उम्र भर का साथ / निभ जाता है कभी / एक ही पल में
बुलबुले में / उभरने वाले / अक्स की उम्र/ होती है फकत / एक ही पल की।
(कविता : एक ही पल में, पृष्ठ- 26)
अपने संपूर्ण परिवेश और नितांत वैयक्तिक संसार में खोयी हुई कवयित्री अपने स्त्री-मन की विभिन्न अनुभूतियों और विचारों में किसी चिंता और चिंतन के भावों में बारंबार गहरे उतर जाने के सतत प्रयास में जैसे खोई हुई है। उसका यह खोना दरअसल जीवन को निर्बाध गति से जीने का संदेश पाना अथवा संदेश देना है। बिना किसी वैचारिक बोझिला के अपने स्वर को शांत, धीमा और मधुरता में साधने का यह उपक्रम कविताओं में प्रस्तुत सरल-सहज उद्धाटित आडंबरहीन स्त्री-मन की सच्चाइयों को मुखर बनाता है, जो निसंदेह हमारा ध्यानाकर्षित करता है। स्त्री-मन का सूनापन इन कविताओं में अनुभूति के स्तर पर विकसित हुआ है, जो प्रभावित करता है। वहीं संग्रह की कुछ कविताओं में व्यंजित विचार-पक्ष में एक शिक्षिका जैसा चेहरा भी झांकता है। रजनी की काव्य-भाषा में जहां उर्दू-भाषा का मिठास इन कविताओं को नज़्म की श्रेणी तक ले जाता है, वहीं इनकी सादगी-सरलता से अभिव्यंजना मर्मस्पर्शी है।
रजनी छाबड़ा की कविताएं समकालीन हिंदी कविता में स्त्री द्वारा लिखी जा रही स्त्री-मन की कविताओं में अपनी अलग पहचान और स्थान बनाएं, इसी विश्वास के साथ इन कविताओं का स्वागत करता हूं।
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पुस्तक : ‘होने से न होने तक’ / विधा : कविता / कवयित्री : रजनी छाबड़ा
संस्करण : 2016, प्रथम / पृष्ठ : 96, मूल्य : 200/-
प्रकाशक : अयन प्रकाशन, 1/20, महरौली, नई दिल्ली
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