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अद्वितीय कवि से रू-ब-रू कराता विनिबंध / डॉ. नीरज दइया

  साहित्य अकादेमी द्वारा राजस्थानी कवि ऊमरदान लालस (1854-1903) के जीवन और साहित्य-यात्रा को लेकर मूल राजस्थानी भाषा में लिखित कवि-आलोचक डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित का विनिबंध प्रकाशित हुआ है। साहित्य अकादेमी की सराहना इसलिए भी की जानी चाहिए कि एक तो वह बहुत कम कीमत में ऐसे प्रकाशनों को उपलब्ध कराती रही है और दूसरे भारतीय साहित्य निर्माता सीरीज में प्रकाशित विनिबंधों का वह भारतीय भाषाओं में अनुवाद भी प्रकाशित करती है। प्रस्तुत विनिबंध में विद्वान लेखक डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित ने कवि ऊमरदान लालस से संबंधित ‘ऊमर काव्य’ (संपादक- जगदीशसिंह गहलोत) और ‘ऊमरादान ग्रंथावली’ (संपादक- डॉ. शक्तिदान कविया) को आधार ग्रंथ बनाते हुए अनेक नई अवधारणाओं और शोध निकषों की सम्यक विवेचना की है।
 कृति में राजस्थानी कविता के अध्येयता और आलोचकों की टिप्पणियों के साथ आधुनिक कविता के विविध आयामों के साथ उसके आरंभ को स्पष्ट करते हुए कवि ऊमरदान जी का कविता परंपरा-विकास में स्थान निर्धारित करने का महत्त्वपूर्व कार्य भी किया गया है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 1857 से पहले और बाद में सक्रिय विभिन्न कवियों को क्षेत्रवार विवेचना के साथ उनकी मूल काव्य-प्रवृतियों को भी रेखांकित किया गया है। कवि ऊमरदान लालस के जीवन परिचय को उपलब्ध साक्ष्यों के साथ प्रस्तुत करते हुए विद्वान लेखक राजपुरोहित ने कवि की संपूर्ण साहित्यिक यात्रा की रचनात्मकता के मुख्य बिंदुओं को विभिन्न काव्यांशों को प्रस्तुत करते हुए विशद ढंग से प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत विवेचना में कवि के भाव पक्ष और केंद्रीय धारा की तलाश करते हुए कला पक्ष का भी एक अध्यय पृथक प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत विनिबंध की एक अन्य रेखांकित किए जाने योग्य विशेषता कवि ऊमरदान लालल के जीवन प्रसंगों के विभिन्न संस्मरणों का एक अलग से अध्याय है। इसमें अनेक रोचक प्रसंगों के हवाले पाठक कवि ऊमरदान जी की अनेक विशेषताओं से रू-ब-रू होते हैं।
 आज जब हम हमारे समकालीन रचनाकारों के विषय में भी पर्याप्त और पूरी जानकारी के अभाव में उनका मूल्यांकन नहीं कर पाते हैं, ऐसे समय में आधुनिक काल के आरंभिक कवियों अथवा कहें कि मध्यकाल और आधुनिक काल के संधिकाल के कवियों पर अकादेमी द्वारा ऐसे प्रयास निसंदेह उल्लेखनीय हैं। भाई डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित को बहुत बहुत बधाई
 और शुभकामनाएं।
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डॉ. नीरज दइया


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