-->

'चेखव की बंदूक’ यानी 'बीएस फिफ्टी वन’ / डॉ. नीरज दइया

 

कभी जब 'बंदूक’ शब्द मेरे मानस पटक पर आता तो एके 47 की आकृति उभरती। अब 'बंदूक’ शब्द के साथ जेहन में जो आकृति उभरती है, उसका नाम 'चेखव की बंदूक’ है। कवि कृष्ण कल्पित ने फेसबुक पर 'चेखव की बंदूक’ के समानांतर नाम लिखा 'बुलाकी की बंदूक’। लगभग चालीस वर्षों की सतत व्यंग्य-साधना के साधक श्री बुलाकी शर्मा ने उदारता पूर्वक अपने स्थान पर चेखक का नाम लिखा है। इन इक्यावन रचनाओं को देखते हुए मैं 'एके47’ की तर्ज पर 'बीएस51’ नाम प्रस्तावित करता हूं।
    वरिष्ठ साहित्यकार भवानीशंकर व्यास 'विनोद’ के अनुसार बुलाकी शर्मा की सबसे बड़ी सफलता छोटे-छोटे लेकिन विचार-उत्पादक व्यंग्य-विषयों को कुशलतापूर्वक निभा जाना है।
    वरिष्ठ व्यंग्य-लेखक फारूक आफरीदी ने लिखा है- बुलाकी शर्मा की रचनाएं प्रतिबद्धता के साथ सामाजिक-राजनीतिक विडंबनाओं और विद्रूपताओं के घिनौने चेहरों को बड़े करीने से परत-दर-परत बेनकाब करती नजऱ आती हैं।
    एक अत्यन्त विश्वसनीय व पठनीय नाम पूरन सरमा है और सरमा का शर्मा के बारे में मानना है कि व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा इस कृति में बहुत ही सधे हुए स्वरूप में सामने आते हैं और असंगत मूल्यों की बखिया उधेड़ते हैं।
    प्रतिष्ठित व्यंग्यकार अरविन्द तिवारी कहते हैं कि बुलाकी शर्मा के व्यंग्यों में जहाँ विषयों की विवधता है, वहीं प्रहार करने की क्षमता देखते बनती है।
    चर्चित व्यंग्यकार यशवंत कोठारी लिखते हैं कि व्यंग्य वही लिख सकता है जिसने जीवन में अभावों को जीया हो, सहा हो, जिसके सीने में दर्द हो। वैसा ही दर्द बुलाकी शर्मा के सीने में है और वे इसे कागज पर उतार कर हमें अनुगृहीत करते हैं।
    'बीएस फिफ्टी वन’ की रचनाओं में व्यंग्य का पैनापन, प्रस्तुति का चुटीलापन और भाषा का बांकपन है, इसमें व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा की तटस्थ, निष्पक्ष और पारदर्शी दृष्टि देखी जा सकती है। भीतर-ही-भीतर तिलमिलाने वाले व्यंग्य हैं और सांप भी मर जाए, लाठी भी नहीं टूटे जैसी शैली में। अन्य लोगों पर व्यंग्य करने से पूर्व रचनाकार खुद अपने पर निशाना साधता है। यहां पूरा लेखन व्यष्टि से हट कर समष्टि पर लागू होता संभव हुआ है।
    राजस्थानी में प्रकाशित 'कवि-कविता अर घरआळी’, 'इज्जत में इजाफो’ और हिंदी में 'दुर्घटना के इर्द-गिर्द’, 'रफूगिरी का मौसम’ पूर्व व्यंग्य संग्रह और हालिया सबूत 'चेखव की बंदूक’ यानी बुलाकी शर्मा के इक्यावन व्यंग्य जिसे शोर्ट में 'बीएस फिफ्टी वन’ कहा गया है के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सीधे-सीधे और कभी-कभी उलटे-सीधे ढंग से व्यंग्य  रचना व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा की आदत में शुमार है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि आपको 'दुर्घटना के इर्द-गिर्द’ पैनी दीठ रखने पर राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा आज से 16 बरस पहले 'कन्हैयालाल सहल’ पुरस्कार अर्पित कर हरी झंडी दिखाई गई थी। 'इज्जत में इजाफो’ होते-होते रह जाना मित्रों की मित्रता है, जिसे आपने हंसते-हंसते झेला और इस दुर्घटना की पीड़ा 'बीएस फिफ्टी वन’ में यत्र-तत्र कहे सर्वत्र साफ झलती है। बिना पुरस्कार बैकुंठ धाम नहीं जाना और सपनों में भी पुरस्कारों का मायाजाल रचा गया है। यह तो 'बीएस फिफ्टी वन’ के कलमकार का कमाल है कि पुस्तक में जो दुनिया सामने आती है, उसमें लेखक की बहारी-भीतरी दुनिया के अंधेरों-उजालों को बिना लुकाव-छिपाव के संतुलित रूप में प्रस्तुत किया गया है।
    आप और हम जिस दुनिया में रहते हैं, वह या कहें कि वैसी ही 'बीएस फिफ्टी वन’ की दुनिया है। रचनाओं की भाषा-शैली के मार्फत हम काफी स्थलों पर उन चेहरों को भी अपने भीतर साकार पाते हैं, जिनका व्यंग्यकार ने नाम लेकर जग-जाहिर नहीं किया है। किसी व्यंग्यकार का इरादा किसी व्यक्ति के स्थान पर उसके गुण-अवगुणों को चिह्नित करना हुआ करता है, और इसी के चलते ये रचनाएं बेशक हमारे अपने आस-पास के लेखकों कवियों की जमात से जुड़ी होकर भी ऐसे अनेकानेक व्यक्तियों समूहों और समुदायों को अपनी जद में लेती हुई प्रतीत होती है। यहां स्थानीयता के विस्तार और उसकी रक्षा में लेखकीय कौशल देख सकते हैं। 'बीएस फिफ्टी वन’ के निशाने पर जिन प्रमुख स्वनाम धन्य और नए-पुराने साहित्यकारों को रखा गया है उनका नामोल्लेख करना पर्दा हटाने जैसा होगा। लोकार्पण में भी तो किताब को पहले पर्दों में छिपा कर रखते हैं, फिर उसे खोला जाता है। जब लोकार्पण हो ही चुका तो कहना होगा कि 'बीएस फिफ्टी वन’ की अनेकानेक दिशाओं में कुछ दिशाएं नंदकिशोर आचार्य, हरदर्शन सहगल, लक्ष्मीनारायण रंगा, मधु आचार्य 'आशावादी’, राजेंद्र जोशी, नीरज दइया, नवनीत पाण्डे, मालचंद तिवाड़ी, गिरिराज-अनिरुद्ध और खुद बुलाकी शर्मा आदि-आदि तक आती-जाती हैं, तो वहीं बीकानेर में होने वाले अनेकानेक आयोजनों की कुछ तश्वीरों का कच्चा चि_ा भी यहां खुलता है।
    'बीएस फिफ्टी वन’ में अलग-अलग इक्यावन व्यंग्य रचनाओं के होते हुए भी उनमें परस्पर समन्वय और सामंजस्य दिखाई देता है। यहां अफलातून और बजरंगीलाल है तो साथ ही सदासुख लाल जी दुनिया भी है। असल में ये कुछ नाम माध्यम हैं, इसी के बल पर 'बीएस फिफ्टी वन’ में अनेक चेहरों को बेनकाब किया गया है। ऐसे आदरणीय नाम हमारे बीच है कि जिनके बारे में सीधे-सीधे कुछ कहना अपमान माना जा सकता है। ऐसे सभी स्थलों पर रचनाकार का उद्देश्य सीधा-सीधा उन प्रवृति को 'बीएस फिफ्टी वन’ से चोटिल करना रहा है, यानी मार कर उस प्रवृति से निजात दिलाना भर रहा है। हमारे आस-पास की दुनिया में हमारे घर-परिवार, मौहल्ले और पेशे के कारण सहकर्मियों के अतिरिक्त लेखन से जुड़ी दुनिया है, और कमोबेश यही दुनिया हम सबकी है। इस दुनिया में बेहद भोला और मासूस-सा सदाचारी जीव जिसे व्यंग्य-लेखक के रूप में पहचाना गया है। 'बीएस फिफ्टी वन’ के रचनाकार ने बडे जनत से इसे संभाल कर रखा है। यह हर छोटे-बड़े आघात में घायल होने पर भी अपनी मुस्कान बनाए रखने की आदत से पीडि़त है। इसकी सबसे बड़ी खूबी यही है कि यह अपनी मुस्कान नहीं छोड़ता। काफी जगह तो ऐसा भी हुआ है कि जिस स्थल पर 'बीएस फिफ्टी वन’ द्वारा अटेक किया जाना है, वहां... हां ठीक वहां.... अलग-अलग वेश बनाकर खुद ही घायल होने की त्रासदी लेखक स्वयं झेलता है। यह महज इसलिए है कि व्यक्ति जहां कहीं भी इन व्यंग्यों में नायक के रूप में गिरता है, वहां वह हारता नहीं है मुस्कुरात हुआ धूल झाड़ता हुआ उठता है, और उन बातों से दूषित मन को स्वच्छ करने का प्रयास करता है।
    यह अतिश्योक्ति नहीं होगी यदि मैं कहूं कि 'बीएस फिफ्टी वन’ कोई कोरी किताब जैसे किताब नहीं, वरन एक आइना है। इसमें आप और हम सभी अपना-अपना चेहरा देख सकते हैं। किसी भी व्यंग्यकार की सबसे बड़ी सफलता यही होती है कि उसके द्वारा रचित चरित्रों में हम अपना चेहरा, और अपने आस-पास की दुनिया को पहचान सकें। अलग-अलग भूगोल में इन चेहरों के नाम अलग-अलग रख दिए गए है। चेखव को याद करते हुए उनकी उसी सूरत में हम बीकानेर के बुलाकी शर्मा को देख सकते हैं।
    शीर्षक-व्यंग्य 'चेखव की बंदूक’ के माध्यम से उन व्यंग्य आलेखों पर चर्चा करना चाहता हूं जिनमें बहुत ही सघे सुर में व्यंग्यकार ने निशाना साधा है। राजस्थानी के प्रख्यात कहानीकर नृसिंहराज पुरोहित कहा करते थे कि व्यंग्य में तो जूते को शॉल में लपेट कर मारा जाता है। बुलाकी शर्मा इसमें भी अव्वल दर्जे के संवेदनशील व्यंग्य लेखक है, जो 'बीएस फिफ्टी वन’ में आकार-प्रकार के जूतों को बदलते रहते हैं और शॉल को भी।
    एक अंश देखिए- 'मैं कथा उस्ताद चेखव से नहीं वरन् उन्हें जब तब 'कोट’ करते रहने वाले अपने स्थानीय साहित्यिक उस्ताद से आतंकित रहता हूं। चेखव ने जो लिखा, उस पर चलूं अथवा नहीं चलूं, इसका निर्णय करने के लिए मैं स्वतंत्र हूं, क्योंकि चेखव बाध्य करने को उपस्थित नहीं हैं। किंतु स्थानीय उस्ताद की उपस्थिति हर जगह-हर समय रहती है और उनकी यही उपस्थिति मुझे आतंकित बनाए रखती है। उनका आतंक मुझ पर इस कदर हावी है कि नई रचना लिखते समय भी मुझे उनकी उपस्थिति का अहसास बना रहता है।’
    यहां भाषा की सहजता में उस्ताद की स्थानीयता पर जिस बल का प्रयोग हुआ है वह देखते ही बनता है। सूक्त वाक्य चेखव ने कहानी के लिए दिया तो उस वाक्य को सभी विधाओं पर लागू करने का द्वंद्व यहां है। ऐसे ही एक स्थानीय उस्ताद ने फेसबुक पर अर्ज किया कि बंदूक चलनी भी चाहिए। मेरा मानना है कि 'बीएस फिफ्टी वन’ के रचनाकार बुलाकी शर्मा जिस जमीर पर गोली दागते हैं, वह जमीर भी तो होना आवश्यक है। बिना जमीर के आप और हम उस अहसास को पा ही नहीं सकते कि गोलियां चली है और धना-धन चली है। होली के अवसर पर किसी रंगों की पिचकारी या बंदूक से भले आप कितने ही रंग चलाएं, कोई अंधा बनकर भला उन रंगों का क्या अहसास पा सकेगा! आंखें खोलिए और अपने भीतर के जमीर को जिंदा कर लें यही व्यंग्यकार का उद्देश्य होता है। व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा के व्यंग्य वर्तमान समय के आचार-व्यवहार और व्यवस्थाओं को देखते-परखते हुए हमारे जमीर को मांजते हैं, वहीं उसे संवारने और सजाने का स्वपन भी देखते हैं।

----
पुस्तक- चेखव की बंदूक
लेखक- बुलाकी शर्मा
प्रकाशक- सूर्यप्रकाशन मंदिर, बीकानेर

-----
डॉ. नीरज दइया

Share:

No comments:

Post a Comment

Search This Blog

शामिल पुस्तकों के रचनाकार

अजय जोशी (1) अन्नाराम सुदामा (1) अरविंद तिवारी (1) अर्जुनदेव चारण (1) अलका अग्रवाल सिग्तिया (1) अे.वी. कमल (1) आईदान सिंह भाटी (2) आत्माराम भाटी (2) आलेख (11) उमा (1) ऋतु त्यागी (3) ओमप्रकाश भाटिया (2) कबीर (1) कमल चोपड़ा (1) कविता मुकेश (1) कुमार अजय (1) कुंवर रवींद्र (1) कुसुम अग्रवाल (1) गजेसिंह राजपुरोहित (1) गोविंद शर्मा (1) ज्योतिकृष्ण वर्मा (1) तरुण कुमार दाधीच (1) दीनदयाल शर्मा (1) देवकिशन राजपुरोहित (1) देवेंद्र सत्यार्थी (1) देवेन्द्र कुमार (1) नन्द भारद्वाज (2) नवज्योत भनोत (2) नवनीत पांडे (1) नवनीत पाण्डे (1) नीलम पारीक (2) पद्मजा शर्मा (1) पवन पहाड़िया (1) पुस्तक समीक्षा (85) पूरन सरमा (1) प्रकाश मनु (2) प्रेम जनमेजय (2) फकीर चंद शुक्ला (1) फारूक आफरीदी (2) बबीता काजल (1) बसंती पंवार (1) बाल वाटिका (22) बुलाकी शर्मा (3) भंवरलाल ‘भ्रमर’ (1) भवानीशंकर व्यास ‘विनोद’ (1) भैंरूलाल गर्ग (1) मंगत बादल (1) मदन गोपाल लढ़ा (3) मधु आचार्य (2) मुकेश पोपली (1) मोहम्मद अरशद खान (3) मोहम्मद सदीक (1) रजनी छाबड़ा (2) रजनी मोरवाल (3) रति सक्सेना (4) रत्नकुमार सांभरिया (1) रवींद्र कुमार यादव (1) राजगोपालाचारी (1) राजस्थानी (15) राजेंद्र जोशी (1) लक्ष्मी खन्ना सुमन (1) ललिता चतुर्वेदी (1) लालित्य ललित (3) वत्सला पाण्डेय (1) विद्या पालीवाल (1) व्यंग्य (1) शील कौशिक (2) शीला पांडे (1) संजीव कुमार (2) संजीव जायसवाल (1) संजू श्रीमाली (1) संतोष एलेक्स (1) सत्यनारायण (1) सुकीर्ति भटनागर (1) सुधीर सक्सेना (6) सुमन केसरी (1) सुमन बिस्सा (1) हरदर्शन सहगल (2) हरीश नवल (1) हिंदी (90)

Labels

Powered by Blogger.

Blog Archive

Recent Posts

Contact Form

Name

Email *

Message *

NAND JI SE HATHAI (साक्षात्कार)

NAND JI SE HATHAI (साक्षात्कार)
संपादक : डॉ. नीरज दइया