हम कविता के विषय में अब भी कोई एक सर्वमान्य परिभाषा कुछ पंक्तियों में नहीं दे सकते हैं और यह भी रेखांकित किया जाता रहा है कि परिभाषा प्रत्येक दौर में परिवर्तनशील रहेगी। रचनाकार की अपनी अभिनव दृष्टि होती है और वह कविता ही नहीं साहित्य की विधाओं को और हर शब्द को भी अलग अलग समय अपनी दृष्टि से देखता अथवा कहें कि रचता है। कवयित्री संजू श्रीमाली जी के इस संग्रह में जीवन को देखने के साथ कुछ रचने का भाव भी प्रमुखता से देखा जा सकता है। यहां विचार के साथ सघन संवेदनाओं के बिंब हैं, जिनमें एक स्त्री का सुकोमल चेहरा झिलमिलता है।
अपने आस-पास के जीवन और संबंधों को देखते-परखते हुए कवयित्री संजू श्रीमाली जी कहीं भी किसी पर कोई दोषारोपण नहीं करती हैं वे बस उन भावनाओं को कविता के माध्यम से हमारे अंतस में आकार देते हुए हमें विचारवान बनने का आह्वान करती हैं। कविता में बहुत कुछ कहे जाने के बाद भी अब भी बहुत कुछ अव्यक्त है, यह अव्यक्त को व्यक्त करने का एक प्रयास है।
कवयित्री संजू श्रीमाली जी की संवेदनशीलता है कि वे सामान्य जीवन स्थितियों में भी मर्म को उद्घाटित करने में सक्षम है। इस संग्रह में सर्वाधिक प्रभावित करने वाली बात इन कविताओं के रूप में किसी पूर्ववर्ती कवि के किसी चेहरा अथवा अंश का नहीं झांकना है। ये कविताएं स्वयं कवयित्री द्वारा निर्मित एक ऐसी काव्य-वीथी है जो अपनी भाषिक सरलता और सहजता से प्रभावित करती है। दुनिया की आधी आबादी के विषय को अधिक गंभीरता से देखने की आवश्यकता पर बल देती इन कविताओं का स्वागत है। संग्रह ‘खुला आसमां’ संजू श्रीमाली जी के एक संवेदनशील रचनाकार के साथ-साथ प्रयोगधर्मी कवयित्री होने का प्रमाण है।
- डॉ. नीरज दइया
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