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स्त्री के अस्तित्व-अस्मिता के प्रश्न और अनुभव / डॉ. नीरज दइया

 कवयित्री नीलम पारीक का पहला कविता संग्रह है- "कहाँ है मेरा आकाश?" शीर्षक में जो संकेत है वही भाव-बोध संग्रह की कविताओं में है। एक स्त्री के अस्तित्व और अस्मिता के साथ स्वचेतना के अनेकानेक प्रश्न और अनुभव कविताओं की विषय-वस्तु है।
सभी रचनाएं बिना किसी शीर्षक के संग्रह में है। 83 रचनाओं के इस संग्रह में एक प्रौढ़ होती स्त्री का मन चित्रित हुआ है।
(15)
कविता
कुछ हल्की
तितलियों के परों-सी...
फूलों की पंखुड़ियों-सी...
इत्र की महक-सी
हवा के परों पर सवार
कानों को छू जाए
वो बातें तो बन जाए कविता
ढल जाए शब्दों में
लेकर कोई आकार
किसी ख़्वाब का
और उसमें भर दे कुछ रंग सुनहरे रुपहले
तो बन जाए कविता... ।
(पृष्ठ-31)
किसी कवयित्री के पहले संग्रह में यह कविता उसके और कविता के न केवल संबंधों की अभिव्यक्ति है, वरन यह कविता उसकी संभावनाओं के साथ कविता की दिशा और दृष्टिबोध का खुलासा भी है। कविता का होना या बनना-बनाना महज कुछ शब्दों-विचारों एक संयोग होता है, कुछ सही शब्दों का सही क्रम में आना ही अच्छी कविता और किसी कविता-यात्रा का आरंभ होता है। कविता किसी पाठक के लिए इसी आरंभ की भूमिका रचती है।
(59)
माँ
तू तो कहती थी
बेटियां तो होती हैं चिड़ियाँ
उड़ जाती हैं इक दिन
पर माँ
चिड़ियाँ तो उड़ती हैं
खुले आकाश में
मैं चिड़ियाँ हूँ तो
कहाँ है मेरा आकाश... ?
(पृष्ठ-87)
संग्रह की कविताएं इसी आकाश की तलाश की कविताएं हैं। कविताओं में घर-परिवार के तमाम संबंधों के साथ प्रकृति के अनेक सुंदर बिम्ब संकेतों में प्रयुक्त और अभिव्यक्त हुए हैं।
(12)
जाने किस मिट्टी से
बनाती है माँ
जिन बच्चों को
कर देती है
खुद से अलग
उन्हीं के लिये
मांगती है दुआ...
(पृष्ठ-27)
कुछ कविताओं में कहीं-कहीं थोड़ा विस्तार और स्पष्टीकरण भी है जो नहीं होना चाहिए। कविताओं में कवयित्री की कुछ कहानियां भी है तो दूसरी तरफ सूक्ष्मता और सांकेतिकता भी है।
कविता में भाषा का विशेष महत्त्व होता है, हम संग्रह की कविताओं की भाषा के आधार पर कह सकते हैं कि यदि कवयित्री अपने कुछ शब्दों पर ध्यान दें तो उनकी खुद की काव्य-भाषा का एक रूप बनेगा जो लोक और व्यवहार से अभिन्न होगा।
(69)
औरतें
मिटा देती है
अपना अस्तित्व
संभालने में
रिश्ते
रिश्ते जो नहीं हो सकते
कभी भी
उसके अपने
फिर भी
मन्दिर में रखी प्रतिमाओं के जैसे
मानती हैं
मनुहार से
चढ़ाती है अश्रु-पुष्प भी
बस बने रहें वो
उसके घर मन्दिर में
भले ही पाषाण बनकर।
(पृष्ठ-102)
यहां बहुत कुछ कहने की अभिलाषा है। कविताओं में केवल स्त्रियों के जीवन से जुड़ी त्रासदियां ही नहीं समाज और देश से जुड़ी समसामयिक कविताओं में मानवीय मूल्यों और यथार्थ की अभिव्यक्त भी देखी जा सकती है। हालात की तपन है तो संबंधों की ऊष्मा भी है। 58वीं कविता की पंक्तियां देखें- "हे कवि!/ कहो तो?/ कौन-सी कविता/ है तुम्हारे दिल के करीब।"
कहना यह है कि सभी कविताएं कवयित्री ने दिल और मनोयोग से लिखी है। उनका यह लिखना ही स्त्री मन का रचना और बचना है। औरतों के जिस अस्तित्व के मिटने-मिटाने का संकेत है, संग्रह की कविताएं उसी अस्तित्व के बचाने की मुहीम है। ये कविताएं कविता के आकाश में उस आधे भाग को दर्शाती है जहां स्त्री-जीवन अपनी पूर्ण गरिमा और आज के साथ चित्रित हुआ है। कवयित्री नीलिमा पारीक पेशे से शिक्षिका हैं और राजस्थान के साहित्य में शिक्षक-शिक्षिकाएं का बड़ा योगदान रहा है। मैं आशा करता हूँ कि कविता के वितान में और खासकर महिला लेखन की दिशा में यह संग्रह उल्लेखनीय माना जाएगा।

- डॉ. नीरज दइया

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