते बच्चे / डॉ. नीरज दइया

 बाल साहित्य लेखन परंपरा में ‘पंचतंत्र की कहानियां’ और बचपन में नानी-नाना, दादी-दादा व अन्यों की जबानी सुनी कहानियां का स्मरण आदर्श के रूप में रखा जाता रहा है। बच्चों का ज्ञानवर्धन और उन्हें जानकारियां देना कभी बाल साहित्य का उद्देश्य रहा होगा, किंतु वर्तमान में बाल साहित्य लेखक के सामने अनेक चुनौतियां हैं। आधुनिक इलेक्ट्रोनिक मीडिया में बच्चों की पुरानी कहानियां, कविताएं अब उस स्थिति में नहीं है कि वे बच्चों को बांध सके। नैतिक सन्देश अथवा मूल्यों की स्थापना बंधन के रूप में तो होनी भी नहीं चाहिए। सबसे बड़ी पाठशाला जीवन ही है। जीवन पर्यंत हम आचार-व्यवहार से सीखते हैं। बाल-साहित्य के विषय में अनेक भ्रांतियां हैं। पहली तो यही कि लेखक गंभीरता से नहीं लेते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि बच्चों के लिए लिखना बड़ों के लिए लिखने से कठिन है। इसके लिए गहरी समझ और दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। विपुल मात्रा में साहित्य-लेखन हेतु चर्चित नामों में इन दिनों मधु आचार्य ‘आशावादी’ शामिल है। आपके दो बाल-उपन्यास- ‘अपना होता सपना’, ‘चींटी से पर्वत बनी पार्वती’, बाल कहानी संग्रह- ‘सुनना, गुनना और चुनना’, बाल कविता संग्रह- ‘खुद लिखें अपनी कहानी’ बाल नाटक ‘कठघरे में बड़े’ बाल-साहित्य में एक नई शुरुआत है।
    बाल साहित्य में मधु आचार्य की रचनाओं में जीवन की अभिव्यक्त अनेक रंगों में मिलती है। उनके बाल उपन्यास ‘अपना होता सपना’ में कथा-नायक नितिन की संघर्षभरी प्रेरक कहानी है। कर्मशील नितिन का चरित्र एक आदर्श के रूप प्रस्तुत किया गया है। शीर्षक में कौतूहल है कि सपना क्या है? कौनसे सपने की बात है? और वह अपना कैसे होता है? रूढ़ अर्थों में सपना- सच्चा या झूठा होता है। सपने को कभी हम अपना या पराया कहते हैं। खुली आंख से देखे गए सपने ही वास्तविक सपने होते हैं। इस बाल उपन्यास में नायक नितिन का वर्णित सपना कुछ ऐसा ही था, जिसे लेखक ने सरल-सहज प्रवाहमयी भाषा में रखते हुए बालमनोविज्ञान को आधार बनाया है। बालमन के समक्ष यह सपना जीवन में कुछ आगे बढ़ कर, कुछ कर दिखाने का जजबा जाग्रत करता है। दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसा कुछ कर दिखाने का बालकों से आह्वान है।
उपन्यास अपने मार्मिक स्थलों और कुछ बिंदुओं के कारण बालमन को छू लेने की क्षमता रखता है। कहा जाता है कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं। अगर उनकी लगन सच्ची हो तो उन्हें कोई रोक नहीं सकता। इसका एक उदाहरण उपन्यास का संस्कारवान नायक नितिन है। उसने जीवन में कभी सच्चाई का दामन नहीं छोड़ा। ऐसे प्रेरक चरित्र से बालकों को शिक्षा मिलती है। नैतिक मूल्यों और संस्कारों के साथ उपन्यास में मितव्ययता और दूरदृष्टि का मूल मंत्र भी मूर्त हुआ है।
    हम वयस्कों को चाहिए कि बच्चों को वर्तमान हालात से जल्द से जल्द परिचित करा दें। आर्थिक समस्याओं से ग्रसित आज का समाज सुख के लिए तरस रहा है। मीडिया द्वारा रंगीन सपने परोसे जा रहे हैं। यांत्रिक होते मानव-समाज के बीच बाल साहित्य के रचनाकारों को सुकोमल बचपन को बचाना है।
    जैसा कि शीर्षक से स्पष्ट है कि दूसरे बाल उपन्यास ‘चींटी से पर्वत बनी पार्वती’ में एक लड़की पार्वती की कहानी होगी। साथ ही यह भी कि वह अपने जीवन में किसी छोटे मुकाम से बड़े मुकाम तक पहुंची होगी, संभवत: चींटी और पर्वत का यही प्रतीक हो सकता है। शीर्षक प्रेरक सूत्र सा उपन्यास की कहानी स्पष्ट करता है। उपन्यास में अस्थमा पीडि़त सरकारी कर्मचारी है। उसकी इकलौती लड़की पार्वती छोटी उम्र में भी बहुत होशियार है। अच्छी शिक्षा से उसे बड़े पद पर पहुंचाना पिता का सपना है। बेटी की शिक्षण व्यवस्था खर्च और आर्थिक तंगी के चलते पिता बीमारी में दवाइयां समय पर नहीं ले पाता है। उनका इन्हेलर भी खाली रहता है, कई बार परेशानी होती है और पार्वती को बहुत दुख होता है।
    पिता-पुत्री का प्रेम और उसकी समझ का चित्रण उपन्यास में हुआ है। आर्थिक संकट के कारणों में उपन्यासकार नहीं जाता। पिता की अकाल मौत के बाद बाद पार्वती पूरे घर-परिवार का भार संभालती है। वह अपनी लगन, मेहनत और हिम्मत से जीवन में निरंतर संघर्ष से आगे बढ़ती है। उपन्यास में संयोग के साथ घटनाओं का चित्रण है। बालमन की मार्मिक गाथा प्रेरणास्पद है। सामाजिक संबंधों में प्रेम, भाईचारे का प्रभावी चित्रण उपन्यास में है। छोटे-छोटे संवादों द्वारा कथा को आगे बढ़ाते हुए उपन्यासकार प्रभावित करता है।
    बाल कहानियों का संग्रह ’सुनना, गुनना और चुनना’ और बाल कविताओं के संग्रह ‘खुद लिखें अपनी कहानी’ के शीर्षक देखकर लगता है कि जैसे यह बदल गए हैं। कविताओं की पुस्तक में कहानी जैसा और कहानियों की पुस्तक में कविता जैसा शीर्षक है। ‘खुद लिखें अपनी कहानी’ प्रेरक उक्ति के रूप में संदेश देने पंक्ति है, तो ‘सुनना, गुनना और चुनना’ में अनुप्रास से काव्य-सौंदर्य जैसा मर्म उद्घाटित होता है। इसे तयशुदा व्यवस्थाओं को नए रूप में देखने का लेखकीय प्रयास कहा जा सकता है। पांच बाल कहानियां का संकलन कहानी संग्रह है- ‘तौल-मौल कर बोल’, ‘संभव भी है असंभव’, ‘यूं बिगड़ती है बात’, ‘खुद का सहारा खुद’ और ‘सुनना, गुनना और चुनता’।
    ‘तौल मौल कर बोल’ दीपक की कहानी है जिसे मम्मी-पापा की रोक-टोक पसंद नहीं है। उसे लगता है कि उसके साथ ज्यादती हो रही है। कहानी में वह आत्मकेंद्रित गुस्से में घर निकल जाता है। घर से निकल कर पहने पर उसे संयोगवश पहले पुलिस से सवाल-जवाब करना पड़ता है। बाद में वह गुंडों के चंगुल में फंसता है, तब उसे घर की बातें समझ आती है। एक सामान्य-सी यह कहानी में लेखक ने सपने के माध्यम से घर में ही दीपक को पाठ पढ़ा दिया है। कहानी अपने अंत पर रहस्य उद्घाटित कर बालमन को प्रभावित करने वाली है।
    संग्रह की दूसरी कहानी ‘असंभव भी है संभव’ मूर्तियां बेचनेवाले मजदूर परिवार की कहानी है। छोटी उम्र में पिता खो चुके किशोर मनोज के साहस की यह प्रेरक कहानी है। ‘चींटी से पर्वत बनी पार्वती’ और ‘अपना होता सपना’ के पात्रों की भांति इस कहानी में मनोज अपने परिवार को संभालता हुआ जीवन में आगे बढ़ता है। ‘यूं बिगड़ती है बात’ कहानी एक सुखी हंसते-खेलते ऐसे परिवार की कहानी है, जिसका बेटा बुरी संगत में बिगड़ जाता है। उसकी मां चद्दर में पांव उलझने और संयोग से छत पंखें के गिरने से घायल होती है, और बाद में दिमागी संतुलन खो देती है। मां और पिता दोनों पुत्र पर ध्यान नहीं दे पाते, जिससे वह रास्ता भटक जाता है। कहानी के अंत में मां की जलती चिता और पिता-पुत्र का मिलन है। कहानी बालमन को हिम्मत, धैर्य और सही राह पर चलने का संकेत छोड़ती है। ऐसी ही कहानी ‘खुद का सहारा खुद’ ट्रक ड्राइवर के बेटे कमल की है। पिता घर से अधिकतर बाहर रहने से पारिवारिक कलह है। दुर्घटना में पिता की मृत्यु और मां का किसी के साथ चले जाना, माता-पिता के अभाव की कहानी है। दादी के साथ एकाकी कमल अपने संघर्ष से जीवन जीता है। बहुत ही मार्मिक ढंग से कही गई यह कमल की मर्मस्पर्शी कहानी है।
    शीर्षक कहानी ‘सुनना, गुनना और चुनना’ एक धनिक परिवार में तीन भाइयों के बीच इकलौती और सबकी चहेती अनिता की कहानी है। वह अत्यधिक लाड़ प्यार से जैसे सही- गलत में फर्क करना ही भूल जाती है। एक संत के प्रवचन सुनकर उसे  आत्मज्ञान और ग्लानि  होती है। वह आधी रात को घर से निकल जंगल पहुंच जाती है। जहां एक फैंतासी में जंगल के पेड़, टहनी और जानवरों से संवाद उसे ‘सुनना, गुनना और चुनना’ का मूल मर्म समझता है। इन कहानियों में पठनीयता के साथ सुनने-सुनाने का भाव निहित है। बालमन पर गहरी पकड़ है।
    संचित लेखकीय अनुभव का काव्य-रूपानंतरण है- बाल कविता संग्रह ‘खुद लिखें अपनी कहानी’। कविताओं के शीर्षक देखें-फूल मत तोडऩा, मत उडऩा हवा में, बड़ो पर मत उठाना सवाल, वफादारी से हो यारी, भूलों से बचाना, दर्द को बांटो, गुस्सा मत करना, जैसा बोओगे वैसा काटोगे, जीवन का गीत, सूरज से सीख, बादल बन जाओ, अच्छा हो साथ, चींटी की एकाग्रता, बड़ों की आज्ञा सर्वोपरी, एक की तो मदद करो, तिनका तिनका सुख, हक के लिए हो लड़ाई, रेत पर लिखो मन की बात, चलना ही जीवन, सरस्वती से मिलता ज्ञान, मन में हो मां आदि। स्पष्ट है कि थोड़े शब्दों में सरलता-सहजता को अंगीकार करते हुए बच्चों की भाषा में बहुत सी मर्म भरी बातें यहां कहीं गई है।
    यह एक पीढ़ी को संस्कारित करने का एक मार्ग हो सकता है। इन कविताओं की अपनी प्रविधि है। बात कहने का सलीक-संप्रेषण है। कविता ‘भूखे को खिलाना’ और ‘सवसे बड़ा धर्म’ में कुछ साम्य है। ‘एक दिन / किसी भूखे को खिलाना’ अथवा ‘अपने हिस्से की / एक रोटी भूखे को खिलाओ / सबसे बड़ा पुण्य कमाओ’ जैसी उक्तियां सदाचार को प्रेरित करती हैं। बच्चों के लिए जरूरी है कि वे खुद अपनी कहानी लिखें।  
    बिल्कुल कोरी स्लेट नहीं होते बच्चे, उनके लिए लिखना चुनौतीपूर्ण है। खासकर कविताएं। सबका अपना अपना नजरिया हो सकता है किंतु बाल कविता लेखन परम्परा से कुछ अलग ये कविताएं छंद मुक्त होकर भी जैसे छंद साधती है। सीधी सपाट होते हुए भी बहुत से रहस्यों को अपने भीतर रखते हुए संकेत करती हैं।
    मधु आचार्य ‘आशावादी’ की छवि मूलतः सुपरिचित साहित्यकार-रंगकर्मी के रूप में रही है और वे रंगमंच से विविध रूप में सक्रिय रहे हैं, अस्तु ‘कठघरे में बड़े’ बाल नाटक में उनसे उपेक्षाएं अधिक थीं और उन्होंने उन्हें पूरा किया है। विषय की नवीनता के साथ नाटक के सभी तकनीकी पहुलू इसमें समाहित हैं। एक विशेष बात यह भी कि यह नाटक प्रकाशन से पूर्व सुरेश हिंदुस्तानी के निर्देशन में मंचित भी हुआ जिसका ब्यौरा पुस्तक में दिया गया है साथ ही निर्देशक की बात भी पुस्तक में प्रकाशित की गई है। यह नाटक असल में एक प्रयोग है जिसमें बच्चों द्वारा अदालत लगा कर बहुत सामयिक बातें बड़ों के लिए सहजता से प्रस्तुत की गई है। शिक्षा तथा बाल विकास की अनेक अवधारणाओं को समाहित करते इस नाटक के विषय में व्यंग्यकार कहानीकार बुलाकी शर्मा ने लिखा है- ‘कटघरे में बड़े को पढ़ते हुए लगता है जैसे मधु आचार्य ‘आशावादी’ नें परकाया-प्रवेश करने जैसा दुष्कर कार्य किया है। इस नाटक में बच्चे जज, वकील और गवाह है और कटघरे में उनके अभिभावक। जिन समस्याओं को अभिभावक या बड़े लोग नजरअंदाज करते रहे हैं, उन पर बच्चों की पैनी नजर है और वे उनका समाधान चाहते हैं। बारह वर्ष का अशोक जज के रूप में जो फैसले लेता है, उन्हें सुनकर सभी बड़े लोगों की आंखें खुल जाती है।’ जैसा कि पहले संकेत किया मधु आचार्य के यहां तयशुदा व्यवस्थाओं को नए रूप में देखने का प्रयास करते हैं। फ्रूप की कुछ भूलों को छोड़ दें तो विषयानुकूल मोहक चित्रों में सजी ये पांचों पुस्तकें बाल पाठकों को लुभाने वाली पुस्तकें कहीं जा सकती है।
--------------
1.    ‘अपना होता सपना’ (बाल-उपन्यास) पृष्ठ-64 , मूल्य-150/- , संस्करण- 2016
2.    ‘चींटी से पर्वत बनी पार्वती’ (बाल-उपन्यास) पृष्ठ-64 , मूल्य-100/- , संस्करण- 2016
3.    ‘सुनना, गुनना और चुनना’ (बाल कहानी संग्रह) पृष्ठ-64 , मूल्य-100/- , संस्करण- 2016
4.    ‘खुद लिखें अपनी कहानी’ (बाल कविता संग्रह) पृष्ठ-80 , मूल्य-100/- , संस्करण- 2016
5.    ‘कठघरे में बड़े’ (बाल नाटक) पृष्ठ-64 , मूल्य-80/- , संस्करण- 2016
पांचों पुस्तकों के रचनाकार मधु आचार्य ‘आशावादी, प्रकाशक- सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर

---------------

डॉ. नीरज दइया


Share:

No comments:

Post a Comment

Search This Blog

शामिल पुस्तकों के रचनाकार

अजय जोशी (1) अन्नाराम सुदामा (1) अरविंद तिवारी (1) अर्जुनदेव चारण (1) अलका अग्रवाल सिग्तिया (1) अे.वी. कमल (1) आईदान सिंह भाटी (2) आत्माराम भाटी (2) आलेख (12) उमा (1) ऋतु त्यागी (4) ओमप्रकाश भाटिया (2) कन्हैया लाल 'मत्त' (1) कबीर (1) कमल चोपड़ा (1) कविता मुकेश (1) कुमार अजय (2) कुमार विजय गुप्त (1) कुंवर रवींद्र (1) कुसुम अग्रवाल (1) गजेसिंह राजपुरोहित (1) गोविंद शर्मा (2) ज्योतिकृष्ण वर्मा (1) तरुण कुमार दाधीच (1) दीनदयाल शर्मा (2) देवकिशन राजपुरोहित (1) देवेंद्र सत्यार्थी (1) देवेन्द्र कुमार (1) नन्द भारद्वाज (2) नवज्योत भनोत (2) नवनीत पांडे (1) नवनीत पाण्डे (1) नीलम पारीक (2) पद्मजा शर्मा (1) पवन पहाड़िया (1) पुस्तक समीक्षा (89) पूरन सरमा (1) प्रकाश मनु (2) प्रेम जनमेजय (2) फकीर चंद शुक्ला (1) फारूक आफरीदी (2) बबीता काजल (1) बसंती पंवार (1) बाल वाटिका (27) बुलाकी शर्मा (3) भंवरलाल ‘भ्रमर’ (1) भवानीशंकर व्यास ‘विनोद’ (1) भैंरूलाल गर्ग (1) मंगत बादल (1) मदन गोपाल लढ़ा (3) मधु आचार्य (2) माधव नागदा (1) मुकेश पोपली (1) मोहम्मद अरशद खान (3) मोहम्मद सदीक (1) रजनी छाबड़ा (2) रजनी मोरवाल (3) रति सक्सेना (4) रत्नकुमार सांभरिया (1) रवींद्र कुमार यादव (1) राजगोपालाचारी (1) राजस्थानी (16) राजेंद्र जोशी (1) लक्ष्मी खन्ना सुमन (1) ललिता चतुर्वेदी (1) लालित्य ललित (3) वत्सला पाण्डेय (1) विद्या पालीवाल (1) व्यंग्य (1) शंकारानंद (1) शहंशाह आलम (1) शील कौशिक (2) शीला पांडे (1) संजीव कुमार (2) संजीव जायसवाल (1) संजू श्रीमाली (1) संतोष एलेक्स (1) सत्यनारायण (1) सपना भट्ट (1) साहित्य अकादेमी (1) सुकीर्ति भटनागर (1) सुधीर सक्सेना (6) सुभाष राय (1) सुमन केसरी (1) सुमन बिस्सा (1) हरदर्शन सहगल (2) हरीश नवल (1) हिंदी (101) हूंदराज बलवाणी (1)

Labels

Powered by Blogger.

Blog Archive

Recent Posts

Contact Form

Name

Email *

Message *

NAND JI SE HATHAI (साक्षात्कार)

NAND JI SE HATHAI (साक्षात्कार)
संपादक : डॉ. नीरज दइया